Menu
blogid : 14360 postid : 27

: महंगाई मैं दम है :{बढती मेहंगाई}

aawaz
aawaz
  • 15 Posts
  • 0 Comment

आम आदमी महंगाई से परेशान है .जिसका इस कविता में वर्णन है .उसके जीवन को करेले से सम्बोधित किया गया है. यहाँ करेला { कड़वे जीवन के स्वाद } का प्रतीक है जो आम आदमी इन दिनों महसूस कर रहा है आशा है की ये कविता आपको पसंद आएगी :

: महंगाई मैं दम है :

चाय की प्याली में चीनी थोड़ी कम है
दम आलू की सब्जी में नमक थोड़ी कम है
क्यूंकि महंगाई में दम है
आँखों में नमी प्याज़ काटने से नहीं भाव देखने से है
हाथ में छुरी काटने की धार अब तेज़ नहीं क्यूंकि
फल और सब्जी का अब वेज़ नहीं गुज़रते हुए वक्त
में खवाब थोड़े कम से कम हैं सनसनाती इस धुप में
प्यास थोड़ी सी कम है क्यूंकि महंगाई में दम है
वेत और महंगाई के इस कशमकश में महंगाई हमेशा
दो कदम आगे है ज़िन्दगी की इस कसोटी पर घटने का
नाम नहीं बदने का दाम है .रोज़ की इस मारामारी में
मगरमच के आंसू बहाने का काम है .ज़िन्दगी पानी से बहार हुई
मछली की तरह झटपटअति है ,
दो वक्त की रोटी को आब मोहताज़ है
क्यूंकि महंगाई में दम है.
पहले खरीदने को बाहर जाते अब खरीदने के लिए बहार जाते हैं
फरक सिर्फ इतना है की वो तब था और आज बस है
सरकार बस एक रूपया बढाती है .कहेती है की कोष खाली है.
तेल कंपनी घाटे मैं है इसीलिए आम आदमी की जेब काटना अभी बाकी है
क्यूंकि महंगाई में दम है
इसके चलते सभी कीमते बढ़ती है सुई के धागे से लेके कर के पहिये तक
हर चीज़ महंगी हो जाती है तेल के चक्कर मैं आम आदमी का तेल निकलता है
उसके लिए तो ज़िन्दगी अब बस करेले की सब्जी और निम्बू का अचार होता है
लाल टमाटर की तरह महंगाई की मार उस पे पढ़ती है जो पहले से हो रहे नुक्सान
को और बढ़ाती है .
आम आदमी का जीवन अब बस करेले जैसा हो गया है .मिठास की आस लगाये
अब उसको एक बरसा हो गया है खून पसीने की कमाई बस अब पानी की तरह बह
जाती है जो जले पर नमक मिर्च लगाती है ,अब तो बस भगवान ही मालिक है
खुद ही गवाह है उसी से ये फ़रियाद है इसीलिए क्यूंकि महंगाई में दम है.
ये एक बोझ है जो आम आदमी की कमर तोडती है कहने को कुछ बचता नहीं है
क्यूंकि महंगाई में दम है
{ उम्मीद है आने वाले दिनों मैं आम आदमी की ज़िन्दगी मैं करेला ही नहीं बल्कि
आम ,और अमरुद का स्वाद भी हो }

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply