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ये एक कविता है . जिसमे स्त्री के प्रति हो रहे अन्याय का विरोध है . आदमी की सोच बदलनी चाहिए बहुत से आन्ढोलन हुए है और कुछ कानून में बदलाव आये है पर फिर भी ऐसी घट्नाए .हो रही है ,ऐसे में व्यक्ति की सोच बदलनी चाहिए
*{ ये सोच बदलनी चाहिए }*
ये सोच बदलनी चाहिए
समाझ मैं फ़ैली बुराइयाँ खत्म होनी चाहिए
स्त्री के प्रति आदर की भावना , सम्मान की भावना होनी चाहिए
नर- नारी का अंतर नहीं ,समानता की भावना जागृत होनी चाहिए
ये सोच बदलनी चाहिए
आज की ऐसी सूरत कल ज़रूर बदलनी चाहिए ,
साल में एक दिन महिला दिवस का दिखावा नहीं
साल भर हमेशा सम्मान की भावना पनपनी चाहिए
ये सोच बदलनी चाहिए .
सिर्फ दिन के उजाले मैं ही नहीं रात के अंधेरे में भी वो अपने आप को
महफूज़ सुरक्षित महसूस कर सके ऐसी स्थिती होनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना इसका उददेश्य नहीं है, कोशिश येही है की ये
सूरत बदलनी चाहिए इसकी आग मेरे सिने में नहीं तो किसी और के
सिने में सही आग मगर जलनी चाहिए
ये कुकृति एक नई आकृति मैं बदलनी चाहिए क्यूंकि देश की गरिमा
भंग नहीं होनी चाहिए
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