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स्त्री की आवाज़

aawaz
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में नारी हूँ ,इस कुदरत का एक हिस्सा हूँ आपमान मेरा
करके क्या तुमने है पाया ये मेरी मजबूरी नहीं की में ये
पीड़ा सहती हूँ .मेरी ख़ामोशी को मेरी चुप्पी मत समझो
येह तो मेरी सहेजता है और सहनशीलता है .
में सिर्फ रसोड़े के काम आने वाले नहीं ज़रुरत पड़ने पर
झाँसी की रानी के तरह एक वीरांगना भी हूँ ,याद करो झाँसी की रानी को
जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबाये वो भी तो एक स्त्री ही थी
– नर और नारी का भेदभाव कई सालो से चला अ रहा है .परन्तु त्याग की भावना स्त्री के सिवाई और किस्मे है इतिहास गवाह है .की स्त्रॆयॊ पर शोषण अधिक है .बावजूद इसके वो चुप हैं .येह उसकी सहन करने की शक्ति है स्त्री कमज़ोर नहीं हँ.येह तो बस हमारे समाज की एक सोच है उनके प्रति आदर की भावना होनी चाहिए .आपने बचों से उतना प्यार कोई नहीं कर सकता जितना माँ अपने बचे से करती है .आपने बचों के लिए वो खुत्च भी सहें कर लेती है
उसके कष्टों को आपने सर ले लेती है आपने प्यार से बचों को सींचती है .
गुस्सा उनको भी आता है .दिल उनका भी टूट ता है .कलेजे में चाहे दुःख भरा हो पर
आन्सुऒ का पानी आपने आंखें में नहीं लती ,आज भी समाज में ऐसे दिल देहला देनी वाली वारदात सामने आती है जिस से दिल कांप उठता है .ज़ुल्म सहना भी गलत है .शादी के बाद दहेज़ की मांग हमारे समाज पर एक धब्बा है .और उसके लिए उसपे आत्याचार करना उसे मारना पीटना ये कहाँ की परंपरा और संस्कृति कहलाती है .आज कई इलाकों में लड़के लड़की की प्रति भेदभाव हैं ,इसलिए आज लड़कीयों की संख्या कम है .दहेज़,तस्करी ,फिरोती ,बलात्कार अत्त्याचार हमारे समाज पर एक संगीन इल्जाम है .अत्याचार चाहे तन पर हुआ हो पर उसका प्रभाव मन पर होता है .इन विश्यॊ पर सरकार को भी एतियात बर्रटने होगी .क्योंकि एक और घरेलु हिंसा का कारन है गरीबी जिससे जल्द विवाह करा दिया जाता है .खुत्च लोगों का येह माना होता है की बोझ टल गया लेकिन उसके बाद ही समस्या उत्पन्न होती है .दहेज़ ,अत्याचार ,और लाचारी इत्यादि .
लड़की एक भोज नहीं है . अत:लड़की तो एक वरदान होती है .समाज इस बात को जितनी जल्दी और अच्छी तरह समझेगा उतना ही इस देश की प्रगति के लिए अच्छी है

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