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खूबसूरत अंजलि उर्फ़ बदसूरत लड़की की कहानी – सुधीर मौर्य

Sudheer Maurya ( सुधीर मौर्य)
Sudheer Maurya ( सुधीर मौर्य)
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बहुत खूबसूरत थी वो लड़कपन में।

लड़कपन में तो सभी खूबसूरत होते है।  क्या लड़के , क्या लड़कियां।  पर वो कुछ ज्यादा ही खूबसूरत थी।  वो लड़की जो थी।

लड़कियां हर हाल में लड़कों से ज्यादा खूबसूरत होती है।  ये मैने सुना था। लोगो से, कई लोगो से।  कुछ माना, कुछ नहीं माना।  फिर लड़कियों की लड़कों से ज्यादा खूबसूरत होने की बात कहानियों में पढ़ी। उपन्यासों में भी। बस मैने ये ये बात मान ली कि लडकिया हम  लड़कों से कहीं ज्यादा सुन्दर होती है।  आखिर क्यों न मानता वो सारी कहानिया और सारे उपन्यास साहित्यकारों ने लिखे थे। साहित्यकार तो समाजके दर्पण होते है। जो  होता है वही दिखाते हैं। फिर लड़कियां, लड़कों से ज्यादा खूबसूरत होती है ये बात मैं न मानू इसकी  कोई वजह न रही।

वो लड़की थी।  खूबसूरत लड़की।  मेरी हमउम्र या मुझसे साल – छै महीने छोटी। जब लोग बोलते देखो कितनी सुन्दर बच्ची है मैं सुनता और फिर उसे देखता, उसकी सुंदरता देखता।  पर मुझे निराशा हाथ लगती।  वो  मुझे सुन्दर नज़र नहीं आती।

मैं भी लड़कपन  में था। खेलते – खिलाते मैं अक्सर उसके घर पहुँच जाता।  कभी – कभी उसके साथ उसके खेल में भागीदार  हो जाता।  वो हर  खेल  में  जितना चाहती। किसी भी तरीके से।

उस दिन वो खेल , खेल रही थी। गुड्डे – गुड़ियों।   उनकी शादी – ब्याह का।  अचानक वो भाग कर अपनी मुम्मी के पास गई और फ्राक लहराकर बोली ‘मुम्मी – मुम्मी ये पति क्या होता है ?’

‘जो अच्छी लड़कियां होती है उन्हें बड़े होकर एक पति मिलता है।’ उसकी मम्मी ने उसे समझाया था।

‘और जो बुरी लड़कियां होती है ?’ लड़कपन की उस सुन्दर लड़की ने अपनी मम्मी  के सामने जिज्ञासा रखी।

–माँ न जाने किस  ख्याल में थी। शायद किसी बात पर गुस्सा भी।   लड़कपन की उस सुन्दर लड़की पे या किसी ओर पे।  तनिक गुस्से से बोली ‘जो बुरी लड़कियां होती है उन्हें तो कई मिलते है। ‘

लड़की ने सुना।  न जाने क्या समझा ? और भाग कर वापस रचाने लगी गुड्डे – गुड़ियों का ब्याह।

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लड़की अचानक मुझे सुन्दर लगने लगी।

पता नहीं मे समझदार हो गया था और मुझे सुंदरता की  पहचान करने की अक़्ल आ गई थी। या फिर वो लड़की थी ही सुन्दर। अब उस लड़की के घर के आस – पास लड़के मंडराने लगे थे। जो अपनी बातो  में उसे बेहद सुन्दर बताते थे। मैं सुनता और खुद की  कमअक्ली के लिए खुद को कोसता  की कि मैने एक सुन्दर लड़की को सुन्दर नहीं समझा।

लड़की अब लड़कपन को जीतकर टीन  एज बन चुकी थी।  अब वो फ्राक कभी – कभार ही पहनती। शर्ट और स्कर्ट उसके  पसंदीदा लिबास थे।  इस लिबास में वो जिस गली से गुज़रती उस  गली के लड़कों को न जाने कितने दिन और कितनी रात बाते करने का मसाला मिल जाता।  लड़की की तिरछी नज़र और होठों पे लरज़ती हंसी  उन लड़कों की बातों के मसाले में  इज़ाफ़ा करती रहती रहती।

कंधे पे स्कूल बेग टाँगे वो बतख चाल से गाँव से वो निकल कर पास के कसबे के स्कूल में पढने जाने लगी थी।  फूल पे भंवरे मंडराते हैं और कली  भंवरों की नींद उडा  देती है।  अब कली खुद अपनी खुशबू पर इतरा रही थी और अपने ख्वाबो – ख्यालों में उसे तलाशती जो उसकी खुश्बू को महके और उसकी खुश्बू में सराबोर हो कर उसे भी सराबोर कर दे।

उस महकती कली की खुशबू को सबसे पहले महका था हमारे ही गांव के एक भंवरे ने।  नाम प्रशांत।  लड़की और  लड़के मिले।  बातें हुई। हाथ पकडे।  कलाईयाँ थामी। चुम्बन लिए।  गले मिले। पति – पत्नी बनने के कस्मे – वादे हुए। अब जब पति – पत्नी बनने की सोच ली तो फिर  पति – पत्नी  की तरह हक़ मांगे गए। ऊपरी मन से लड़की ने न – नुकुर की।  फिर लजाते – शरमाते मान गई।  कैसे  न मानती उसकी  बात जिसे पति बनाने का वादा किया हो।  लड़की की रज़ामंदी उसकी न – नुकुर में रहती ही है ये  बात शायद लड़का जनता था। कपडे उतरे।  लड़की  पे लड़के का रंग पड़ा और लड़की चटख कर कली से अधखिला  फूल बन गई।

अधखिला फूल बनते ही उस लड़की की चाल मोरनी सी हो गई।  और अधखिले फूल पे मंडराने वाले भंवरों की संख्यां भी बढ़ गई। उन्ही में से एक भंवरे ने पहले भंवरे से मार पीट कर दी। मारपीट के वक़्त वो भंवरा कह रहा था कि अधखिले फूल ने खुद उसे निमंत्रण दिया था अपना रस पीने के लिए।

पहला भंवरा जब तक दूसरे भंवरे की बात समझ पाता अधखिला फूल गांव से चला गया अपनी बुआ के पास  गोरखपुर। लोगो ने कहा लड़की पढ़ाई के लिए गई है। मैने लोगो की बात मान ली ठीक उस तरह जैसे लड़की के सुन्दर होने की बात मान ली थी।

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लड़की को लोग ओर ज्यादा खूबसूरत कहने लगे थे। यकीनन वो सच कहते होगें। उनके पास झूठ बोलने की वजह भी कहाँ थी।

पर लड़की जानती थी वो  अभी पूरी तरह खूबसूरत  कहाँ।  अभी तो उसकी खूबसूरती का चरम आना शेष है कहीं अधखिला फूल भी पूर्णतया सुन्दर होता है ?  पूर्णतया सुन्दर होने के लिए फूल का पूर्णतया खिलना जरुरी जो है।

कमल की मोटरसाइकिल पर कमल की पीठ पर जब  वो अपने वक्ष दबा कर  बैठती तो उसे लगता कि अब की बसंत उसे पूरी तरह खिला कर ही मानेगा। बसंत में फूलों का खिलना तय है। सो इस अधखिले फूल की भी बारी आई।

फूल खिल चूका था। अब अगर फूल खिला है तो उसकी महक का भी बिखरना लाज़मी है। महक भी बिखरी। अब महक  बिखरेगी तो शहद पीने वाले भी आएंगे। सो वो आये। फूल गुलज़ार होने लगा। महकने लगा। और खूबसूरत हो गया । ये शहद के पीने की ललक लिए लोगो ने कहा मैने मान लिया। मेरा मानना लाज़िमी भी था।

लड़की जानती थी। उसने जानना, समझना तो तभी जान लिया था जब गुड्डे – गुड़ियों का ब्याह रचाती थी। कि केवल सुन्दर होना पर्याप्त नहीं है। सुंदरता तब तक अधूरी है जब तक उसके साथ उच्च शिक्षा का प्रमाण पत्र सगलंग्न न हो।

उच्च शिक्षा के लिए पैसा जरुरी है। और पैसा पाने के लिए उसके पास उसका गठीला – गुदाज़ जिस्म और मोहक मुस्कान उसके साथ थी। लड़की ने कोशिश की। और कहते हैं भगवान भी कोशिश करने  वालो का साथ देते हैं। सो भगवान ने उसका साथ दिया।

एक बड़ी कंपनी का बड़ा इंजीनियर था वो। चटखते फूल की किस्मत यूँ बुलंद थी कि उस इंजीनियर ने उसी केम्पस में ठिकाना किया जहाँ वो तथाकथित वो खूबसूरत लड़की रहती थी।

लड़की ने जांचा – परखा और उस धीरज नाम के इंजीनियर पे अपना पैंतरा चला दिया।  धीरज जवान था।   उसके पास पैसा था। अच्छी नौकरी थी।  बस कमी थी तो एक अदद सुन्दर प्रेमिका की।  लड़की और लड़के के नैन मिले।  होठं मिले।  और फिर गोरखपुर के होटल में जिस्म मिले। लड़का खूबसूरत प्रेयसी पाके निहाल हो गया।  और लड़की पैसे वाला प्रेमी पाके मचल उठी।

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कहते हैं, लड़की जब  मचलती है तो मनचलो के मन भी मचलने लगते हैं।

उस लड़की के साथ भी ऐसा हुआ। लड़की ठहरी खिलता फूल वो भी महक से तरबतर।  उसे अपनी महक लुटाने में कोई कमी नज़र नहीं आई। जितना लुटाती वो उतना ही महक उठती।

मनचलो में एक था ‘सौम्या के सर’। सौम्या उसके कज़िन की  लड़की थी  जिसे ट्युसन पढ़ाने ‘सौम्या के सर’ आते थे। दूसरा मनचला था एक कालेज का प्रौढ़  प्रिनिसिपल। आखिर लड़की किसी अनुभवी के साथ का अनुभव  भी  बटोर लेना चाहती थी।

और भी मनचलो  के मन लड़की की बतख चाल पे लट्टू हुए होंगे। नाचे होंगे। पर हमारे ज्ञान के दायरे से वो परे की चीज़ रहे।

लड़की जब कमल से मिलती तो धीरज से बहाने बाजी। और जब धीरज से  मिलती तो कमल से बहाने बाजी। कहतें हैं लड़कियों के पास आंसू नाम के वो हथियार हैं जिससे वो संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति को भी हरा सकती हैं। लड़की ने अपनी ताक़त को  पहचाना और विजय पे  विजय हांसिल करती रही।

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कहतें कहतें हैं वक़्त राज खोल देता है।

धीरज ने कहा वो कमल से न मिले। लड़की ने न नुकुर के बाद मान लिया। आखिर उसे उच्चशिक्षा के  लिए मार्ग पे जो चलना था।  लड़की ने धीरज से कहा उसका एडमिशन M.B.A. में करा दो दिल्ली में। मैं  खुद – ब  –  खुद  कमल से दूर हो हो जाउंगी।

धीरज प्यार करता था लड़की से।  फिर  क्योंकर न मानता वो अपनी प्रेयसी की बात।  लड़की दिल्ली पहुँच गई।  बड़ा शहर।  बड़ा कालेज।  लड़की के  पंख लग गए।  वो आसमान में उड़ चलि।

धीरज मुंबई चला गया। कंपनी ने  तबादला कर दिया। वैसे भी वो गोरखपुर में अब क्या करता।  उसकी प्रेयसी तो अब दिल्ली में थी उच्च शिक्षा के लिए।  धीरज अपनी प्रेयसी की पढ़ाई डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था सो वो दिल्ली कभी – कभी ही गया।  हाँ फोन पर वो अपनी प्रेयसी से जरूर रोज बात करता।  धीरज बिना किसी व्ययधान के लड़की के लिए पैसा भेजता। लड़की की जरुरत से कहीं ज्यादा।  वो लड़की से प्यार जो करता  था। सच्चा प्यार ।

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लड़की M.B.A. कर चुकी थी। जॉब भी लगी थी।

अब शायद उसे धीरज की जरुरत नहीं थी। उसे जय नाम का मनचला मिल चूका था। अच्छा – खासा जॉब। बड़ा घर। लड़की उस से मिली और उसपे अपनी महक लुता दी । जय उसका दीवना बन गया । बात शादी तक पहुञ्ची । लड़की फट से राज़ी हो गई।  आखिर उसे बचपन में  अपनी माँ की कही वो बात – ‘तूँ बड़ी होकर जो अच्छी लड़की बनोगी तो तुम्हे भी एक पति मिलेगा’ – सच जो करनी थी।

पर एक दिन जय ने लड़की के मोबाईल में धीरज का मेसेज देख लिया।  प्यार के शब्दों का मेसेज। लड़की तो अब उच्च शिक्षित थी।  आंसू के हथियार तो साथ थे ही।  दोनों का इस्तेमाल किया।  और उसने जय के सामने धीरज का वो खाका खींचा कि जय का प्यार उस लड़की पे और गाढ़ा हो गया।

लड़की ने धीरज का जो खाका खींचा वो कुछ यूँ था — धीरज उसे तंग करता है। फोन करके  परेशान करता है।  उसकी ज़िन्दगी नरक बना चूका है।  से गाली देता है। और उसे मरता – पीटता  है।

जय ने लड़की लड़की से कहा – ‘ठीक है यही एक बार मेरे सामने धीरज से कहो।  उसे ज़लील करो।’ लड़की ने सोचा उसे अब धीरज की जरुरत तो नहीं। सो वो जय की बात मान गई।

लड़की ने धीरज को जी भर जय के सामने ज़लील किया। धीरज चुचाप सुनता रहा।  और वहां से चला गया।  बिना कुछ कहे।  वो लड़की से प्यार जो करता था।  सच्चा प्यार।

धीरज को लड़की के मम्मी और भाई भी जानते थे। धीरज ने उन्हें अपना माना था। उनकी मदद की थी। लड़की के भाई को पढ़ाया था।  B.C.A.करवाया था।

लड़की की मम्मी ने खुश होकर धीरज को फोन किया।  लड़की की शादी की बात बताई। और दहेज़ के लिए उसकी सहयता मांगी। धीरज तयार हो गया।  वो लड़की से प्यार जो करता था।  सच्चा प्यार।

धीरज ने एक बड़ी रक़म लड़की की मम्मी के एकाउंट में डाल दी।  लड़की की शादी के दहेज़ के लिए।  वो उसे प्यार जो करता था।

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लड़की की इंगेजमेंट हो चुकी थी।  शादी की डेट भी फिक्स हो गई। लड़की ने धीरज को इन्फॉर्म नहीं किया। जरुरत ही नहीं थी उसे।

शादी के दो दिन पहले लड़की और उसके करीबी सफर पे निकले।  शादी का सफर। बोकारो का रास्ता। जय का शहर जो यही था।

मैं भी सफर में था। मैं लड़की का करीबी जो था। उसके लड़कपन का दोस्त। लड़की  ने मुझे देखा। और मुस्करा कर बोली – ‘देखो मेरे पास सब कुछ है। एक पति भी मिलने जा रहा है। मै अच्छी लड़की जो हूँ।  और खूबसूरत भी।’

मैने देखा तो  लड़की मुझे खूबसूरत लगी। मैने उसकी बात मान जो ली थी।

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लड़की की शादी हो गई।

मुझे अचानक  एक लेखक मिल गया। मैने उसे लड़की की कहानी सुनाई।  लेखक ने एक कहानी लिखी। शीर्षक था – ‘खूबसूरत अंजलि उर्फ़ बदसूरत लड़की।’

मैं मान गया लड़की खूबसूरत नहीं थी।  ये एक साहित्यकार ने जो कहा था।

लड़की का नाम अंजलि था।

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सुधीर मौर्य

ग्राम और पोस्ट – गंज जलालाबाद

जनपद – उन्नाव

उत्तर प्रदेश – २०९८६९

sudheermaurya1979@rediffmail.com

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