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लोग समझते पत्रकार हैं।।
ग्रामीण पत्रकारों का भोर, अख़बार संग में होता है।
खबर न छूटे कोई धोखे से, भयवश मन से सोता है।।
कोई न जाने क्या मिलता, पैसा मिलता या बेरोजगार हैं।
हम ————————————————————–।।
पास में आईकार्ड नहीं, खर्च नहीं कोई मिलता है।
जब भी इसकी मांग करो, अधिकारी सुन के बिगड़ता है।।
कोई साथ निभाता ना, पत्रकार कुछ चाटुकार हैं।।
हम ————————————————————–।।
दिखना मिलना और लिखना, खबर भेजना काम है।
सारा कुछ मैनेज करने में, लगता अपना दाम है।।
छोटों के लिए पत्थर दिलवाले, सम्पादक बड़कवा पत्रकार हैं।
हम ————————————————————–।।
खबर भेजनी की गारण्टी, छपवाना वश की बात नहीं।
वरिष्ठ लोग करते मनमानी, होते उनमे जज्बात नहीं।।
पत्रकारिता के कार्यक्रम, छपते नहीं कूड़ा कबार हैं।
हम ————————————————————–।।
‘परदेशी’ पत्रकारिता बिन, मन को आता चैन नहीं।
दिन कट जाये मुंह लटकाकर, रात को आये नींद नहीं।।
ग्रामीण पत्रकारों का शोषण, ना जाने कितने शिकार हैं ।।
हम ————————————————————–।।
मौलिक रचना
सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’
ग्रामीण पत्रकार ‘हिन्दुस्तान’
बघौली (हरदोई) उत्तर प्रदेश
रचना समय- ०७:२१ सायं , दिनांक- ०१ जून 13
स्थान- लखनऊ-हरदोई मार्ग स्थित सहज जनसेवा केन्द्र सुन्नी निकट बघौली चौराहा
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