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दिन-27 मार्च।एक तरफ,पठानकोट एयरबेस पर जनवरी में हुए आतंकी हमले की जांच के लिए पाकिस्तान से पांच सदस्यीय टीम भारत पहुंचती है।पाक सरकार द्वारा यह कदम उठाया जाना आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई का सकारात्मक संदेश दे रही थी।लेकिन,उसी दिन पाकिस्तान के लाहौर में ईस्टर के पवित्र दिन आत्मघाती विस्फोट में 60 से अधिक लोगों की जानें गईं,जबकि सैकड़ों लोगों के हताहत होने की खबर आयी।संभवतः यह घटना बदले की भावना से प्रेरित प्रतीत हो रहा है।आज,पूरे विश्व में आतंकवाद का जाल फैला हुआ है।जबकि,इसके मुकाबले इससे निपटने के लिए उचित,ठोस और टिकाऊ उपाय नहीं किये जाने से सैकड़ों लोगों को अपने जीवन की असमय कुर्बानी देनी पड़ रही है।अभी महज एक हफ्ते पूर्व,ब्रुसेल्स(बेल्जियम)में आतंकियों ने दर्जनों निर्दोषों की मौत के साथ खून की होली खेली थी और चंद दिनों के अंतराल पर अपने करतूतों(क्रुरतम) से आतंक और दहशत की अपनी किताब में एक ओर नया अध्याय जोड़ लिया।मौत के ऐसे सौदागरों को ना तो अल्लाह,भगवान माफ करेंगे और ना ही प्रभु ईसा मसीह।आखिर,मानव जाति में जन्म लेने वाले लोग इतने क्रुर और राक्षसी कैसे हो सकते हैं?इंसानियत का गला घोंटने वाले ऐसे लोग मनुष्य तो नहीं कहे जा सकते।सभी आतंकी घटनाओं को केंद्र में रखकर सोचा जाय,तो सभी घटनाओं का सबसे शर्मनाक पहलू यह होता है कि मौत का तांडव मचाने के कुछ घंटे बाद ही इसकी जिम्मेदारी कोई न कोई आतंकी संगठन ले लेता हैं।इसका साफ मतलब यह हुआ कि निर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले यह खुली तौर पर स्वीकार करते हैं कि उन्होंने ही यह अक्षम्य पाप किया है।ना कोई डर और ना ही कोई पाश्चाताप।आखिर इतनी निर्भिकता कैसे और क्यों?आइएस,बोकोहराम,अलकायदा जैसे चंद आतंकी संगठनों ने मानवता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को लगातार चुनौती दे रहे हैं।आश्चर्य तो तब भी होता है,जब पढ़े-लिखे एवं समझदार नौजवान आतंक का दामन थामते हैं और बड़ी आसानी से अपने पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों को दरकिनार कर फिदायीन हमले में स्वयं तो मरते ही हैं,लेकिन कई निर्दोषों को भी मौत की भट्ठी में झोंक जाते हैं।आतंकवाद तेजी से उभरती सबसे बड़ी वैश्विक समस्या के रुप में परिवर्तित हो रहा है।यदि,साझे प्रयासों से ठोस कदम उठाकर इसका ससमय और समूल खात्मा नहीं किया गया,तबतक लोगों के लिए चैन की नींद लेना दूभर हो जाएगा।
सुधीर कुमार
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