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वर्तमान में जब,आइएस और बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठन ने विश्व के अनेक राष्ट्रों को नाकों दम कर दिया है,तब उत्तरी कोरिया के हाइड्रोजन बम के परीक्षण के दावों ने संसार में खलबली मचा दी है।आतंकवाद का यह स्वरूप अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली है।तानाशाही रवैये तथा अपनी क्रूरता के लिए मशहूर,उत्तरी कोरिया के किम राजवंश के लिए यह नयी बात नहीं है।1948 में दोनों कोरियाई देश अलग हुए,लेकिन दोनों देशों में हमेशा छत्तीस का आकडा रहा है।इस तानाशाही राष्ट्र(उत्तरी कोरिया) में मीडिया पर पाबंदी है।ऐसे में खबरें छनकर आती हैं,लेकिन,जो भी खबरें वैश्विक स्तर पर आती हैं,वे हडकंप जरुर मचाती हैं।चाहे बात,वहां के सैनिक प्रमुख ह्योंग योंग के झपकी लेने पर ‘सजा ए मौत’ देने की हो या किम जोंग उन के अपने फूफा जांग सोंग थाएक की हत्या की खबर।अमेरिका,फ्रांस,चीन,ब्रिटेन और रुस जैसे देशों की जमात में शामिल होकर,उत्तरी कोरिया का परमाणु बम से हजार गुना शक्तिशाली तथा विनाशकारी हाइड्रोजन बम के निर्माण और परीक्षण की खबर से मानव समुदाय मर्माहत है।इस बाबत,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को आपात बैठक बुलानी पडी,तो दूसरी तरफ,अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आंसु निकल पडे।विश्व के अनेक देशों ने इस कदम की आलोचना भी की है।लेकिन अमेरिका और रुस जैसे देशों को इसकी आलोचना का हक नहीं बनता,जिन्होंने वर्षों पूर्व इस बम का निर्माण कर लिया है।1945 में अमेरिका का जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम के हमले के बाद यहां,आज आलम यह है कि नयी पौध अपंगता साथ लेकर पैदा होती है।ऐसे में हाइड्रोजन बम के विस्फोट से तबाही का कैसा मंजर सामने आएगा,इसका जवाब भविष्य के गर्भ में है।लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद के मानकों का उल्लंघन कर विभिन्न राष्ट्रों का तानाशाही रवैये से संसार में अमन,चैन और भाईचारे की वैचारिकी धुंधली पडेंगी तथा मानव समाज में तबाही की एक नयी इबारत लिखने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।तकनीक का यह दुरुपयोग अंत में मानव समाज के लिए प्राणघातक सिद्ध होगा।
▪सुधीर कुमार
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