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ट्राई का फैसला सराहनीय

आहत हृदय
आहत हृदय
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1600ईं में व्यापार के उद्देश्य से भारत आयी,ब्रिटेन की ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने देखते ही देखते चंद वर्षों में एक स्वाधीन राष्ट्र को सामाजिक तथा आर्थिक रुप से गुलाम बना लिया था.फिर तो भारतीयों पर जुल्म की इंतेहां हो गयी.आजादी के सात दशक बाद एक बार फिर भारतीयों को तकनीकी रुप से गुलाम करने की साजिश रची जा रही है.दुर्भाग्य यह है कि इसमें विदेशी कंपनियों के साथ,कुछ भारतीय कंपनियां भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.फेसबुक का ‘फ्री बेसिक्स’ और एयरटेल का ‘एयरटेल जीरो’ उसी कडी का एक छलावा मात्र है.कुछ दूरसंचार कंपनियां,अपनी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने की बजाय,गलत तरीके से लाभार्जन को महत्ता दे रही है.इसलिए,वे नेट निरपेक्षता का विरोध कर रही हैं,ताकि उपभोक्ताओं की मजबूरी का फायदा उठाकर,अवैध रुप से लाभ कमाया जा सके.कॉल रेट और नेट पैक की कीमतें दिनोंदिन बढ़ाईं जा रही हैं.मोबाइल,लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बन गया है.ऐसे में,सिम प्रदाता कंपनियां,जो भी कीमतें तय करती हैं,हमें मानना पड़ता है.इस तरह भी हम शोषित होते हैं.टेलीकॉम ऑपरेटरों को सभी को इंटरनेट की समान सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए.ग्राहकों को इंटरनेट पर सर्फिंग की आजादी मिलनी चाहिए.किसी सामग्री,एप्स या वेबसाइट के लिए अतिरिक्त कीमतों की बात,गले नहीं उतर रही.स्पीड को लेकर भी कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.हालांकि,ट्राई के हस्तक्षेप के बाद,नेट न्यूट्रीलिटी(नेट निरेपक्षता) का विरोध करने वालों को गहरा झटका जरुर लगा है.लेकिन लगता नहीं कि वे हार मानेंगे.ऐसे में ‘डिजिटल इंडिया’ का सपना पूरा होने से रहा.इस तरह,कंपनियों को मुहमांगी छूट मिली,तो आम व्यक्ति के लिए मोबाइल फोन रखना भी दूभर हो जाएगा.फिलहाल,ट्राई सही ट्रैक पर है.ट्राई को अपने स्टैंड पर कायम रहना चाहिए.

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