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(4 उदाहरण:सामाजिक बदलाव के नायक/नायिकाओं के)
समाज निरंतर गतिमान है।समृद्धि,सुख की लालसा व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।समाज का एक बड़ा वर्ग जीवन के भौतिकवादी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बेचैन(परेशान) है।जबकि,इसी समाज में चंद लोगों का एक ऐसा भी समूह है,जो बिना लोक-लाज के समाज के उत्थान हेतु प्रयासरत हैं।यह वर्ग ना तो मीडिया की नजर में आना चाहता है और ना ही अथाह संपत्ति अर्जित करना चाहता है।बल्कि गुमनाम होकर अपने कार्यक्षेत्र में लगा रहता है।उनकी कोशिश समाज व देश को अधिक से अधिक देने की होती है।अगले चार उदाहरणों के माध्यम से हम ऐसे ही बदलाव के नायकों से रुबरु होंगे।आजादी के सात दशक बाद भी भारतीय समाज का एक वर्ग मुलभूत आवश्यकताओं की पहुंच से कोसों दूर है।हालांकि,इनके कल्याणर्थ सैकड़ों योजनाओं को सरकार राष्ट्रीय पटल पर उतार चुकी है,लेकिन छोटी-छोटी बाधाओं से उनका संपूर्ण कल्याण नहीं हो सका।हां,’विकास’ के नाम पर कोई उनका घर उजाड़ने,तो कोई व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए उनका नजायज इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं रहा।स्वार्थ की राजनीति के कुचक्र में पिसते इस वर्ग की किसी को तनिक भी फिक्र नहीं।हम स्वयं भी झुग्गी बस्तियों तथा रेड लाइट एरिया में रहने वाले लोगों को हिमाकत भरी दृष्टि से देखते हैं।हां,हमारे नेतागण चुनाव से पूर्व इन क्षेत्रों में लोगों के समक्ष हाथ जोड़कर वोट मांगते जरुर नजर आ जाते हैं।
1.अभी हाल ही में शिक्षकों के लिए वैश्विक पुरस्कार के लिए नामित विश्व के शीर्ष दस लोगों में स्थान बनाने वालों में एक भारतीय का भी नाम शामिल था।यह जानकर गर्व हो सकता है कि उसमें देश की एक महिला शिक्षिका ने भी स्थान हासिल किया था।वह शिक्षिका,किसी नामी-गिरामी स्कूल में नहीं पढ़ाती हैं और ना ही मोटी पगार ही कमाती हैं।मुंबई में शहर के रेड लाइट एरिया की लड़कियों के लिए एक गैर-सरकारी स्कूल चलाने वाली राॅबिन चौरसिया आज विश्व के लिए एक मिसाल बन गई हैं।आखिर रेड लाइट एरिया में रहने वाली वे सैकड़ों बच्चियां भी तो देश की बेटी ही हैं,जो ‘बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ’ अभियान के दायरे में आती हैं।फिर उनके साथ सौतेला व्यवहार क्यों?क्या उन्हें शिक्षा,स्वास्थ्य सहित अन्य अधिकारों का भागीदार न बनाया जाय?इसका जवाब समाज व सरकार से अपेक्षित है।लेकिन,शिक्षिका का यह प्रयास तारीफ योग्य है।राॅबिन ने यह साबित किया है कि समाज में बदलाव की चाहत रखने वाले लोगों में एक पहल करने का जज्बा होना चाहिए।सकारात्मक सोच के साथ किया गया एक सार्थक प्रयास परिवर्तन की आधारशिला रख देता है।बदलाव का वाहक बनने के लिए जरुरी नहीं कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठा ही जाए।एक आम आदमी भी अपने स्तर से सामाजिक कल्याण की भावना से समाज को बदल सकता है।जरुरत बस मजबूत इच्छाशक्ति और निरंतरता की है।
2.दशरथ मांझी,एक आम इंसान थे,कुछ नहीं था उनके पास।आज अटल इरादों के कारण अनुकरणीय बन चुका उनका नाम लोगों को असंभव को संभव बनाने की प्रेरणा देता है।पत्नी-प्रेम कहिए या कुछ कर गुजरने की तमन्ना,अपने अथक प्रयासों से फौलादी पहाड़ को तोड़ बना डाला था।उस पहाड़ को,जो गांव में सड़क के ना होने तथा शहर के बीचोंबीच होने के कारण,न जाने कितने ही निर्दोषों के मौत का कारण बना था।भूख-प्यास से अनभिज्ञ दशरथ जी ने लगभग 22 वर्षों तक एक ही पहाड़ के पीछे पड़कर उसके घमंड को चकनाचूर कर डाला था।दशरथ जी के गांव में सड़क के ना बनने से परेशानी तो सबों को हो रही थी,परंतु सब सरकार पर यह काम डाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते थे।परंतु दशरथ जी ने उन लोगों और सरकारी विभाग के कर्मचरियों की शिथिलता पर हथोड़े से प्रहार किया;जिनके कानों में जूँ तक नहीं रेंगती।इस तरह,उन्होंने मानव समुदाय को भी उनकी क्षमताओं का भी आभास करा दिया और साबित किया कि मनुष्य की इच्छाशक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं।आज हम उनके बलिदानों को याद कर गर्व महसूस करते हैं।
3.अहिंसा के पुजारी,महात्मा गांधी ने अपना सारा जीवन समाज के वंचित वर्गों की सेवाओं में समर्पित कर दिया।एक धोती और एक लाठी लिये समाज को बदलने निकल पड़े।चुनौतियां अनेक थीं।पग-पग पर कांटे भरे थे।अंग्रेजों का साम्राज्य था,हाथ में कुछ नहीं था।लेकिन,समाज-सुधार को संकल्पित गांधी ने देश को आजादी तथा सामाजिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का सार्थक प्रयास किया।आज हम उन्हें राष्ट्रपिता के तौर पर याद करते हैं।
4.मदर टेरेसा को ही ले लीजिए।अल्बानिया में जन्मी इस महिला ने अपना सारा जीवन दीन-दुखियों व गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया।उनका योगदान के देखते हुए 1979 में उसे शांति का नोबेल पुरस्कार जबकि भारत सरकार ने भी उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।हाल ही में कैथोलिक ईसाइयों के शीर्ष धर्मगुरु पोप फ्रांसीस ने 4 सितंबर को मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि देने का फैसला किया है।यह उपाधि आम नहीं है।’संत’ की उपाधि दिये जाने की प्रक्रिया काफी व्यवस्थित और समयसाध्य है।इस प्रक्रिया में ‘संत’ घोषित करने के चार चरण होते हैं।पहले चरण में व्यक्ति को ‘प्रभु का सेवक’ घोषित किया जाता है।दूसरे चरण में ‘पूज्य’ माना जाता है।तीसरे चरण में पोप द्वारा ‘धन्य’ माना जाता है।’धन्य’ घोषित करने के लिए एक चमत्कार की पुष्टि होना जरुरी है।और अंतिम चरण में ‘संत’ घोषित किया जाता है।इसके लिए दो चमत्कार की पुष्टि होना आवश्यक है।मदर टेरेसा के मिशन ने न जाने कितने लाभुकों का उद्धार किया।बलिदान की ऐसी मिसाल इतिहास में बरबस ही देखने को मिलता है।
इसी तरह,राजाराममोहन राय,ईश्वरचंद विद्यासागर,दयानंद सरस्वती,अन्ना हजारे समेत अनगिनत उदाहरण हमारे समाज में भरे पड़े हैं।इन उदाहरणों से प्रेरणा लेकर इच्छुक लोगों द्वारा समाज के वंचित,शोषित व पिछड़े वर्ग के लोगों के कल्याण हेतु एक पहल की जाती है,तो सामाजिक-आर्थिक असमानता की ऐतिहासिक खाई को पाटा जा सकता है।जरुरत एक कदम उठाने भर की है।फिर तो कांरवां बढ़ता ही चला जाएगा।
सुधीर कुमार
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