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जनसंख्या विस्फोट के साइड इफेक्ट

आहत हृदय
आहत हृदय
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जनसंख्या विस्फोट के साइड इफेक्ट

वर्तमान समय में जनसंख्या विस्फोट की समस्या समस्त विश्व के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।अनुमान है कि 2050 तक विश्व की आबादी 9.6 अरब तक पहुंच जाएगी।जनसंख्या नियंत्रण के तमाम प्रयासों को अपनाने के बाद भी अधिकांश विकसित देशों को भी मनमाफिक सफलता नहीं मिली है।उत्पादन प्रणाली में सुधार और स्वास्थ्य क्षेत्र में तरक्की से मृत्यु दर में कमी तो आयी है लेकिन जन्म दर अब भी उच्च बना हुआ है।भारत,जनांकिकीय संक्रमण के द्वितीय चरण में है,जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं के विकेंद्रीकरण से मृत्यु दर में कमी तो आयी है परंतु जन्म दर घटने का नाम ही नहीं ले रही है।उम्मीद की जानी चाहिए कि वह समय दूर नहीं जब हम चीन और जापान जैसे देशों के खेमे अर्थात जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में प्रवेश कर जायेंगे;जहाँ जन्म और मृत्यु दर दोनों में कमी आ जाती है।पहली नजर में ऐसा लगता है कि ऐसा होना देश के लिए हितकारी है परंतु इसके दूरगामी परिणाम कई समस्याओं को जन्म देती है।आपको पता होगा कि आज चीन अपने देश में वृद्ध होती जनसंख्या के कारण चिंतित है।जन्म और मृत्यु दर में तीव्रतर कमी के कारण नीचले आयु स्तर के बच्चों की संख्या में कमी आती है तो दूसरी तरफ पूर्व की कार्यशील जनसंख्या अब वृद्ध हो चुकी होती है जो बाद में किसी देश की सरकार के लिए माथे का दर्द बन जाती है।दूसरी ओर विशाल जनसंख्या बोझ बन जाती है।
बढती जनसंख्या,उपलब्ध संसाधनों और पर्यावरण पर दबाव डालती है।बढती जनसंख्या के आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्यावरण क्षरण की प्रक्रिया लगातार जारी है।कृषिगत और औद्योगिक उत्पादन की आशा में बडे पैमाने पर जंगलों का सफाया हुआ है।मनुष्य अपने वर्तमान की सुख-सुविधाओं को प्राथमिकता तो दे रहा है लेकिन अंधकारमय भविष्य की ओर कदम भी बढा रहा है।एकाधिकारवादी औद्योगिक विकास की दिशा में कदम बढाते वैश्विक राष्ट्रों ने पर्यावरण की सुरक्षा को दोयम दर्जे की चीज बना दी है।याद रखना होगा कि अनियंत्रित रुप से विकसित उद्योग व कल-कारखाने मानवों के विनाश की आधारशीला रख रहे हैं।कार्बन उत्सर्जन,वायु प्रदूषण व औद्योगिक कूडे-कचरे के दुष्प्रभाव तथा अन्य कारकों के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा(औसत आयु)लगातार कम हो रही है।पृथ्वी का क्षेत्रफल और उपलब्ध संसाधन की मात्रा सीमित है लेकिन जनसंख्या हर साल बढती ही जा रही है।विद्वान माल्थस ने भी अपनी चर्चित थ्योरी(सिद्धांत) में कहा था कि किसी प्रदेश की जनसंख्या ज्यामितीय रुप(1,2,4,8…)से बढती है जबकि संसाधनों में वृद्धि गणितीय रुप(1,2,3,4…) से होती है।शायद इसी चिंता के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस साल पर्यावरण दिवस की थीम भी रखी थी-‘सात अरब सपने,एक ग्रह,देखभाल के साथ उपभोग’ ताकि लोग पर्यावरण संरक्षण को आगे आकर अपनी जीवनावधि बढाने में यथासंभव योगदान दे।ग्रह एक ही है और सात अरब लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करनी है,इसलिए पृथ्वी के सेहत का ख्याल रखा जाए और उपलब्ध संसाधनों का सोच-समझ कर तथा आवश्यकतानुसार खर्च किया जाए ताकि आने वाली पीढियों को भी कुछ नसीब हो।पृथ्वी पर उतनी क्षमता है कि समस्त जनसंख्या के आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है,लेकिन शर्त यह है कि इसे बीमार न पडने दिया जाए।महात्मा गांधी ने एक बार कहा भी थी कि हमारे पास पेट भरने के लिए सबकुछ है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।बढती जनसंख्या के लिए भोजन व अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना किसी चुनौती से कम नहीं है।जब सरकार इस अपेक्षा पर खरा उतरने में नाकाम होती है तब अपने ही समाज के पढे-लिखे नौजवान वामपंथी रुख अपनाकर सरकार की नीतियों का हिंसक और अहिंसक तौर पर विरोध करते हैं।
आजादी के पहले देश की जनसंख्या महज 30 करोड के आसपास थी।1951 के बाद भारत की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।1951-81 भारत में ‘विस्फोटक अवधि’ के रुप में जाना जाता है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केंद्रीकृत नियोजन प्रक्रिया द्वारा लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक दशाएं सुधरने लगी जिससे शिशु मृत्यु दर में कमी आई लेकिन प्रजनन दर अब भी उच्च बना रहा।देश में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के प्रयास जारी हैं।दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर सराहनीय सफलता प्राप्त की है।केरल,तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में वृद्धि दर में सर्वाधिक गिरावट आई है।वहीं,उत्तर भारत के राज्यों विशेषकर बिहार,राजस्थान,हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जनसंख्या की वृद्धि दर अब भी उच्च बना हुआ है।
बढ़ती जनसंख्या समाज में भिन्न प्रकार की समस्याओं को जन्म देती है।बढती जनसंख्या को बोझ न समझकर उसे मानव संसाधन के रुप में विकसित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है;तभी वह मूल्यवान बन पाएगी।भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उचित प्रबंधन के अभाव में बेरोजगारी की लौ में मरने को विवश है।यदि उनको प्रशिक्षित किया जाय,रुचि के अनुसार प्रशिक्षण सहित आवश्यक कौशल,कला,निपुणता का संचार किया जाय तो विशाल जनसंख्या बोझ ना बनकर भारत को विकसित बनाने में अहम योगदान देगा।
दूसरी तरफ,जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में जमीनी स्तर पर काम करने की कोशिश करने की जरुरत है।चीन,जापान जैसे विकसित राष्ट्रों ने जनसंख्या नियंत्रण के ठोस उपायों को अपनाकर इस दिशा में सार्थक कदम उठाया है।भारत जैसे विकासशील देश इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाने में नाकाम रहे हैं।इसलिए,परिवार नियोजन के तरीकों की सुलभता के अभाव में लोग इसे अपनाने से भाग रहे हैं।परिवार नियोजन को हर घर तक पहुंचाना आज समस्त विश्व की आवश्यकता है।इसकी सुविधाएं जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने और महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।स्वास्थ्य सुविधाओं के विकेंद्रीकरण और मुफ्त स्वास्थ्य शिविर का आयोजन अच्छा प्रयास हो सकता है।शिक्षा,जागरुकता के प्रसार के बाद ही स्थिति नियंत्रण में हो सकती है।एक बच्चे वाले परिवारों के भविष्य को सुरक्षित रखने के प्रयास तथा उन्हें सम्मानित कर देशवासियों को इस दिशा में बढने के लिए प्रेरित करना फायदेमंद साबित हो सकता है।यह तो नहीं कहा जा सकता है कि भारत की बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर यहाँ के नागरिक बच्चे पैदा ही ना करें लेकिन बच्चे को जन्म देने से पूर्व अपनी आमदनी,हैसियत और परिस्थिति का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।हर दंपति को चिंतन करना चाहिए कि आने वाले बच्चे को वे सुंदर और सफल जीवन उपलब्ध करा पायेंगे जिसमें वह सुखी,उद्देश्यपूर्ण और सार्थक जीवन बीता सके।कहीं ऐसा ना हो कि हमारे दयनीय हालात उसके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधक बने और कहीं उसका हंसता-खिलता बचपन बर्बादी की भेंट न चढ़ जाऐ।देश के हर बच्चे को स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है क्योंकि देश को उसकी सख्त जरुरत है,देश का वह भविष्य है।जब छोटे-छोटे बच्चे कुपोषण से ग्रसित होते हैं या भूखे-प्यासे अपनी दयनीय अवस्था में मटमैले शरीर के साथ दो जून रोटी के लिए तड़प रहे होते हैं तो हर किसी को पीड़ा होती है।

लेखक–
सुधीर कुमार

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