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नवरात्र के बहाने स्त्री-सुरक्षा का लें संकल्प

आहत हृदय
आहत हृदय
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नवरात्र के बहाने स्त्री-सुरक्षा का लें संकल्प
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भारत में घटता लिंगानुपात चिंता का सबब बन गया है।भारत ही नहीं,दुनिया के अधिकांश देशों में यह समस्या महामारी का रुप लेता जा रहा है।किसी देश का लिंगानुपात उस देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का संकेतक होता है।इस दृष्टि से प्रति हजार पुरुषों के बरक्स 940 स्त्रियों के साथ भारत की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है।राज्यवार देखें तो हरियाणा,पंजाब,बिहार,झारखंड में स्थिति ज्यादा विकट है।इन प्रदेशों में पितृसत्तात्मक सत्ता के कारण अत्यधिक पुत्र मोह की भावना और कुकुरमुत्ते की तरह खुले क्लिनिक में अवैध और चोरी-छिपे होने वाले भ्रूण जांच के कारण असंख्य बच्चियां अपनी मां के उदर के बाहर का संसार देखे बिना दम तोडने पर मजबूर हो जाती हैं।दुर्भाग्य यह भी है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है,वहाँ देवताओं का निवास होता है की अवधारणा पर चलने वाले इसी भारतीय समाज में आज भ्रूण हत्या,ऑनर किलिंग,घरेलू हिंसा और दुष्कर्म जैसी घिनौनी घटनाएं होती हैं।इन घटनाओं से महिलाएं स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।आखिर हम स्त्रियों को उनके हक से वंचित क्यों कर रहे हैं?आखिर क्यों आज भी लड़कियों के पैदा होने के बाद घरवालों की नाक-भौं चढ़ने लगती हैं?क्यों लड़कों को सोने का सिक्का समझा जाता है तो लड़कियों को खोटा सिक्का?लड़कियों के जन्म लेते ही उसपर चिर-परिचितों द्वारा मानसिक यंत्रणाएं देने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है.कुछ और बड़ी होती है तो उसकी सोच पर समाज हावी हो जाता है.हद तो यह कि नौकरी-पेशा से जुड़ने के बाद भी वह स्वच्छंद जीवन की स्वतंत्रता का अनुभव नहीं ले पाती हैं। अब इन नासमझ लोगों को कौन समझाए कि ‘बेटे भाग्य से पैदा होते हैं और बेटियां सौभाग्य से’.बेटियां तो लक्ष्मी की रुप होती हैं.उनकी उपस्थिति ही तो खुशहाली की प्रतीक हैं.जो माता-पिता इस धारणा में जी रहे हैं कि लड़कियाँ बुढ़ापे में पालनहार नहीं बनेंगी,वे लड़कियों की क्षमता और समर्पण को कम आंक कर बड़ी भूल कर रहे हैं. स्त्रियों को मौका दिया गया तो वह सबल,शिक्षित और आत्मनिर्भर होकर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला रही है।जरुरत है उन्हें घर-समाज से इस दिशा में पूर्ण प्रोत्साहन की।अभी हाल में ही वायु सेना दिवस पर लड़ाकू पायलटों के रूप में महिलाओं की भर्ती जल्द होने का फैसला भी उनकी क्षमता का परिचय दे रही है।इससे पूर्व भी गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूजा ठाकुर ने अमेरिकी राष्ट्रपति को दिये गए गार्ड ऑफ ऑनर की अगुवाई कर इतिहास रच दिया था।खेल,विज्ञान,राजनीति,पत्रकारिता सभी क्षेत्रों में महिलाएं सफलता का झंडा फहरा रही है।लेकिन असंतुलित लिंगानुपात के कारण सामाजिक व पारिवारिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है।स्त्रियां मानव समाज की अभिन्न अंग हैं।तमाम साहित्य,सिनेमा व कला भी बतलाते हैं कि नारी के बिना पुरुषों का कोई अस्तित्व ही नहीं है।डा.सेमुअल जानसन के शब्दों में -‘नारी के बिना पुरुष की बाल्यावस्था असहाय है,युवावस्था सुखरहित है,और वृद्धावस्था सांत्वना देने वाले सच्चे और वफादार साथी से रहित है’। कहने को तो हम अपने देश में स्त्रियों को देवी,कल्याणी की साक्षात् स्वरुप मानते हैं.लेकिन देश की आधी आबादी आज भी कराह कर कह रही है कि ऐसे मनगढ़ंत एवं कर्णभेदी शब्दों को जबरदस्ती थोपने की बजाय हमें साधारण सी जीवन तो जीने दे दो.नवरात्र के इस पावन अवसर पर हम स्त्रियों की सुरक्षा,सम्मान व सहयोग का संकल्प ले सकते हैं और लेना भी चाहिए।हमारा यह संकल्प नवरात्र को सार्थकता प्रदान करना होगा।

▪सुधीर कुमार,
छात्र,
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
घर:-राजाभीठा, गोड्डा, झारखंड

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