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मौसम की बेरुखी से उत्पन्न खाद्यान्न संकट के मद्देनजर भारतीय खाद्य बाजार पिछले कुछ सालों से महंगाई के रंग में रंगी हुई नजर आ रही हैं।प्रायः सभी खाद्य पदार्थों में महंगाई रुपी कीड़े ने अपना घर बना लिया है।दालों का राजा अरहर दो वर्षों से आमजन की थाली की पहुंच से काफी दूर निकल गया है।जबकि,हरी सब्जियां अपनी कीमतों का अर्धशतक पूरा करने जा रही हैं।पिछले साल प्याज की कीमतों ने भारतीय बाजारों और सब्जी मंडियों में खूब कोहराम मचाया हुआ था।तब,अपेक्षाकृत कम उत्पादन होने तथा मुनाफाखोरी के चक्कर में प्याज की कीमतों ने लोगों को रुलाना शुरु कर दिया था।कई शहरों में कीमतें सौ से अधिक रुपये की हो गयी थी।ऐसे में अन्नदाताओं को यह स्थिति नागवार गुजरी।अतः इस वर्ष अत्यधिक लाभ की आशा में प्याज की पैदावार जमकर हुई।लेकिन उन्हें क्या पता था कि प्याज का अधिक उत्पादन भी उनके लिए सिर दर्द साबित होगा?
आंकड़े बता रहे हैं कि देश में इस वर्ष प्याज का बंपर उत्पादन हुआ है।यह उत्पादन विगत दो फसल वर्षों में सर्वाधिक दर्ज की जा रही है।फसल वर्ष 2015-16 में प्याज का कुल उत्पादन 203.15 लाख मिट्रिक टन से अधिक हुआ है,जो गत फसल वर्ष में उत्पादित 189.27 लाख मिट्रिक टन प्याज से कहीं ज्यादा है।कृषि प्रधान देश के लिए उत्पादन का यह स्तर निहायत ही खुशियों भरा है।लेकिन,अपनी उत्पादन के उचित दाम नहीं मिलने तथा मांग के अपेक्षाकृत कम होने से देश के लाखों प्याज उत्पादक किसानों के चेहरे से खुशी लगभग गायब ही हो गई है।यह उदासी स्वाभाविक भी है।जिन किसानों ने अपनी अर्जित संपत्ति बेचकर,पारिवारिक खुशियों को किनारे रख तथा विभिन्न स्रोतों से कर्ज लेकर इस वर्ष प्याज की खेती मन से की,वे मुनाफा न होता देख गहरे अवसाद में जा सकते हैं।दूसरी तरफ,सरकार द्वारा प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं किये जाने से बहुसंख्यक किसानों में रोष है।अब जबकि,केंद्र सरकार ने मानसून आगमन से पूर्व खरीफ के कुछ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर कृषि प्रोत्साहन को अच्छा प्रयास किया है,तो प्याज की कीमतों के बारे में समय रहते घोषणा कर दी जानी चाहिए।बता दें कि इस बार केन्द्र सरकार ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 60 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की घोषणा की।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक को मामलों देखने वाली केबिनेट कमेटी ने खरीफ विपणन वर्ष 2016-17 के लिए धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला किया।नया समर्थन मूल्य एक अक्टूबर 2016 से लागू होगा।कहीं ऐसा न हो कि हमारे किसानों का धैर्य जवाब दे दे।
आलम यह है कि उचित दाम ना मिल पाने के कारण देश के किसान रोने को मजबूर हैं।मध्यप्रदेश के नीमच,इंदौर से लेकर सतना-मैहर तक प्याज के दाम कुछ इस कदर गिर गए हैं कि यकीन ही नहीं होता।नीमच की थोक मंडी में प्याज की कीमत 20 पैसे प्रति किलो तक पहुंच गई हैं।नासिक के लासलगांव बाजार में पिछले साल जो प्याज 5500 से 6000 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बिक रहा था,वह इस वर्ष मई माह में मात्र 750 रुपये के हिसाब से बिके हैं।देश के अन्य थोक बाजारों में भी अच्छी क्वालिटी का प्याज 500 से 800 रुपये कुंतल के भाव से बिक रहा है।कीमत इतनी नीचे चली गई कि अब तो किसानों को प्याज का उत्पादन लागत भी अर्जित करना मुश्किल हो गया है।कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों के अनुसार प्याज की खेती पर प्रति किलो लागत लगभग 6.25 रुपये है, जबकि इस वर्ष मजबूरन उन्हें प्रति किलो 2 रुपये के हिसाब से अपनी फसल बेचनी पड़ रही है।यानी,प्याज की बिक्री पर किसानों को प्रति किलो 4 रुपये का घाटा हो रहा है।पिछले वर्ष,प्याज की गगनचुंबी कीमतों ने उपभोक्ताओं को रुलाया था और इस बार पातालचुंबी कीमतों ने इसके उत्पादकों को सिसकने को मजबूर कर दिया है।उत्पादन अत्यधिक हो या कम फजीहत हमारे किसान बंधुओं को ही झेलनी पड़ती है।दूसरी तरफ,देश की व्यवस्था किस तरह किसानों के लिए असंवेदनशील हो गया है।इसका नमूना बीते दिनों के एक व्यथित किसान की आपबीती सुनकर देखने को मिला।देवीदास परभाने नाम के किसान का कहना था इस वर्ष प्याज उत्पादन से लेकर पुणे स्थित एपीएमसी तक उसे पहुंचाने तक की सारी औपचारिकताओं को पूरी करने के बाद उसके पास केवल एक रुपया ही बचा।जबकि उसने कम से कम तीन रुपये प्रति किलो की उम्मीद की थी।यह प्रसंग प्रिंट,इलेक्ट्राॅनिक तथा सोशल मीडिया में कई दिनों तक छाया रहा।कमोबेश यही स्थिति हमारे अन्य किसानों के साथ भी है।इस साल बंपर फसल होने के कारण किसान औने-पौने दाम पर प्याज बेचने को मजबूर हैं।देश के बिचौलिए और मुनाफाखोर किसानों की बेबसी का नाजायज फायदा उठा रहे हैं।परिस्थिति के आगे खुद को असहाय महसूस कर रहे किसानों ने विभिन्न स्तरों पर सरकार को विभिन्न तरीकों से अपनी समस्याओं से अवगत कराकर जल्द समाधान खोजने को कहा है।दरअसल,प्याज की घटती कीमतों से देश के प्याज उत्पादक किसान हैरान व परेशान हैं।जगह-जगह वे प्रदर्शन कर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक किसानों और व्यापारियों ने सीएम फडणवीस से मदद मांगी है।इधर,वाराणसी के किसानों ने प्याज के दाम नहीं बढ़ने पर खेतों में जलाने की धमकी दी है।बनारस के किसानों का कहना है कि जब कई महीने तक प्याज की कीमत यूं ही रहेगी तो,उसे खेतों में छोड़ना ही बेहतर होगा।अन्यथा,भाड़े का खर्चा भी नहीं निकलेगा।स्थिति अधिक बिगड़ेगी तो उसे खेतों में ही जला देंगे।इंदौर में प्याज की घटती कीमतों से परेशान होकर आक्रोशित किसानों ने ठेला से बोरे में प्याज लाकर कलेक्टोरेट के सामने की सड़क पर बिखेर कर प्रदर्शन किया।सवाल यह है कि आखिर किसानों को ये सब क्यों करना पड़ रहा है?
देश में सबसे बड़ी समस्या स्थानीय स्तर पर गोदाम की व्यवस्था का ना होना है।अगर होती तो प्याज के रखरखाव के लिए किसान चिंतित नहीं होते।अधिकांश किसान इसलिए चिंतित हैं कि उनके पास भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है।दूसरी तरफ,सरकार किसानों से उचित कीमत पर प्याज नहीं खरीद रही है।अगर समय रहते प्याज को गोदाम तक नहीं पहुंचाया जाय,तो उसकी गुणवत्ता प्रभावित होगी।ससमय सरकार द्वारा फसल खरीदकर गोदामों में बफर स्टाॅक के रुप में प्याज का एकत्रण किया जाता है,भविष्य में प्याज की कमी से उत्पन्न संकट से निपटने में मदद मिलेगी।इधर,इकोनॉमिक टाइम्स में खाद्य मंत्रालय के हवाले से छपी खबर की मानें तो सरकार प्याज की बर्बादी को रोकने तथा किसानों की आर्थिक सहायता के लिए तीन राज्यों महाराष्ट्र मध्यप्रदेश तथा ओडिशा में क्रमशः 56,800 टन की स्टोरेज क्षमता बढ़ाने की तैयारी कर रही है।लेकिन,सरकार को जल्द ही प्याज उत्पादक किसानों को भरोसे में लेना होगा कि सरकार द्वारा उसके फसल को धीरे-धीरे खरीद लिया जाएगा,कृपया उसे नष्ट ना करें।अगर,इस वर्ष प्याज उत्पादकों को उसके फसल की उचित कीमत नहीं मिलेगी,तो निश्चय ही अगले साल किसान इसके उत्पादन में रुचि नहीं दिखाएंगे।ऐसे में,अगले वर्ष फिर कीमतें आसमान छुएंगी और हमारे पास हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।
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सुधीर कुमार
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