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बाढ की विभीषिका

आहत हृदय
आहत हृदय
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भारत में बाढ की विभीषिका से प्रतिवर्ष हजारों-लाखों लोग हताहत होते हैं.समय-असमय दस्तक देते इस आपदा से बडे पैमाने पर जान-माल की हानि होती है.बाढ प्रभावित क्षेत्र का दृश्य कुछ पल के लिए मरघट सा हो जाता है.एक तरफ सुरक्षित स्थानों पर जाकर अपने जीवन की सुरक्षा की चुनौती होती है,तो दूसरी ओर भोजन,पेयजल व दवा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग व्याकुल हो उठते हैं.ज्यादा दिन नहीं हुए जब दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से देश के करीबन आधा दर्जन राज्य क्षत-विक्षत् हुए थे.अब लौटते हुए उत्तरी-पूर्वी मानसून से तमिलनाडु में हुई असामान्य बारिश से राज्य में तबाही के नये मंजर देखने को मिले हैं.अनियंत्रित बाढ ने लाखों लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया.देश में आपदा प्रबंधन विभाग की सक्रियता और जांबाज सेनाओं की बहादुरी तथा तत्परता से हालात काबू में कर लिये गये.लेकिन इस आपदा ने हमारे सामने नदियों की मंद पडी गति का प्रश्न खडा कर दिया है.देश में बारहमासी नदियों के साथ-साथ बरसाती नदियां भी प्रदूषण की मानक रेखा से ऊपर बह रही हैं.गाद-मलबों की अधिकता होने के कारण उसकी प्राकृतिक गति सुस्त पड गयी है.ऐसे में हल्की बारिश होने पर नदियां जल धारण नहीं कर पाती हैं और बाढ के फैलाव का यह सबसे बडा कारण बन जाती है.ऐसे में नदी जोडो परियोजना सरकार की अच्छी पहल है,लेकिन नदियों की साफ-सफाई भी होनी चाहिए.क्योंकि जब तक देश की छोटी बड़ी नदियां स्वच्छ नहीं होंगी बाढ़ और उससे होनी वाली तबाही को काम नहीं किया जा सकता है.अत्यधिक वर्षा होने पर नदियां पानी से लबालब भर जाती हैं.वहीँ,बांधों और डैमों में छमता से अधिक जल भर जाने पर मजबूरन पानी छोड़ना पड़ता है,जो बाढ़ के रूप को और अधिक विकराल बना देती है.दूसरी तरफ आपदा प्रबंधन के लिए व्यक्तिगत जागरुकता के अभाव में लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पडता है,इसलिए हर स्तर से उन्हें इस दृष्टि से मजबूत करने की कोशिश की जानी चाहिए,तभी हालात काबू में होंगे.

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