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भौगोलिक रुप से काफी छोटा और संसाधनों की उपलब्धता के मामले में काफी गरीब राष्ट्र है,हमारा पड़ोसी देश भूटान।लेकिन आज वह पूरी दूनिया का पथ-प्रदर्शक बन गया है।दरअसल आर्थिक विकास दर को उच्च कर जीडीपी(सकल घरेलू उत्पाद) बढ़ाने की इस अंधाधुंध होड़ से इतर अपने नागरिकों की खुशी और समृद्धि को आधार मानकर भूटान अपने देश में प्रतिवर्ष जीएनएच(सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता)का मापन करता है।भूटान की इसी प्रतिबद्धता से प्रभावित होकर संयुक्त राष्ट्र संघ(यूएनओ) ने 2012 ही में प्रतिवर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की,ताकि पूरे विश्व को यह संदेश जाए कि आज जबकि बहुसंख्य राष्ट्र जीडीपी को ही विकास का आधार मान रहे हैं,वहीं भूटान ने पूरे विश्व को विकास की परंपरागत परिभाषा को छोडकर नागरिकों के अधिकतम कल्याण और खुशियों को आधार मानकर मानव विकास को लक्ष्य बनाने का संदेश दिया है।भारत के संदर्भ में बात करें तो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2016 तक विकास दर में चीन को पीछे छोड़ देगा।हमारी जीडीपी और विकास दर भी दिनोंदिन उच्च गति से बढती जा रही है।लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या इतनी उपलब्धियों के बावजूद यहां की जनता खुश हैं?115 देशों में खुशी के स्तर पर कराये गये शोध से पता चला कि भारत 111वें स्थान पर है।वहीं,देश में प्रतिवर्ष लाखों लोग अपनी व्यक्तिगत,पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं से तंग आकर आत्महत्या कर निरुद्देश्य अपनी इहलीला समाप्त कर देते हैं।यहां के लोग खुश नहीं हैं इसलिए बीमारियां भी बढती जा रही हैं।दैनिक जीवन में तनाव भी बढता जा रहा है।तो हम यह कैसे मान लें कि केवल आर्थिक संवृद्धि ही जीवन की संपूर्णता का आभास कराने को काफी है?आज लोगों को छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ते देखा जा सकता है,एक दूसरे के प्रति लोगों में विद्वेष की भावना है।साफ अर्थ यह कि आज लोग संतुष्ट नहीं हैं।क्या जीवन में पैसा कमाना ही व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य रह गया है?आज विश्व की मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों के लाखों लोग हमारे देश में धर्म,अध्यात्म,सुख और शांति की खोज में आते रहते हैं।हमें ईमानदारी से चंद पैसे कमाकर चैन की नींद लेने की कोशिश करनी चाहिए बजाय इसके कि धनाढ्य वर्ग की श्रेणी में आकर अथाह संपत्ति का एकत्रण कर,अट्टालिकाओं पर दिन के आठो प्रहर चिंता के समुद्र में डुबकियाँ लगाते रहें।
सुधीर कुमार
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