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बजट से संवरेगा मनरेगा
मनरेगा,भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है।गांवों में निवास करने वाले लाखों गरीबों के जीविकोपार्जन का यह सहारा बन चुकी है।यूपीए एक और दो के बाद एनडीए सरकार ने भी इसे बरकरार रखा है।केंद्रीय बजट 2016-17 के लिए सरकार का 38,500 करोड़ का आवंटन मनरेगा के सुनहरे भविष्य की ओर संकेत कर रहा है.यह अलग बात है कि कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धिक्कारते हुए इस योजना को ‘यूपीए सरकार की विफलताओं का एक स्मारक स्थल’ कहा था।वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस पर नकारात्मक टिप्पणी कर इसे केवल गड्ढे खोदने वाली योजना बताया था।उस समय लगा था कि इस योजना का भविष्य अधर में है,लेकिन आज एनडीए सरकार मनरेगा के तहत पिछले दस साल(डेढ़ साल एनडीए के) की उपलब्धियों को ‘राष्ट्रीय गर्व’ और ‘उत्सव’ का विषय बताकर अपना पीठ थपथपा रही है।मनरेगा का उद्देश्य बहुआयामी है.यह कई पहलूओं से जुड़ा है।ग्रामीण भारत के सशक्तिकरण की दिशा में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है.इसने,लाखों वंचित परिवारों के घरों में चूल्हा जलाने का जिम्मा उठाया है।यह मनरेगा ही है,जिसने लोगों में रोजगार की घुमंतु प्रवृति पर रोक लगा दी है।पहले की तुलना में रोजगार की खोज में विभिन्न प्रदेशों को प्रवास करने वाले लोगो की संख्या में बड़ी कमी आई है।साथ ही,इस क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी,उनके स्वालंबन की दिशा में एक कारगर कदम साबित हो रहा है.कुछ महिलाएं,मजबूरन पति पर निर्भरता छोड़ स्वयं घर चलाने का जिम्मेदारी भी ले रही हैं.यह अच्छा कदम है।महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।वर्ष 2015 -2016 में प्राप्त ऑकडों के अनुसार,मनरेगा में अब तक 57 % कामगार महिलाओं के संलग्नता की बात सामने आयी हैं।मनरेगा,रोजगार का सृजनकर्ता है।यह बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन कर रहा है।यह मजदूरों को सौ दिनों के रोजगार की गारंटी तो देता ही है,साथ में,उसके एवज में बेरोजगारी-भत्ते का भरोसा भी देता है।हां,समय के साथ सरकार की अन्य योजनाओं की तरह यह भी भ्रष्टाचार के ग्रहण से बच ना सका।उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखण्ड,छत्तीसगढ़,पंजाब और मणिपुर जैसे राज्यों से भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें आ रहीं हैं।लेकिन जॉब कार्ड की ऑनलाइन व्यवस्था और अब मजदूरों के बैंक खातों में सीधी राशि भेजने का प्रयास,इस दिशा में अंकुश लगाने का सार्थक प्रयास है।कुछ नौसिखिये ठेकेदार,मनरेगा में लूट की बुनियाद पर खुद की तरक्की का सपना देखते हैं।दिक्कत यहीं पर है।दूसरी तरफ,मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों के श्रम मूल्य का राज्यवार असमान वितरण है।जब श्रम समान है,तो मजदूरी में यह असमानता क्यों?यह तो मानव के श्रमबल का मजाक ही है।बावजूद इसके,यह योजना कल्याणकारी है।पर्यावरण संरक्षण में इसके योगदान को कम नहीं आंका जा सकता।पानी की कमी से जूझ रहे प्रदेशों में वर्षा जल के संरक्षण के लिए,मनरेगा के तहत तालाबों के निर्माण से न सिर्फ भू-जल रिचार्ज हो रहा है,बल्कि एकत्रित जल का उपयोग कृषि कार्य हेतु भी किया जा रहा है।मनरेगा के तहत चार विभिन्न प्रकार के वनीकरण और पौधा रोपण कार्य किए जाते हैं।इनमें सड़कों के किनारों पर,पंचायत या वन विभाग की भूमि,सार्वजनिक भवनों और निजी स्वामित्व वाले बगीचों में पेड़ लगाए जाते हैं.इस तरह,मनरेगा,मानवीय स्वार्थो के आगे बेबस पर्यावरण को संवार रहा है।दूसरी तरफ हम देखें,तो यह योजना,रोजगार-विमुख ग्रामीणों की लाठी बन गया है।एनसीएईआर के एक हालिया पैनल सर्वे से पता चलता है कि मनरेगा ने आदिवासियों और दलितों में गरीबी को क्रमशः 28 तथा 38 प्रतिशत तक कम कर दिया है।गुमनाम तथा निरुद्देश्य जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को सार्थक जीवन प्रदान करने में मनरेगा ने महती भूमिका अदा की है।कहा जा सकता है कि मनरेगा जीवनदाता तथा वंचितों व शोषितों की आवाज है।ग्रामीण जनसंख्या के एक बडे हिस्से के लिए मनरेगा उम्मीद की किरण साबित हुई है।यह ना सिर्फ,लाखों गरीब तथा वंचित परिवारों का पेट पाल रहा है,बल्कि उनके लिये उन्नति की नयी राहें भी दिखा रहा है।भारतीय ग्रामीण समाज में परंपरागत रुप से व्याप्त कुपोषण,गरीबी तथा बेकारी की समस्या में कमी लाने की दिशा में यह योजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।मौजूदा सरकार की इस ओर प्रतिबद्धता ग्रामीण विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।भारी-भरकम बजट द्वारा मनरेगा को संवारने का केंद्र सरकार का प्रयास स्वागत-योग्य है।वादों को धरातल पर उतारकर नियमित देखरेख से यह योजना भ्रष्टाचार से दूर रह पायेगी।
सुधीर कुमार,
छात्र व ब्लाॅगर
sudhir2jnv@yahoo.com
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