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हनुमनथप्पा जैसे जवानों से कुछ सीखें युवा

आहत हृदय
आहत हृदय
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सियाचिन ग्लैशियर से चमत्कारिक रुप से निकाले गये लांस नायक हनुमनथप्पा अब हमारे बीच नहीं हैं|डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद वे बचाए नहीं जा सके|अंतिम सांस तक इस वीर सैनिक ने देशभक्ति,समर्पण और जीवटता का जो परिचय दिया,वह विरले ही देखने को मिलते हैं|एक सप्ताह तक मौत को मात देना कोई साधारण बात नहीं है|वे मरे नहीं हैं,बल्कि उन्हें तो धरती मां ने अपने पास बुलाया है|शायद उन्हें भी ऐसे देशभक्त और बहादुर पुत्र की जरुरत थी|भारत माता के पुत्र हनुमनथप्पा समेत दस जांबाज सिपाहियों का बलिदान देश के लिए व्यर्थ नही जाएगा|दुर्गम व विपरीत परिस्थितियों में भूख,प्यास,परिवार और जीवन की परवाह किये बिना भी देश की रक्षा का बीड़ा लेने वाले ऐसे देशभक्तों की सलामी को स्वतः ही हाथ उठ जाते हैं.इन जवानों पर देश को फख्र है.शहीद नायकों ने देशभक्ति का ऊंचा मानक तय किया है|विडंबना यह है कि हम जवानों के शहादत की कीमत नहीं समझ रहे हैं|तभी तो,राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं|अगर,इस तरह की गुटबाजी,भीतरघात देश में होता रहा,तो एक दिन हमारे सैनिकों का धैर्य भी जवाब दे देगा|दुर्भाग्य है कि कुछ लोग,देश की एकता व अखंडता की रक्षा की बजाय,उसे तोड़ने पर आमदा नजर आ रहे हैं|बीते दिनों प्रतिष्ठित ‘जेएनयू’ में जो कुछ हुआ,वह निंदनीय है|कुछ छात्रों ने अपने देशद्रोही मानसिकता से ‘अखंड भारत’ तथा देश के ‘न्याय व्यवस्था’ की तौहीन करने की कोशिश की है|आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाना और राष्ट्र विरोधी नारे लगाना कुत्सित मानसिकता की उपज है|युवा छात्रों के इस हरकत से देश शर्मिँदा है|ऐसे युवाओं को उन बहादूर जवानों से सीखने की जरुरत है,जो अपने जान की परवाह किए बिना देश की सुरक्षा के लिए हर पल तैयार रहते हैं|कम से कम अपने कृत्यों से शहीदों की शहादत का अपमान तथा देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ तो न करें|देश के भविष्य के रूप में देखे जाने वाले युवा ही अगर देश तोड़ने को आमदा नजर आएंगे तो आने वाला कल कितना कष्टकारी होगा,कहना मुश्किल हैं|अन्यत्र ध्यान लगाने की बजाय युवा करियर निर्माण में ध्यान दे तो कुछ सार्थक होने की उम्मीद की जा सकती है.उक्त मसले पर जिस तरह की सियासत हमारे नेतागण कर रहे हैं,वह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है|ऐसी राजनीति देश के लिए घातक है|

-सुधीर कुमार

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