divya jyoti mithila
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उस को देखा, बिछ
रही थी, खेतो मे कुछ घास!
मंगन हुए कुछ अलहर सा
न कोई अभास!!
फटे पुराने चुनडी घघरी
सिधान्तो की थी डगरी
नही हरा पाता कोई बात!!
बेल बकरी भेड़ भेडिया
डारा हुआ था, उडती चिड़िया
उसे देख कर करती
सब जन्तु धाक!!
चार पहर मे दो पहर
तर बतर गर्मी के कहर
इस गर्मी को बनाया था
हस के उस ने हास्य
सिर् पे टोकड़ी चारा ले के
रस्सी का किनारा ले के
चलती तो चमकता उस की
हर अंग का भास्स
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