Menu
blogid : 21083 postid : 869148

कुछ घरियाले निगल रहा है

divya jyoti mithila
divya jyoti mithila
  • 20 Posts
  • 3 Comments
कुछ घरियाले निगल रहा है
हिमालय भी पिघल रहा है
दूषित कोख प्यासा पानी
यहाँ करेला बना है दानी
देखो सब बदल रहा है
बहते नदी में कूड़ा है
हर तन यहाँ तो बुरा है
जहा कापता
जिगर रहा है
फिर से मेरा
बात बदलना
मतलब
समाज यहाँ तो विगर रहः है
सीमा और अन्दर
में घेरा
सब
कुछ घरियाले निगल रहा है

हिमालय भी पिघल रहा है

दूषित कोख, प्यासा पानी

यहाँ करेला, बना है दानी

देखो सब बदल रहा है

बहते नदी में कूड़ा है

हर तन यहाँ तो बुरा है

जहा कापता

जिगर रहा है

फिर से मेरा,

बात बदलना

मतलब से,

खुद को ढ्लना

समाज यहाँ तो विगर रहा है

सीमा, और अन्दर

में घेरा

सब लड़ते, कह

कर मेरा

अंजान मोत बस

सफर रहा है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh