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पानी के पनघट पर

divya jyoti mithila
divya jyoti mithila
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पानी के पनघट पर

मे, धोवी बन जाता हु

अपने तन को धो, धो कर,

मेल जरा हटाता हु

गहरा है ए दाग, जीवन का

पक्ष माया है

जितना भी मे साफ करू,

गंदा उतना काया है

फिर उसी दाग मे

जी जाता हु

एसा ही हजार, है

सारा

जीवन का बजार, है

सारा

यहा वहा डुबकी

लगा ता हु

एक शाया सा, रची

कहानी

सासे है, जेसे छलका

पानी

कब छलक के

मीट जाता हु

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