divya jyoti mithila
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बसंत की अंगराई!
बसंत की अंगराई
हर किसी का खिला
अपना परछाई!!
फूलो की, योवान की
अलग अलग तरंग है
खिल रहा देखो
अपना अपना अंग है
मद मस्त है, सब भाई!!
यहा वहा हवा मे तेज
जोश है
खो रहा देखो अपना
होश है
ए हवा केसे दोड लगाई!!
नये नये पत्तो का
मासूमियत वेगाने
हर कन मे छाया
पन दीवाने
लग रहा जेसे अंजाना
है ए हर-जाई!!
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