divya jyoti mithila
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पत्थर के तस्वीर पे
मे झुकाता सिर हु!
में ईंसान, मे ईंसान
तो ब़हुत वीर हु!!
चल रहा या,
चला रहा
जो खोजता क्या
मिल रहा
कभी हँसता,
कभी गिराता नीर हु!
ढालता हु उम्र मे
और फिर दफन
मे देखता भी नही
केसा पड़ा क़फन
जीते जी खवाबो का
मे सजाता हीर हु!
हर सुबह, हर रात को
दीवार पे छोड कर
होती है, खत्म जिंदगी
हर रोज, मोड, मोड कर
अपने सासो का,
छोटा बड़ा चीर हु!
दीदार कर रहा था
दीदार हो गया
ये दुनिया हम से
पार हो गया
है, लगा अपना जो
मे उसका ही अहीर हु!
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