divya jyoti mithila
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सब मरता है
मरना होगा
मोत से तुम को
डरना होगा
अजय नही ए जीवन है
थोड़ा दूर नया तन है
रूप नया
फिर धरना होगा
हाथ हथेली के कर्मो का
अपने अपने
धर्मो का
घरा तुझे तो
भरना होगा
यहा निडर की,
आचल ओढ
पतला या कोई छोड़े
इस घर से बढाना होगा
तेरे बस्ती मे सब
सपने
छोड़ के उसे,
देख तरपने
शाया पे तुझको
चढना होगा
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