divya jyoti mithila
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आते जाते जीवन सब
दुख होता है, देखो तब
आके यहा खो जाता है,
मूल अपना ए भूलता है,
याद आता है, ए जाता जब
इस दुनिया के भोग विलास
सब पा के बनता ए लाश
बाकी कहता है, क्या है अब
नदी नहर के धारा सा
जीता है, बेसहारा सा
और मिले मुझको कब
बेगाने है, अनजाने है
खोया बस्ती जो पुराने है,
महल वहा है, इसका भव
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