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जीवन एक छलावा है

divya jyoti mithila
divya jyoti mithila
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जीवन एक छलावा है
रोज नया पछताबा है
कदम कदम पे टूट रहाः हु
सासो से कुछ छूट रहा हु
मेरा कब बुलावा है
इस दुनिया के झूठ मे,
फसकर
रूट रहा हु खुद पे,
हसकर
सेकता समय का ताबा है
यहा वहा सब तो जग मे
धोखा देते है, भर के
मॅग मे
उड़ा रहा ए हवा है
देख रहा हु खोटी
अपना
कहा दूर है चोटी
अपना
हर रहा पे मेरे
लावा है

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