divya jyoti mithila
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नारी कही पुजारिन
नारी कही अधीर है
संस्कृति के देश मे
हर रहा चिड़ है
विवश और मासूम लवे
अन्याय के आगे ए दबे
खुला आख, बहाता
ए नीर है
घर समाज, और देश की
भागी
जीवन ए तो, है वेरागी
हुस्न जहा, वहा भीड़ है
सब मर्दो के कानून सता
जगह जगह लगाये बट्टा
पल भर मे मन, जाता
फिर है
वक्त निकलता, कोने मे
सब
बिता रही है, रोने मे
सब
और पुरुष बना वीर है
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