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संकट में किंगफिशर,एक नजर

भावनाओं में शब्दों
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वर्ष 2005 के मई महीने से ही घाटे में चल रही किंगफि़शर एयरलाइंस के उपर छाए संकट के बादल अब तक हटने का नाम नहीं ले रहे है। पिछले लंबे समय से आर्थिक मंदी से जूझ रही किंगफिशर एयरलाइंस को सरकार ने वित्तीय राहत देने से इंकार कर दिया था। भारी कर्ज में डूबी किंगफिशर एयरलाइंस को कभी पायलटों की हड़ताल की वजह से तो कभी सरकार के कड़े रवैये की वजह से अपनी विमान सेवाएं रद्द करनी पड़ी। ऐसे में यात्रियों के सामने किंगफिशर की छवि तो धूमिल हुई है, साथ ही किंगफिशर की हालत भी खस्ता हुई है।

किंगफिशर का वित्तीय घाटा:

वर्ष 2005 दिसंबर की तिमाही में 444.26 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। वहीं वर्ष 2011 में कंपनी को 1,027 करोड़ का घाटा हुआ था। फिलहाल कंपनी पर 7,057 करोड़ का कर्ज बकाया है।

एसबीआई का किंगफिशर को कर्ज देने से इन्कार:

आर्थिक मंदी झेल रही किंगफिशर एयरलाइंस ने इस स्थिति से उबरने के लिए एसबीआई से और अधिक कर्ज की मांग की थी,लेकिन भारतीय स्टेट बैंक ने पहले से कर्ज में डूबी किंगफिशर एयरलाइंस को ऋण देने से साफ इंकार कर दिया था। बैैंक ने कहा कि कंपनी को तब तक और ऋण देने में कठिनाई होगी, जब तक वह बैंक गारंटी बहाल करने के लिए 100 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करती है।

एसबीआई के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने कहा था कि किंगफिशर एयरलाइंस अभी गैर-निष्पादित संपत्ति एनपीए है, जब तक कंपनी बकाया भुगतान नहीं करती,तब तक अन्य बैंकों के लिए भी उसे कर्ज देना कठिन होगा। अगर किंगफिशर एनपीए बनती है तो बैैंक के पास कोई विकल्प नहीं रहता है।

ज्ञात है कि किंगफिशर को कर्ज देने वाले बैंकों के समूह के प्रमुख बैंक प्रमुख एसबीआई ने कंपनी को 1457.78 करोड़ रुपये का ऋण पहले से ही दे रखा है। आईडीबीआई दूसरे स्थान पर है, जिसने 727.63 करोड़ रुपये का ऋण दिया है। इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक 710.33 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ इंडिया 575.27 करोड़ रुपये तथा बैंक ऑफ बड़ौदा 537.51 करोड़ रुपये का स्थान हैैं।

राहत पैकेज देने से सरकार का इन्कार:
पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही थी किंगफिशर एयरलाइंस। सरकार के राहत पैकेज ना दिए जाने के फैसले ने कंपनी को एक और मुसीबत में फंसा दिया था।

डीजीसीए ने ऐसे दौर में मुसाफिरों की सहूलियत का ध्यान रखने की सलाह भी सभी एयरलाइंस को दी गई थी। डीजीसीए ने कहा था कि किंगफिशर की उड़ानें रद्द होने की वजह से अन्य एयरलाइंस को किराये में बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए।
वहीं किंगफिशर एयरलाइंस के गहराते संकट के बीच सरकार ने साफ कर दिया था कि निजी एयरलाइंस को कोई राहत पैकेज नहीं दिया जाएगा।
सिविल एविएशन मिनिस्टर अजित सिंह ने साफ कह दिया था कि किंगफिशर एयरलाइंस के लिए बेलआउट की सरकार की कोई योजना नहीं है।

बढ़ी समस्या:
इस दौरान इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन आईएटीए ने किंगफि़शर को अपनी उस व्यवस्था से अलग कर दिया था जिसके तहत वह अपने भुगतानों को वैश्विक स्तर पर समायोजित कर सकता था। ऐसे में माल्या को विदेशी एयरलाइनों का ही आसरा रह गया था।
आईएटीए के संयुक्त निदेशक एलबर्ट टीजोएंग का कहना है कि यह निर्णय समय पर वैश्विक भुगतान न निपटाने की वजह से हुआ था।
सूत्रों ने बताया कि फरवरी के बाद से ऐसा दूसरी बार हुआ था। आईएटीए के अधिकारियों का कहना है कि भुगतान की शर्तों का पालन करने पर ही किंगफि़शर वापस इस व्यवस्था का हिस्सा हो सकता था।
इससे पहले जब किंगफि़शर को इस व्यवस्था से अलग किया गया था तो इसमें वापस शामिल होने में उसे दस दिनों का समय लगा था।
आईएटीए की इस व्यवस्था में दुनिया भर के एयरलाइंस और उससे जुड़ी कंपनियां इसलिए शामिल होती हैं ताकि दूसरी एयरलाइनों और कंपनियों की ओर से दी जाने वाली सेवाओं के लिए भुगतान करना आसान हो जाता है।
इस दौरान किंगफि़शर एयरलाइंस के बैंक खातों को इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स,एक्साइज टैक्स और कस्टम विभाग ने सील कर दिया था।

पायलटों का अल्टीमेटम:
आर्थिक मंदी से जूझ रही किंगफिशर एयरलाइंस को जब बैैंक व सरकार की ओर से कोई वित्तीय सहयोग नहीं मिला तो इसका सीधा असर कर्मचारियों के भविष्य पर देखने को मिला। कंपनी ने लंबे समय से कर्मचारियों का वेतन भुगतान नहीं किया।

कंपनी के पायलटों ने वेतन भुगतान को लेकर कंपनी के अधिकारी को अल्टीमेटम दे दिया था। पायलटों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर उनका वेतन भुगतान नहीं हुआ तो वह हड़ताल पर चले जायेंगे और ऐसा ही हुआ। पायलटों की बड़ी संख्या हड़ताल पर चली गई।

इन हालातों में माल्या ने छोटे कर्मचारियों को 4 अप्रैल तक और बड़े अधिकारियों को 20 अप्रैल तक वेतन भुगतान करने का आश्वासन दिया था, लेकिन काफी दिन गुजर जाने के बाद भी किंगफिशर ने उनके वेतन का भुगतान करना शुरु नहीं किया।

किंगफिशर के संकट ने पायलट और मैनेजमेंट को आमने सामने खड़ा कर दिया था। उस समय पायलटों की धमकी के बाद किंगफिशर को सोमवार को 10 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं थी।
खास बात यह है कि कई पायलटों के साथ तमाम कर्मचारियों ने भी काम पर आना बंद कर दिया था।

रियल इस्टेट कंपनियों का नोटिस:
इतने दिनों से संकट झेल रहे माल्या की मुश्किलें तो जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। दो रीयल एस्टेट कंपनियों ने माल्या को शहर के अंधेरी पूर्व इलाके में जगह खाली करने का नोटिस दिया है। पिछले नवंबर से कंपनी ने किराया नहीं दिया था।
ज्ञात है कि इन सबके बीच दिसंबर 2011 से कंपनी के पायलटों, इंजीनियरों, केबिन क्र्यू समेत अन्य कर्मचारियों का वेतन रुका हुआ था।
किंगफिशर की ओर से उड़ानें रद्द करने का सिलसिला लगातार जारी रहा।
जानकारी के अनुसार प्रतिदिन 240 उड़ानें संचालित करने वाली किंगफिशर एयरलाइंस इस दौरान 160 उड़ानें ही संचालित कर पाती थी।

कर्मचारियों का श्रम अदालत से अपील:
कई बार आश्वासन देने के बाद भी अप्रैल के अंत तक कर्मचारियों के वतन का भुगतना नहीं हो रहा था, इसलिए किंगफिशर के कुछ कर्मचारियों ने श्रम अदालत में अपील करने की बीत कहीं थी।
कर्मचारियों का मानना था कि ऐसा करने से शायद कंपनी बकाया राशि का भुगतान जल्द कर दे। इन कर्मचारियों में इंजीनियर और पायलट भी शामिल थे।

कुछ कर्मचारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा गया था कि अप्रैल बीत गया और कंपनी ने फिर से चार महीने [जनवरी-अप्रैल] का वेतन रोक रखा है। कर्मचारियों का कहना है कि कंपनी उन्हें सहीं समय भी नहीं बता रही है कि आखिर कब तक कंपनी बकाया भुगतान करेगी।

गौरतलब है कि पिछले महीने भी कंपनी के कुछ कर्मचारियों ने विमानन कंपनी के प्रबंधन को अल्टीमेटम दिया था कि 20 अप्रैल तक अगर उनके बकाया वेतन का भुगतान न हुआ तो हड़ताल पर चली जाएगी लेकिन कंपनी को कोई फर्क हीं नहीं पड़ता दिखाई दिया।

किंगफिशर के अध्यक्ष विजय माल्या द्वारा आखिरी वक्त पर पत्र लिखने के कारण यह संकट टल गया था। इस पत्र में उन्हें आश्वासन दिया था कि एक हफ्ते में वेतन धीरे धीरे जारी किया जाएगा।
लेकिन करीब 200 कर्मचारियों विशेष तौर पर इंजीनियरों का दावा था कि माल्या के आश्वासन के बाद भी उन्हें दिसंबर का वेतन नहीं मिला है।

ज्ञात है कि मार्च में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी घटकर 6.4 प्रतिशत पर आ गई थी।

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