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राजनीति में धनबल की भूमिका बहुत पुरानी है, परन्तु जबसे बाहुबल का राजनीति में प्रवेश हुआ या यह कहें कि जब से राजनीति का अपराधी करण हुआ तबसे राज नीति का चेहरा ही विद्रूपित हो गया है ।
आज भारत की राजनीति में बाहुबलियों का बोल बाला है। यही कारण है कि यह आम धारणा हो गयी है ,की राजनीति भले लोगों के लिये नहीं रह गयी है। चूंकि धन के बिना कोई कार्य हो नही सकता और राजिनीति भी इससे अछूती नही है ।राजनीति के माध्यम से पद शोहरत दौलत मान प्रतिष्ठा सब कुछ मिल जाता है, इसलिये इसे पाने के लिये धनबल और बाहुबल का उपयोग राजनीति व चुनावी समर में खूब होता है।
वर्तमान चुनाव में स्थिति कुछ भिन्न अवश्य हुई है, परन्तु ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ की भांति आज भी धनबल और बाहुबल सभी पार्टियों मे विद्यमान है ।
एक ओर जहां बाहुबली जेलों से चुनाव लड़ने के फिराक में हैं वही कुछ बाहर रहकर चुनाव लड़ रहें हैं । चुनावी समर के दौरान अपनी बाहुबली छ्वी को जहां ये नकारते हैं वहीं जीतने के बाद माननीय अपने क्षेत्रों में शेर की भांति दहाड़ते हैं और निर्बलों को सताते हैं ।उनके बारे में वहां के वाशिन्दों से अधिक कौन जान सकता है।
राजनीति एक ऐसा मंच है जहां बाहुबलियों को सुरक्षा प्राप्त होती है । पुलिस जिनको पकड़ने के लिये पीछा कर रही होती है जब वही माननीय हो जाते हैं , तो वही पुलिस उनकी सुरक्षा में तैनात होती है और उनके हुक्म बजाती है। माननीय अपने ऊपर लगे आपराधिक आरोपों से बच निकलने के लिये कानून की कमजोर कड़ियां ढूढने में लगे रहते हैं।
आज राजनीति ब्यवसाय बन गयी है और प्रत्येक ब्यवसाय मे पहले धन लगाना पड़ता है,जितना अधिक धन लगाएंगे उतना अधिक मुनाफा होगा। राजनीति मे भी नेताओं ने यही फार्मूला अपनाया। राजनीति मे जितना फायदा है उतना तो दुनिया के किसी ब्यवसाय मे नहीं है इसीलिए राजनीति मे धनबल का प्रयोग करने मे कोई कन्जूसी नहीं की जाती, और विविध रूपों में धन खर्च किया जाता है।
यही वजह है अपराध जगत के लोग भी राजनीति में आने का मौका तलाशते हैं क्यों कि राजनीति से अधिक दौलत और सुरक्षा उन्हे अपने लिये कहीं और नजर नही आता।
वर्तमान चुनाव में चुनाव आयोग ने सराहनीय कदम उठाये हैं, आये दिन काले धन का पकड़ा जाना इस बात का प्रमाण है कि देश में काले धन का कारोबार काफी जोरों पर है, जिसका चुनाव में भी बड़ी तादात मे उपयोग होता था दैनिक जागरण में आये दिन माननीयों की सम्पति के जो आय से अधिक आकड़े पेश किये जाते हैं वह यह बताने के लिये काफी है कि कैसे हमारे राज नेता एक साधारण आदमी से पद और सत्ता पाते ही धन कुबेर बन जाते हैं। उत्तर प्रदेश में तो रोज कोई न कोई मन्त्री इस तरह के आरोपों से नवाजा जा रहा है और अपना पद गँवा रहा है, , वर्तमान में प्रदेश की सत्ता के काफी करी्बी माने जाने वाले शराब व्यवसायी पोंटी के यहां आयकर के छापे में दो सौ करोड़ की राशि अनुमानित की गयी है । धनबलियों व बाहुबलियों की सांठ –गांठ ही इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में इन्होंने अपने तरीके अपना कर अस्त्र शस्त्र के बल पर वुलेट फार बैलेट जैसी नीति निर्धारित की थी लेकिन आज की स्थित मे थोड़ा बदलाव आया है, मतदाताओं में जागरुकता आयी है बिहार जैसे राज्य में परिस्थितियां बदली हैं और मतदाताओं ने उन्हे नकारा है । लेकिन आज भी सभी पार्टियों में इन्हे टिकट दिये जाते हैं क्यों कि राजनीतिक दलों मे वो सामर्थ्य नही है जो इन्हे नकार सकें क्यों कि उन्हें तो जिताऊ प्रत्याशी चाहिये और धनबलियों व बाहुबलियों से अच्छा जिताऊ प्रत्याशी और कोई नहीं हो सकता। यही कारण है कि राजनीति मे राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय माफियाओं की भी पूंछ बनी हुई है, और राजनीति का ग्लैमर इन माफियाओं को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।
सत्ता,धनबल तथा बाहुबल तीनों का राजनीति में जो साठ गाँठ है, वह देशहित जनहित तथा लोकतंत्र के हित में कदापि नही है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आज माननीय लाल बहादुर शास्त्री लोहिया जय प्रकाश नारायण सरदार पटेल जैसे नेता अब राजनीति के उच्चपद पर पहुँच ही नही पाते, कुछ ईमानदार छवि वाले माननीय मनमोहन जी जैसे नेता मौनी बाबा की भांति सब कुछ लुट जाने पर भी कुछ नही बोलते और मूक दर्शक ही बने रहते हैं। सत्ता में विराजमान लोग जनता के धन को देश के विकास में न लगाकर, लूट-खसोट कर अपनी सम्पति को दिन दूनी रात चौगुनी बढाने में लगे रहते हैं और अपने खजाने की रक्षा के लिये कुछ बाहुबलियों का सहारा लेते हैं और बदले में उन्हे राजनीति में प्रवेश दिलाने में मदद गार बन उन्हें सुरक्षा मुहैया कराते हैं।
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