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आज का दिन राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से खास रहा..उम्मीदवारों की फेहरिस्त में नया नाम आ गया.. पी.ए.संगमा का….जो कि पूर्व लोकसभा स्पीकर रहे है…कांग्रेस के पूर्व सदस्य रहे है…और सबसे बड़ी बात ये कि संगमा आदिवासी समुदाय का प्रतीक है…इस लेख का लक्ष्य संगमा को राष्ट्रपति पद के लिहाज से अयोग्य साबित करना नहीं है..पर कुछ सवाल है जिनका जवाब जानना बेहद जरूरी है और ये भी तय़ नहीं है कि आने वाले सवालों का जवाब मिलेगा की नहीं भी…तो बात राष्ट्राध्यक्ष की…श्रीमति प्रतिभा पाटिल को महिला कोटे का लाभ मिला था…हामिद अंसारी अल्पसंख्यक वर्ग से है….संगमा आदिवासी कोटे से दावेदार हैं..मीराकुमार का नाम दलित होने के कारण चर्चा में हैं…तो क्या राष्ट्रपति पद के लिए किसी वर्ग विशेष खास जिनके नाम पर राजनीति हो सके….का होना अनिवार्य है…ये सब उम्मीदवार योग्य है…तकलीफ इस बात से है कि राजनीति इनकी सामाजिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर इस चुनाव का मजाक देना चाहती है…क्यों हमारे देश में आजादी के 60 दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद भी राजनीतिक कौशल या अन्य योग्यताओं को नगण्य माना जा रहा है…क्या देश का प्रतीक होने वाला..देश का प्रथम नागरिक भी राजनीतिक तुष्टिकरण के बनाए रास्तों से चलकर देश को मिलेगा…देश में दलित आदिवासी समुदाय का भला क्या ऐसे ही संभव होगा या बरसों यूं ही राजनीति ही होती रहेगी…देश का सर्वोच्च पद भी क्या ऐसे ही तुच्छ मापदंडों से निर्मित किए जाएंगे…हमारे देश में प्रधानमंत्री सीधे जनता से चुनकर नहीं आते…वो उच्च सदन के रास्ते मनोनीत होते है..ये व्यवस्था है पर क्या ये देश का दुर्भाग्य नहीं हैं…राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता के चुने प्रतिनिधि करते है..पर ये प्रतिनिधि चुनाव के वक्त देश या लोकहित का कितना ध्यान रखते है..ये महत्वपूर्ण सवाल है…भारत के देश के लिहाज से देखा जाए तो कई ऐसे राष्ट्रपति हुए है जिन्होंने इस पद की गरिमा को बरकरार रखा है….वहीं कई ऐसे भी राष्ट्रपति हुए जिन्होनें लोकहित को नहीं व्यक्तिपूजा को महत्वपूर्ण माना..मेरा इशारा आपातकाल के समय से है…
बहरहाल राष्ट्रपति कौन बनेगा इस पर अभी सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते है..नाम कई हैं पर देखना होगा कि मदारी की टोपी से क्या निकलता है…तमाशबीनों के हिस्सें में तो सिर्फ ताली बजाना ही है..तैयार रहे ताली बजाने के लिए
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