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मैं एक न्यूज चैनल में कार्य करता हूं,आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के बाद चैनल में समाचार बन रहे थे…सभी समाचार प्रसारणों में अल्पसंख्यकों के तौर पर मुस्लिम चेहरों को प्राथमिकता के साथ दिखाया जा रहा था..अपनी एक सहयोगी से मैने सवाल पूछा क्या अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ मुसलमान ही होता है….मैं भी जानता था…उन्होनें भी कहा नहीं..अल्पसंख्यक का मतलब सिख मुस्लिम,जैन,पारसी,बौद्ध सभी से है..तो सवाल ये कि क्यों मीडिया में अल्पसंख्यक के नाम पर सिर्फ मुसलमान वर्ग को ही प्रचारित किया जा रहा हैं….ये तो बात मीडिया..पर यूपी चुनाव में सलमान खुर्शीद ने भी अल्पसंख्यकों को जो कोटा देने की बात की थी…उसका भी सीधा लक्ष्य मुस्लिम समुदाय को ही आकर्षित करना था…अब कुछ बात हम शुरू करे उसके पहले हम भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक नजर डाल लेते है….
” हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद
द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्षता की बात कही गई है….क्या धर्म आधारित आरक्षण देना संविधान का उल्लंघन नहीं है….संविधान की मर्यादा के विरूद्ध धर्म के आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण गलत है ये कोर्ट ने भी माना है…तो सवाल ये कि आखिर क्यों सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए संविधान की गरिमा को खत्म करने में तुली हुई है….मुस्लिम समुदाय देश का अभिन्न अंग है लेकिन दूसरे समुदाय के लोग भी उतने ही महत्वपूर्ण है..क्यों हम ऐसी व्यवस्था को पोषण कर रहे हैं जिसमें धर्म के आधार सुविधाएं देने का प्रचलन बढ़े,पिछले दिनों हज सब्सिडी के विषय में भी कोर्ट ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाये थे….निश्चित तौर अल्पसंख्यक वर्ग का एक बड़ा तबका आज भी मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाया है..तो क्या इसका एकमात्र हल ये है कि हम संविधान को ताक पर रखकर देश में संप्रदायिकता नींव रखे….
क्या पंथ निरपेक्ष होने का यहीं मतलब है जो अब तक निकाला जा रहा है…क्या इससे दूसरे समुदाय पर होने वाले प्रभावों को नगण्य माना जाए..या तब तक खामोश रहा जाए..जब तक देश में असंतोष पूरी तरह ना फैल जाए…..
बहरहाल
अल्पसंख्यकों को अतिरिक्त सुविधा मिलनी चाहिए…इसमें कोई शक नहीं हैं…संविधान की गरिमा और देश की कीमत पर हरगिज नहीं……..
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