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राजा को राहत..पर देश को कब मिलेगी..?

kahunga
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आज का दिन यानि 15 मई ए.राजा का दिन साबित हुआ ..ठीक वैसे ही जैसे कोई तारिख कनिमोझी,अन्य आरोपियों और सुरेश कलमाड़ी के लिए साबित हुआ होगा..जिस दिन इन सबकों जमानत मिली होगी…अब राजा,कनिमोझी,कलमाड़ी के जैसे संसद की शोभा बढ़ायेंगे…कल ही की तो बात है जब संसद में संसदीय इतिहास के 60 साल पूरे होने पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया था..दुर्भाग्य ये कि राजा इस गौरवशाली क्षण में संसद में उपस्थित नही रह पाए..खैर अब ए.राजा बतौर सांसद लोकसभा में दिखाई देंगे….तो इसका क्या मतलब निकाला जाए…सबसे पहली बात ये कि ये संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत होगा कि जमानत पर छूटे और आरोपों से घिरे जनप्रतिनिधि संसद में बैठ सकते हैं…ये कोई पहला मौका नहीं है इसके पहले भी लंबी फेहरिस्त रही है..जो अब थोड़ी और लंबी हो चुकी है। भारत देश की व्यवस्था के मुताबिक जब तक किसी पर आरोप सिद्ध न हो जाए…उसे पदच्युत नहीं कर सकते…पर क्या ऐसी व्यवस्था हो सकती है जब तक कोई बेगुनाह न साबित हो जाए तब वो किसी पद में न रहे..और इसके लिए समय-सीमा के भीतर मामलों का निपटारा करने की संवैधानिक व्यवस्था की जाए…क्यों हम आरोपों और जेल जा चुके अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को मामले का निपटारा होने तक पदों से अलग नही रख सकते…..क्या देश का भविष्य जिन मजबूत कंधों पर हैं वो इस तरहकी स्थितियों को निर्मित करने में अहम भूमिका निभाना चाहते है जब आम आदमी का रहा-सहा भरोसा भी व्यवस्था से उठ जाए…अन्ना का आंदोलन तो प्रतीक भर थी..सैफ्टी वाल्व की तरह लोगों का गुस्सा निकाल गया..पर इसकी नौबत क्यों आई..ये बड़ा सवाल हैं…राजा डीएमके के सांसद है….और दूरसंचार विभाग डीएमके की जागीर रही है….प्रधानमंत्री क्या इस बात का जवाब दे पाएंगे कि उनके नेतृत्व में देश का सबसे बड़ा नुकसान कैसे हो गया..क्या वो नैतिक रूप से जिम्मेदार नहीं है…क्या अप्रत्यक्ष राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में नहीं आना चाहिए..आखिर देश द्रोह होता क्या है…देश को धोखा देना,देश के खिलाफ साजिश रचना,देश के खिलाफ युद्ध झेड़ना ना..तो घोटालो में भी तो देश के साथ धोखा दिया जाता है..साजिश की जाती है..देश के खिलाफ आर्थिक युद्ध किया जाता है ..देश के हिस्से का पैसा कोई और ले जाता है…
अब आम जनता का क्या करें…वैसे मामले को भूल जाना सबसे अच्छा विकल्प है..पर अहम सवाल है कि 60 सालों से ..जीप घोटाले से हम भूलते ही आ रहे है…देखना होगा कब तक भूलने और सोने का नाटक अच्छे से कर पाते है क्योंकि अंतिम सत्य ये ही है कि आखिर जागना तो होगा ही……………….

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