हमसफ़र मेरा
बिछड़ा था हमसफ़र मेरा
अप्रैल की गर्मियों में
मिले न अब तक,
उसके कोई निशान
न आयी उसकी कोई चिट्ठी -खबर !!
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गर्मियों से बरसात तक
मिले जो राह में पदचिह्न मुझे
उन पदचिह्नों को देख कर
जाने कितनी बार अश्क बहाये
कितनो के आगे रोया
कही देखा है हमसफ़र मेरा !!
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उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे
और थक रहा है बदन मेरा
मगर मेरी उम्मीद कहती है
मिलेगा एक दिन हमसफ़र तेरा …
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मेरे मरने से पहले
उससे मिला देना खुदा
या मुझ तक भेज देना सन्देश उसका
कि वो जहाँ है बहुत खुश है
ताकि सुकून से मर सकू मैं !!!!
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सुमित नैथानी
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