Menu
blogid : 4238 postid : 904943

कविता : विश्वास

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
  • 196 Posts
  • 153 Comments

आज सुबह-सवेरे अचानक
मिल गया विश्वास राह में
लगा पूछने क्यों हटा
विश्वास उसपर से
मैंने उससे कहा
इतना तोड़ा है
जग ने विश्वास
कि विश्वास पर से
विश्वास डोल गया है
वह बोला विश्वास पर
इस बार विश्वास
करके तो देखो
मैंने धीमे से कहा
चलो ठीक है
एक अवसर और सही।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh