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मफलर वाले बाबा पहले तो दिल्ली से भागे। भागते-भागते वाराणसी पहुँच गये। वहाँ लोगों को अपने जादू मंतर से अपना भक्त बनाने को गलियों की ख़ाक छानते रहे। उन्होंने सोचा था कि जैसे दिल्ली की पढ़ी-लिखी जनता को उल्लू बनाया वैसे ही वाराणसीवासियों को भी बहला देंगे, लेकिन वाराणसी की जनता पर गंगा मैया का आशीर्वाद था सो उसपर इनके टोने-टोटके का असर नहीं हुआ और मफलर वाले को मुँह छिपाकर बेइज्जत होकर वहाँ से भागना पड़ा। दिल्ली आकर उन्होंने यहाँ की जनता को फिर से उल्लू बनाने का अभियान शुरू कर दिया, लेकिन इसबार जनता इनके चक्कर में नहीं फँसी। बाबा जी इतने ओवर कॉन्फिडेंस हो गए कि आव देखा न ताव जज साहब से ही जा भिड़े। नतीजा ये है कि अब बाबा जी तिहाड़ में आराम फरमा रहे हैं और उनके भक्त जन उनकी याद में बैठे आँसू बहा रहे हैं।
लेखक: सुमित प्रताप सिंह
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