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यादगार रहा विश्व पुस्तक मेला 2016

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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-भाई नफे!

-हाँ बोल भाई जिले!

-कैसे उदास बैठा है?

-उदास नहीं हूँ भाई मैं तो यादों में खोया हुआ हूँ।

-कौन है वो खुशनसीब हसीना जिसकी यादों में खोया हुआ है?

-भाई किसी हसीना की यादों में नहीं मैं तो विश्व पुस्तक मेले की मधुर यादों में खोया हुआ था।

-अच्छा तो ये बात है। तो हमें भी विश्व पुस्तक मेले की मधुर स्मृतियों से रूबरू करवा।

-भाई विश्व पुस्तक मेला 9 जनवरी, 2016 को शुरू हुआ। शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित शोभना सम्मान समारोह में देश के गिने-चुने लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए शोभना सम्मान-2015 से विभूषित किया गया।

-अरे वाह! भाई शोभना सम्मान किस-किसको दिया गया?

– साहित्य में शोभना सम्मान प्राप्त करने वाले प्रसिद्द कथाकार बल राम, मुम्बई के कहानीकार सूरज प्रकाश, पंजाब के लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल व लखनऊ के व्यंग्यकार अनूप श्रीवास्तव को दिया गया। संपादन में प्रवासी संसार के डॉ. राकेश पाण्डेय, हल्द्वानी के अनूप वाजपेयी, बिहार के रणविजय राव, अट्टहास की शिल्पा श्रीवास्तव, दिल्ली के आशीष कंधवे व मेरठ के प्रदीप कुमार को मिला। समाज सेवा के क्षेत्र में युवाओं के लिए कार्यरत झारखण्ड के गोपाल भगत व बाल शिक्षा के लिए जयपुर व गुड़गाँव में संघर्षरत डॉ. अनुभूति भटनागर को शोभना सम्मान प्रदान किया गया। आलोचना के क्षेत्र में रांची के डॉ. रमेश तिवारी को तथा व्यंग्य के क्षेत्र में शोभना सम्मान ‘पैकेज का पपलू’ व ‘दोराहे पर जिंदगी’ के लेखक हल्द्वानी के गौरव त्रिपाठी को दिया गया वहीँ कला के क्षेत्र में अर्चना शाह अग्रवाल को सम्मानित किया गया तथा इटावा के नितिन जैन को कंप्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में शोभना सम्मान दिया गया।

-इसका मतलब है विश्व पुस्तक मेले की शुरुआत शोभना सम्मान से ही हुई।

-नहीं यह विश्व पुस्तक मेले का दूसरा कार्यक्रम था। पर हाँ इसमें लोकार्पित हुई पुस्तक ‘सावधान पुलिस मंच पर है’ मेले में सबसे पहले लोकार्पित होनेवाली पुस्तक थी।

-अरे वाह! भाई इस कार्यक्रम के अतिथि कौन-कौन थे?

-भाई कार्यक्रम की अध्यक्षता व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय ने की, मुख्य अतिथि डॉ. हरीश नवल रहे तथा विशिष्ट अतिथि प्रताप सहगल थे। वक्ता के रूप में डॉ. शशि सहगल उपस्थित रहीं। सानिध्य सोसाइटी की अध्यक्षा शोभना तोमर का रहा तथा कार्यक्रम का संचालन अपने सुमित प्रताप सिंह ने किया।

-तो मेले में उपस्थित जनसमूह की क्या प्रतिक्रिया रही?

-प्रतिक्रिया अच्छी रही। श्रोताओं ने सभी अतिथियों व वक्ताओं को सुना एवं सराहा।

-ये तो बहुत बढ़िया बात है। अच्छा वहाँ किन-किनसे मिलने का अवसर मिला?

-बहुत से जाने-अनजाने लोग मिले। नरेंद्र कोहली, ज्ञान चतुर्वेदी, गिरिराजशरण अग्रवाल, सुधाकर अदीब, सुभाष चंदर, अशोक मिश्र, कौशलेन्द्र प्रपन्न, मलय जैन, अनुज त्यागी, सुधांशु माथुर, प्रदीप राय, विजय शंकर चतुर्वेदी, हरीश अरोड़ा, मीना अरोड़ा, अलका अग्रवाल, नेहा शरद, संगीता कुमारी, दीपक सरीन इत्यादि सुधीजनों से मिलने और खिलने का अवसर मिला।

-भाई मेले में भीड़ कैसी रही?

-भीड़ खूब रही। इस बार बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमी पुस्तक मेले में आए और अपने साथ पुस्तकों से भरे थैले लेकर गए।

-कमाल है। डिजिटल युग में भी थैला भर किताबें ले गए?

-हाँ भाई क्योंकि पुस्तक के पन्नों को उँगलियों से स्पर्श कर पढ़ने की अनुभूति का आनंद वो भली-भाँति जानते हैं। इसलिए डिजिटल युग में भी अपने-अपने पसंद के लेखक की पुस्तकें खरीदने की चाहत लिए हुए वो भागे-भागे पुस्तक मेले घूमने पहुँचे थे।

-ये तो अच्छी बात है। अच्छा मेले में और क्या-क्या हुआ?

-मेले में अनेक लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। भिन्न-भिन्न विषयों पर विचार गोष्ठियों का आयोजन हुआ। लेखकों व पाठकों का आपसी परिचय हुआ। कुछ नए लेखकों के लेखन को जहाँ प्रतिष्ठा मिली वहीँ पुराने व वरिष्ठ लेखकों के अनुभवों से युवा हस्ताक्षरों को कुछ सार्थक सीखने को मिला। व्यंग्य यात्रा पत्रिका द्वारा आयोजित व्यंग्य की तीन पीढ़ियों के बीच संवाद द्वारा व्यंग्य विधा ने विश्व पुस्तक मेले में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज़ करवाई। इसके अलावा कुछ लोगों ने मंच से चिपकने का व कुछ ने शाल ओढ़ने में रिकॉर्ड भी बनाया।

-हा हा हा तू ये बता कि तूने कोई रिकॉर्ड बनाया या नहीं?

-हाँ बिलकुल बनाया।

-वो भला क्या?

-इस बार सबसे ज्यादा पुस्तक मेले में घूमने का।

-हा हा हा ये भी सही है। इसका मतलब है कि तूने पुस्तक मेले का खूब मजा लूटा।

-हाँ भाई और अगले साल भी इसका पूरा मजा लूटने की योजना है।

-अगली बार तू पूरा मजा नहीं लूट पाएगा।

-वो कैसे?

-क्योंकि अगले विश्व पुस्तक मेले में नफे के साथ आधा मजा जिले भी लूटनेवाला है।

-ऐसा क्या?

-हाँ भाई बिलकुल। अगली बार मैं भी तेरे विश्व पुस्तक मेले में मौजूद रहूँगा।

-अरे वाह भाई फिर तो मेले में घूमने का मजा दुगुना हो जाएगा।
———–समाप्त———-

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com

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