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अब तेरा क्या होगा कालिया (व्यंग्य)

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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काले धन उर्फ़ कल्लू, कल्लन, कालिया इन दिनों अधिकांश देशवासी तुम्हें दे रहे हैं जी भरकर गालियाँ। सरकार ने तुम्हें बाहर निकलने को कहा था लेकिन तुम नहीं निकले। फलस्वरूप तुम्हें बाहर निकालने को सरकार को बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसके एक कदम उठाने से ही तुम्हारी ढिमरी टाइट हो गई तथा तुम्हारे आकाओं की चूलें तक हिल गईं। अब ये और बात है कि तुम्हें बाहर निकालने के लिए सरकार के इस औचक हमले का परिणाम आम जनता को भी झेलना पड़ रहा है। नोट चेंज करवाना और नोट छुट्टे करवाना अब राष्ट्रीय चिंता और समस्या बन गई है। इन दिनों लोगों का समय ए.टी.एम., बैंकों व डाकघरों की चौखट पर लाइन लगाकर नए नोटों के दर्शन करने की इच्छा लिए हुए ही बीत रहा है। उनका सुबह का ब्रेकफास्ट, दोपहर का लंच और रात का डिनर वहीं लाइन में लगे हुए ही हो रहा है। जो लोग खुशनसीब हैं वे तो नए नोटों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर पाते हैं, लेकिन जो अभागे मानव हैं वे बेचारे नए नोटों के दर्शनों का स्वप्न देखते हुए ही लाइन में लगे रहते हैं। इन दिनों बैंककर्मी देवदूतों से कम प्रतीत नहीं हो रहे हैं और हर व्यक्ति लाइन में लगे हुए ये कामना कर रहा है कि उसपर इन देवदूतों की कृपा हो जाए और उसकी मुट्ठी नई करेंसी से गर्म हो जाए। अब ये और बात है कि ये देवदूत गुपचुप दानवपना दिखा रहे हैं और अपने परिचितों और सगे-सम्बन्धियों को नवनोट मिलन परियोजना का भरपूर लाभ प्रदान कर रहे हैं। लोग नोट दर्शन की आस लिए रात से ही बिस्तर डालकर ए.टी.एम., बैंकों व डाकघरों के आगे धरना सा दिए बैठे हुए हैं। एक बार को तो लगता है कि जितनी शिद्दत से लोग नवनोट मिलन की इच्छा कर रहे हैं, उतनी शिद्दत से अगर ऊपवाले को याद कर लिया जाए तो उसके दर्शन पाकर इस जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाए।

वैसे मजे की बात ये है कि जनता इतने कष्टों को झेलकर भी प्रसन्न है और सरकार के इस सार्थक कदम की प्रशंसा कर-करके विपक्षी दलों का कलेजा फूँककर कोयला बनाने की साजिश में लगी हुई है। गांधी जी हरे से गुलाबी हो मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। अचानक नोटबंदी से अवैध खजानों में बंदी बन रखे नोट रद्दी का ढेर बन चुके हैं, जिससे नक्सलियों और आतंकियों के पाक कामों में अचानक विराम लग गया है। कश्मीर में पत्थरबाजी नामक लघु उद्योग को करारा झटका लगा है। पड़ोसी देश के शांति मिशन में अवरोध उत्पन्न हुआ है और वो शांतिदूतों की सप्लाई में काफी दिक्कत महसूस कर रहा है। तुम्हारे आकाओं के ताऊ-ताई, चाचा-चाची, मामा-मामी व अन्य सगे-संबंधी विरोध का झंडा उठाए हुए कभी मार्च कर रहे हैं तो कभी संसद का सदन जाम करने के लिए कमर कस रहे हैं। इन सबसे इतर अधिकतर देशवासी एक नए भारत के उदय होने की आहट सुन रहे हैं। इन दिनों देश भी मुस्कुराकर तुमसे गब्बरी अंदाज में पूछ रहा है “अब तेरा क्या होगा कालिया?”

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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