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व्यंग्य : मेरे जन्मदिन का तोहफा

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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ज मेरा जन्मदिन है। औरों की तरह मैं प्रफुल्लित नहीं हूँ, कि आज मेरा जन्मदिन है। मैं औरों की भांति यह भी नहीं सोच रहा कि मैं कोई महान व्यक्ति हूँ इसलिए सभी को मेरा जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाना चाहिए और मेरे घर का कम से कम एक कमरा तो तोहफों से भर देना चाहिए, न ही मेरे मन में आत्ममोही भले मानवों की तरह ये ख्याल आ रहा है, कि भविष्य में मेरे सम्मान में फर्लो मारने के लिए मेरे जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए। सच कहूँ आज जब मैं सुबह सोकर उठा तो मैं बहुत उदास था। अब उदास होता भी क्यों न। अरे भाई आज के दिन मैं एक साल और पुराना हो गया हूँ। बेशक लोग इस गम को छुपा जाते हों और ऊपरी मन से अपने जन्मदिवस पर हो-हल्ला करते हों पर मुझसे ये नहीं हो पाया। सुबह उबासी लेते हुए जब मैंने आइना देखा तो मेरे सिर में से झांकते दो-तीन सफ़ेद बालों ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया, कि मैं एक साल और पुराना हो गया हूँ। इसलिए मैं शौच इत्यादि से निवृत होकर पार्क की ओर भागा और वहाँ तन्मयता से योग व प्राणायाम किया। यह मेरे पुराने होने से लड़ने का एक छोटा सा प्रयास था। इसके बाद मैंने सरकार द्वारा पार्क में जनता की सेहत सुधारने के लिए स्थापित किये गए ओपन जिम में अपनी सेहत सुधारने का प्रयास करने के विषय में सोचा, पर वहाँ मशीनों के पुर्जे गायब मिले। मशीनों के पुर्जे शायद किसी बेचारे की आर्थिक सेहत सुधारने के काम आ गए थे और मजे की बात ये थी कि इससे पार्क के चौकीदार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। पार्क से आकर स्वयं को पौष्टिक आहार से परिपूर्ण किया। फिर सोचा कि आज अपने इक्के-दुक्के सफ़ेद बालों को कालिमा प्रदान की जाए, सो सैलून की राह पकड़ी। राह में दसों से सैकड़ों की संख्या पा चुकीं झुग्गियों को देखा तो मन ने विचार किया कि कितने खुशनसीब हैं ये लोग जो समय-समय पर सरकार से नए-नए तोहफे पाते रहते हैं। चाहे किसी भी दल की सरकार बने पर इनको तोहफे मिलने निश्चित हैं। झोपड़ियों के खिड़की-दरवाजों से झांकते हुए अत्याधुनिक सुख-सुविधा के सामान शायद मुझे जीभ चिढ़ा रहे थे और मुझे मध्यमवर्गीय आम आदमी की योनि में रहने के लिए बार-बार धिक्कार रहे थे। झुग्गियों के साम्राज्य की सीमा समाप्त होने के बाद इलाके की मार्किट का क्षेत्र शुरू होता है। बचपन में कितना खाली-खाली सा लगता था यह क्षेत्र, लेकिन अब इसमें इतनी बसें और इतनी टैक्सियां खड़ी मिल जायेंगीं, कि संभलकर चलने में ही अपनी भलाई लगती है। हालाँकि क्षेत्र की जनता ने समय-समय पर झुग्गियों, बसों एवं टैक्सियों की बढती संख्या के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की है, किन्तु हुआ कुछ भी नहीं। झुग्गीवालों के वोटरुपी तोहफे व टूर-ट्रेवल्स द्वारा संबंधित माननीयों की सेवा में निरंतर अर्पित किये जानेवाले मनमोहक उपहारों ने जनता की आवाज को महत्वहीन बना दिया। नतीजा ये है कि झुग्गियों में शराब बिक्री, नशे का व्यापार, वैश्यावृत्ति, जुए व सट्टेबाजी जैसे सुकार्य धड़ल्ले से चलते रहते हैं और इनसे हुई आमदनी का एक निश्चित भाग झुग्गीवासियों पर अपना वरदहस्त रखे हुए माननीयों तक बिना बाधित हुए समय से पहुँचता रहता है। टूर-ट्रेवल्स वाले भी अपनी नियमित सेवाएं देकर माननीय महोदयों को प्रसन्न रखते हैं। बहरहाल सैलून में बाल कटवाकर सफ़ेद बालों को कालिमा प्रदान करने की योजना इसलिए रद्द करनी पड़ी क्योंकि जेब पर ज्यादा बोझ डालना उचित नहीं लगा। बाल कटवाकर घर को आ रहा था तो एक दुकान की ओर नज़र गयी। कभी वहाँ सिन्धी स्टोर हुआ करता था। मेरा और मेरे साथियों के बचपन कुछ भाग इस सिन्धी स्टोर को चलानेवाले सिन्धी अंकल से किराये पर कॉमिक्स लेकर इसके बगल की सीढ़ियों में बैठकर कॉमिक्स पढ़ते हुए ही बीतता था। यहीं हम चाचा चौधरी, साबू, राका, बिल्लू, पिंकी, गब्दू, नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव की काल्पनिक दुनिया में सैर किया करते थे। अब सिन्धी स्टोर की जगह एक मोबाइल फोन स्टोर खुल गया था। अब समय बदल गया है और आज के बच्चे स्मार्ट हो गए है तथा वे कॉमिक्स जैसी फालतू किताबों को पढने के बजाय अपने-अपने स्मार्ट फ़ोनों में कुछ न कुछ स्मार्ट चीज देखना पसंद करने लगे हैं। कभी-कभी लगता है कि शायद बदलता हुआ समय हमें ये सब तोहफे दे रहा है। मुझे पता है कि आप सब भी मुझे स्नेह व प्रेमवश लाइक, कमेंट व शेयर रुपी तोहफा देंगे तथा मुझसे कुछ अधिक प्रेम करनेवाले आप में से कुछ महानुभाव मेरे इस लेख पर चुपचाप बस एक दृष्टि डालकर अपनी-अपनी राह निकल लेंगे। इसलिए इन सब बातों की परवाह किये बिना मैंने स्वयं ही स्वयं को तोहफा देने का निश्चय किया है। अपने पथ पर निरंतर बढ़ते हुए अपनी मंजिल पाने का संकल्प ही इस जन्मदिन पर मेरा स्वयं को अनमोल तोहफा है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
http://sumitpratapsingh.com/

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