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प्यारे अन्ना हजारे जी
सादर अनशनस्ते!
आपको हृदय से नमन करते हुए पत्र प्रारंभ करता हूँ. जब भारत देश घोटालों से त्रस्त हुआ, जब आम भारतीय मंहगाई से पस्त हुआ और जब भ्रष्टाचार की बांसुरी बजाकर शासन तंत्र मदमस्त हुआ तब आप संकटमोचक बनकर आये और बस गए हर भारतीय के दिल में. आपका भोला-भाला व्यक्तित्व भारतीय मानुष के मन में एक नई आशा जगाता है. हम भारतीय विश्व की नज़रों में तो सन 1947 में ही आज़ाद हो गए थे किन्तु अंग्रेज जाते-2 अपनी कार्बन कॉपियां अर्थात काले अंग्रेज यहीं छोड़ कर चले गए जो धूर्तता में अपनी ऑरिजिनल कापियों से भी एक कदम बढ़कर निकले. भारत को आजाद हुए 64 साल हो गए हैं किन्तु आम भारतवासी अभी भी इन काले अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में बुरी तरह जकड़ा हुआ है. राजे-महाराजे नहीं रहे, सामंती शासन समाप्त हो गया किन्तु अभी भी भारतीय राजनीति को कुछ परिवार अपने बाप की जागीर समझे हुए हैं. भारतीय जनमानस भी निरा मूर्ख है जो किसी को अपना राजा तो किसी को अपना राजकुमार घोषित कर उसे सत्ता की चाबी सौंप देता है और अगले पांच सालों तक अपनी ऐसी-तैसी करवाता रहता है. कभी कोई राजा इसका बाजा बजाता है तो कभी कोई कलमाड़ी अपने कारनामों से इसे कबाड़ी बना डालता है. घोटाले पर घोटाले सामने आ रहे हैं, विदेशी बैंकों में काला धन अपना आकार बढ़ाता जा रहा है, दिन प्रतिदिन मंहगाई डायन अपना प्रकोप दिखाकर आम आदमी की कमर तोड़ते हुए उसका जीना दूभर किये हुए है. इन सब परेशानियों से हम सबको राहत दिलाने के लिए संघर्ष करने हेतु एक दिन आप बैठ गए जंतर-मंतर पर आकर और ऐसा मंतर मारा कि सरकार के पैर काँप गए. सरकार ने चालाकी से आपको आश्वाशन का झुनझुना पकड़ा आपका आन्दोलन को विराम दिया किन्तु जब सरकार अपने वादे से मुकरने लगी तो आप चल पड़े रामलीला मैदान अपनी अनशन की लीला दिखाने. सरकार ने इस आन्दोलन को विफल करने के लिए आपको जेल की सैर कराई किन्तु अब तीर कमान से निकल चुका था. जन सैलाब के आगे सरकार को झुकना पढ़ा और आपको रिहा कर रामलीला मैदान में अपना संघर्ष करने की आज्ञा देनी पड़ी. हम सभी ने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह व अनशन के बारे में बचपन से जवानी तक पढ़ा है किन्तु उसकी ताकत का अहसास आपके द्वारा जारी आन्दोलन को देखकर आज हुआ है. इस 74 बरस की उम्र में भी आप जिस जीवटता से डटे हुए हैं वह प्रशंसनीय है. आपका साथ देने के लिए किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल व प्रशांत भूषण आदि जैसे समाजसेवक तथा रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार की अर्थी उठाने को तत्पर भारी जनसमूह का कार्य अतुलनीय है. रामलीला मैदान भी आपके पावन चरणों को चूम कर धन्य हो गया होगा. यह आन्दोलन ऐसा आन्दोलन था जिसमें समाज के हर तबके ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. बाबा रामदेव प्रकरण में बदनाम हुई दिल्ली पुलिस ने गांधीगिरी दिखा कर सभी का मन मोह लिया. भ्रष्टाचार के प्रति पुलिसवालों के मन में भी आक्रोश भरा हुआ था. अपनी ड्यूटी समाप्त कर सादी वर्दी में पुलिसवाले भी जनता के साथ आपके समर्थन में व भ्रष्टाचार के विरोध में नारे लगाते बड़ी संख्या में देखे गए. पीजा संस्कृति के लिए बदनाम युवा पीढ़ी का भी एक नया रूप उभरकर इस आन्दोलन में आया. सभी युवा अपनी शिक्षा व नौकरी को विराम देकर आपके साथ मैदान में अंतिम समय तक जमे रहे और भ्रष्टाचार के विरुद्ध तने रहे. जहाँ अनेक माता-पिता भ्रष्टाचार रुपी चक्रव्यूह को भेदने का पाठ पढ़वाने अपने बाल अभिमन्युओं को लेकर वहाँ पहुंचे वहीँ अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव से गुजर रहे बुजुर्ग भी अपनी भागीदारी करने मैदान में उपस्थित मिले. रानी लक्ष्मी बाई की मरते दम तक लड़ने की भावना को जहाँ मंच पर डॉ. किरण बेदी अपनाए हुए थीं वहीं नीचे मैदान में उनके आदर्शों को अपने-२ मन में लिए अनेक वीरांगनाएं भ्रष्टाचार को पटकनी देने को कमर कसे हुए थीं. विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने इस आन्दोलन में अपनी पूरी भागीदारी दिखाई और आन्दोलनकारियों के खाने-पीने की भली-भाँति व्यवस्था की. इस आन्दोलन के समर्थन में देश भर में रैलियाँ निकाली गईं व हड़तालें की गईं. आपके आह्वान पर प्रधान मंत्री व सांसदों के आवासों का घेराव किया गया. किन्तु यह सब बिलकुल अहिंसक तरीके से किया गया. कहीं कोई हिंसक घटना नहीं हुई. यही इस आन्दोलन की सबसे बढ़ी उपलब्धि रही. विभिन्न सोशल नेट्वर्किंग साइटों पर नेट वीरों ने इस आन्दोलन में एक गति बनाए रखी. जहाँ अधिकतर भारतीय इस भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में सहयोग कर रहे थे वहीँ कुछ घटिया मानसिकता के लोग इसका विरोध भी कर रहे थे. हालांकि सभी इस बात को भली-भाँति जानते हैं कि इसके पीछे उनकी स्वार्थ भावना ही कार्य कर रही थी. जन लोकपाल बिल के समर्थन में इस आन्दोलन की सफलता को दिल्लीवासियों की जीत के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि इस आन्दोलन में अपना तन, मन व धन से सहयोग करने में दिल्लीवासियों की संख्या सर्वाधिक थी. वे तब तक मैदान में डटे रहे जब तक कि सरकार ने घुटने नहीं टेक दिए. मजे की बात यह है मैदान में उपस्थित जनसमूह को अन्य राजनीतिक रैलियों में आने वाले जनसमूह की भाँति किराये पर नहीं लाया गया था बल्कि वह अपने किराए से व अपनी ख़ुशी से इस ऐतिहासिक आन्दोलन में अपनी आहुति देने आया हुआ था. इस आन्दोलन ने भारतीयों के बीच साम्प्रदायिक सौहार्द विकसित करने का भी कार्य किया. ”मैं अन्ना हूँ” के नारे लिखी हुईं गाँधी टोपियाँ धारण किये हुए लोगों ने एक धर्म, जिसे भारतीयता नाम दिया जा सकता है, का रूप ले लिया था. आपने जब अपना अनशन तोडा तब इस भारतीयता की भावना को पूरे विश्व ने भली-भाँति देखा व अनुभव किया होगा. एक स्थान पर इतनी अधिक संख्या में तिरंगे शायद ही कभी लहराए व फहराए गए हों. आपने कहा कि जंग अभी आधी ही जीती गई है और संघर्ष जारी रहेगा. अब इस देश की जनता जान चुकी है कि भ्रष्टाचार को समाप्त किये बिना भारत का भला नहीं हो सकता. तो अन्ना जी आप डटे रहें हम सभी आपके साथ हैं. यदि इस पावन कार्य में हमें अपने प्राणों की भी आहुति देनी पड़े तो भी हम सब पीछे नहीं हटेंगे.
भ्रष्टाचार रुपी दानव का अति शीघ्र संहार हो.
इसी कामना के साथ क्रांतिमय नमस्कार…
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