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कविता : मित्र

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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सुख-दुःख के साथी

मित्र-सखा भी होते हैं
सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं…

जब अपने ठुकरा देते हैं
और निराशा छा जाती है
मन विचलित हो उठता फिर
कोई आस नज़र न आती है
तब बनके सहारा मित्र हृदय में
बीज आस के बोते हैं

सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं…

कभी बनके मात-पिता वो
कभी भाई-बहन रूप में
देते काँधा निश्छल मन से
कष्टों की दोपहरी धूप में
हमको सुखमय जीवन देने को
वो नित नए सपन संजोते हैं

सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं…

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
पता- ई- 1/4, डिफेन्स कालोनी पुलिस फ्लैट्स, नई दिल्ली-110049
फोन नंबर- 09818255872
sumitpratapsingh.com

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