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कविता : सपने

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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सपने
सच होते हैं
यदि उन्हें
मेहनत के पसीने से
सींचा जाये
सपने
सच होते हैं
यदि उन्हें
प्रयास के सिलबटने पर
पीसा जाये
सपने
माँगते हैं
उन्हें देखते हुए
उनमें ही
खो जाना
सपने
चाहते हैं
निरंतरता से
उन तक
बढ़ते जाना
सपने
होते हैं
वास्तव में
वास्तविकता के
प्रथम चरण
सपने
कहते हैं
देखो उन्हें जागते-सोते
होंगे वो पूरे
इक न इक दिन।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com

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