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लघुकथा : फ़िक्र

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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विश्व पुस्तक मेले में मुफ़्त में बाँटी जा रहीं कुरान की ढेर सारी किताबों को फिरंगी लाल ने अपने बैग में ठूँसकरभर लिया और उस बैग को अपने साथी फिकर चंद को पकड़ा दिया। फिकर चंद ने सरल स्वभाव के कारण बैग को अपने कंधे पर टाँग लिया और सभी साथियों संग पुस्तक मेला घूमने के बाद अपने घर जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन जा पहुँचे और ट्रेन में सवार हो घर की ओर चल दिए।
ट्रेन चलते ही फिरंगी लाल सीट पर लंबवत हो रंग-बिरंगे सपनों में खो गया तथा बाकी साथी भी ऊँघने लगे, लेकिन फिकर चंद की नींद उड़ चुकी थी। रेल सफ़र के दौरान फिकर चंद फिक्रमंद हो रखे थे। वो सोच रहे थे कि फिरंगी लाल की जाने कैसी गन्दी आदत है कि मुफ़्त में अगर ज़हर भी मिल जाए तो उसे भी लेने से परहेज नहीं करता और ये कुरान की इतनी सारी किताबों को इसे पढ़ना-वढ़ना तो है नहीं, लेकिन ईश्वर न करे किसी दिन कुरान का कोई पेज गलती से भी फटकर अगर किसी मुसलमान के हाथ पड़ गया तो शहर में दंगा जरूर हो जाएगा। ये विचार आते ही कड़ी ठण्ड के मौसम में भी फिकर चंद के माथे पर पसीने की बूँदें नज़र आने लगीं।
लेखक – सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com
चित्र गूगल से साभार

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