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सुरुआत करू कैसे

बदलता हिंदुस्तान
बदलता हिंदुस्तान
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जब जब सोचा है नव जीवन पाने का ,
मन में आती है संसय की ही बाते .
जग में आकर भी मरणासन्न रहा हूँ ,
जब से जीवन जीने का सोचा
तब से ही धिक्कार रहा हू !
अब खोज रहा हू शीत काल फिर से जमने को
पर मन में आती है फिर ग्रीष्म काल की बाते
अवसर तो आहट देते है ,
खट खट करते है दरवाजे ,
नव जीवन के सुबहे आती है , पर डरता हू
सुरुआत करू कैसे, सुरुआत करू कैसे .
उनीदी आखो में ही जगने के सपने देखे है .
पर सुरुआत करू कैसे,
क्योँ की पथ के काटे भी देखे है .
पर अब सोच लिया है ,
काटो से हे प्यार करूँगा ,
ग्रीस्मो में ही जमने की सोचूंगा ,
आहट आते ही दरवाजे खोलूँगा,
उनीदी आखो से नहीं खुली आखो से दरवाजे खोलूँगा .
हमदम नहीं मिला तो क्या ,
जग की ही बाहों में खेलूंगा .
कोटी जनो के आसिर्वच्नो के साथ संसय का संघार करूंगा.
नव जीवन को साकार करूंगा , नव जीवन को साकार करूंगा

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