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अमरबेल का दर्द सुहाना ……..

sach ka aaina
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kk

अमरबेल का दर्द सुहाना ……..

सोमवार का दिन था खिड़की के बाहर गर्मी की गुनगुनी-सी रात गहरा चुकी थी ! खिड़की से सटकर लगी हुई रातरानी की झाड़ी के फूलों की मादक गंध खिड़की के परदे से अठखेलियाँ कर रही हवा के साथ कमरे में अपनी खुशबु बिखेर रही थी और खिड़की के छज्जे पर लदी हुई रंगून क्रीपर की बेल लाल, सफेद और गुलाबी गुच्छों के कारण ऐसे झुकी जा रही थी मानों कि अपने प्रेमी के आगमन में पलकों से राह बुहार रही हो ! इन बेहतरीन नजारों को तुम देखने में इतने मशगूल थे तुम्हारे चेहरे का रंग सिंदूरी हो गया था तुम्हारी आँखों में गहरा प्यार था और चेहरे पर उतनी ही गहरी आत्मीयता। एकदम सीधी नजर से देखते हुए तुम बोले….
सुनो तो जरा…… तुम्हारे सांवले सलोने चेहरे को देखकर बेचारे “खिड़की के परदे हवा से काँप रहे है” और बाहर भोर के हलके उजास में उड़ते परिंदों की आवाजों से तुम्हे नहीं लग रहा क्या बेचारे डर के मारे मानों कह रहे हों भागो भागो ‘सुनी” जाग गयी……

वो पल छिन याद आते हैं कितने खुशनुमा दिन थे वो जब तुम मुझे बक्त बेवक्त चिढाते रहते ! तुममें वो कला थी कि गहरे उदासी भरे माहौल को भी खुशनुमा बना देते थे बात घुमाने में तो तुम बहुत माहिर थे ……जब भी मुझे कोई दुःख होता तो तुम झट से यही कहते कि……..

‘सुन मेरे होंठों की,
मदहोशी से मदिरा पी ले
मिट जाएगा कष्ट दिलों का,
दो पल तू मेरे संग जी ले”……

तुम्हारे दिल में मेरे प्रति उठा प्रेम अचानक तुम्हारे प्रेम के आयाम को बदल देता  हम दोनों बहुत देर तक हँसते रहते ! अहंकार को विसर्जित कर “प्रेम” बुलंदियों को पाने की ख्वाहिश में ताना बाना बुनता रहता क्योंकि हम जानते थे कि अहंकार को विसर्जित करने के लिए प्रेम सब से सरल मार्ग है इसलिए ये बखूबी समझते थे कि अहंकार कभी प्रेम नहीं कर सकता है……
आइये अब आपको रूबरू करवाते है अपनी उन रचनाओं से….

१-बुनियाद २-मेहँदी ३-फूल ४-चाहत ५-आशिक……हर रचना से मैंने दो दो लाइने लीं हैं उम्मीद है आपके मन को भायेंगी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

१-बुनियाद को हल्का उसने किया होगा !

घर में सरेआम जो आता रहा होगा !!

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२-“हथेलियों में लगी मेहँदी
निहारेंगे और कितनी रातें हम
अधखुली पलकों से तन्हा
गुजारेंगे और कितनी रातें हम”

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३-अंतर्मन में फिर से सुलगे हों,
वर्षों पहले दिए वो शूल !
हमने संजो के अब भी रखे हैं,
तेरी चाहत के वो फूल !!

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४- मेरे जाने के बाद न होगा,
तुमे फिर किसी से प्यार !
तुम हर शख्स से कहोगे,
चाहो तो “सुनी” की तरह !!
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५-“दुनियां में आयेंगे जायेंगे,
न जाने आशिक कितने !
हर पल मेरी आखों को,
तुझे देखने की चाहत रहेगी !!

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और अब अंत में एक रचना की चंद पंक्तियों के साथ आपसे विदा लेना चाहूंगी……..

१-सुन शहजादे..

तुम तो कहते हो मेरे होंठों की,
मदहोशी से मदिरा पी ले
मिट जाएगा कष्ट दिलों का,
दो पल तू मेरे संग जी ले….

सुन शहजादे….

मैं अमरबेल का दर्द बनीं हूँ,
तुम सुखों के शहजादे
दूर क्षितिज में बैठे रोये,
किस्मत के सब चाँद सितारे…

सुन शहजादे……

मेरे आँचल का हर एक मोती,
है बना दुखों के मंजर से
देखो तन्हाई की चादर ने,
हैं अश्कों के जड़े सितारे ……

सुन शहजादे……

भागी छल के शहजादी
मीलों दूर खुशी की
मेरे संग संग अब भी रोये,
काली रात अमावस की…….

सुन शहजादे……

सुनीता दोहरे ……

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