जबसे प्राइमरी स्कूलों में शिक्षामित्रों को एडजस्ट करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाई है तभी से उत्तर-प्रदेश के अलग-अलग जिलों में शिक्षा मित्रों की सदमे से मौत या सुसाइड के मामले सामने आ रहे हैं हाईकोर्ट के इस फैसले से आहत होकर अलग-अलग जगहों पर करीब आधा दर्जन शिक्षामित्रों की मौत की सूचना है. कथित तौर पर इसमें से कुछ सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए तो कुछ ने आत्महत्या की है. प्रदेश में कई जिलों में शिक्षा मित्रों ने बैठक पर अगले कदम पर मंथन किया तो बरेली में 3800 शिक्षामित्रों ने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु मांगी है. गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में तैनात एक लाख 75 हजार शिक्षामित्र टीचरों का अप्वाइंटमेंट हाईकोर्ट ने कैंसिल कर दिया है। जिससे एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों की जिंदगी सांसत में फंस गई. हाईकोर्ट में शनिवार को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की डिविजन बेंच ने यह ऑर्डर दिया। चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस दिलीप गुप्ता और जस्टिस यशवंत वर्मा बेंच के जज थे। इनके अप्वाइंटमेंट का आदेश बीएसए ने साल 2014 में जारी किया था। शिक्षामित्रों को अप्वाइंट करने को लेकर वकीलों ने कहा था कि इनकी भर्ती अवैध रूप से हुई है। जजों ने प्राइमरी स्कूलों में शिक्षामित्रों की तैनाती बरकरार रखने और उन्हें असिस्टेंट टीचर के रूप में एडजस्ट करने के मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के वकीलों की कई दिन तक दलीलें सुनीं। हाईकोर्ट ने कहा, ”चूंकि ये टीईटी पास नहीं हैं, इसलिए असिस्टेंट टीचर के पदों पर इन्हें अप्वॉइंट नहीं किया जा सकता।” शिक्षामित्रों की तरफ से वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने नियम बनाकर इन्हें एडस्ट करने का फैसला लिया है। इसलिए इनके अप्वाइंटमेंट में कोई कानूनी दिक्कत नहीं है। यह भी कहा गया कि शिक्षामित्रों का सिलेक्शन प्राइमरी स्कूलों में टीचरों की कमी दूर करने के लिए किया गया है। राज्य सरकार ने गलत नीतियों को अपनाते हुए शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना दिया और आज की तारीख में शिक्षामित्र खाली हाथ हैं। सरकार की ढीली नीतियां और गलत फैसलों के कारण ही आज प्रशिक्षु शिक्षक और शिक्षामित्र एक-दूसरे के सामने लामबंद हैं। दरअसल, एनसीटीई ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत पैराटीचर को प्रशिक्षित करने की अनिवार्यता का नियम बनाया है। लेकिन स्थायी या अस्थायी नियुक्ति पर एनसीटीई ने कुछ नहीं कहा है। सपा सरकार ने रेवड़ी बांटने के अंदाज में नियमों को दरकिनार कर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाया। यहीं नहीं, सरकार ने यह तथ्य भी प्रचारित किया कि एनसीटीई ने शिक्षामित्रों को बिना टीईटी सहायक अध्यापक बनाने की अनुमति दी है। जबकि ऐसा नहीं था। ये सत्य है कि शिक्षामित्रों के काम पर रोक के बाद प्रदेश के हजारों स्कूलों में ताले लग जाएंगे। शिक्षकों की कमी के कारण बड़ी संख्या में शिक्षामित्र ही प्राथमिक विद्यालयों की कमान संभाल रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों में काम कर रहे शिक्षामित्रों के विद्यालय नहीं जाने की स्थिति में हर ब्लाक में औसतन 20 विद्यालयों में ताला बंद हो जाएगा।अब शिक्षामित्रों का समायोजन केन्द्र एवं राज्य सरकार के बीच राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। इसी के चलते शिक्षामित्रों ने केन्द्र सरकार से उनके समायोजन को लेकर नियमों में संशोधन की मांग की है। एक सत्य ये भी है कि उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे विद्यालय हैं, जहां शिक्षामित्र ही थे, अब शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक एवं उनकी नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द करने के बाद विद्यालयों की शिक्षकों की स्थिति खराब हो जाएगी। बड़ी संख्या में विद्यालयों में शिक्षक नहीं होने से तालाबंदी है। प्रदेश में कुल 1.13 लाख प्राथमिक और 46 हजार जूनियर स्तर के विद्यालय हैं। परिषदीय विद्यालयों में प्राथमिक में 5.33 लाख शिक्षक तथा जूनियर स्तर पर 2.69 लाख शिक्षक तैनात हैं। प्रदेश में आरटीई के मानक के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों के 2.60 करोड़ छात्रों के लिए 8.70 लाख शिक्षक चाहिए, जबकि तैनात 5.33 लाख ही हैं, इस प्रकार 3.37 लाख शिक्षक कम हैं। जूनियर स्तर के 92 लाख छात्रों के लिए 3.06 लाख शिक्षक चाहिए जबकि तैनाती 2.69 लाख की ही है, इस प्रकार 37 हजार शिक्षकों की कमी है। ऐसा नही है कि सरकार को इसकी खबर नही है. अब हालात ये हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से सूबे में एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद्द किए जाने से रोजगार पाने वाले शिक्षामित्र गहरे सदमे में हैं। कुछ शिक्षा मित्रों ने उनके समायोजन के संबंध में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के फेसले से निराश होकर अप्रिय कदम उठाये हैं। शिक्षा मित्र ऐसा कोई कदम न उठायें, जिससे उनके परिवार को भी कठिन और अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़े। प्रतिकूल परिस्थतियों में धैर्य बनाये रखने की जिम्मेदारी शिक्षकों की स्वयं की है और इन स्थितियों का साहसपूर्ण तरीके से सामना करने की आशा भी आप लोगों से है। उच्च न्यायालय के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कुछ शिक्षा मित्रों ने अपनी जीवन के साथ ऐसे निर्मम प्रयास किये जिनकी समाज में कोई मान्यता नहीं है। आप लोगों को धैर्यपूर्वक न्याय प्राप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हम सब आप सभी से ये उम्मीद करते हैं कि आप एक शिक्षक के उस धर्म का पालन करेंगे जो बच्चों में एक कर्मयोगी, अनुशासन, साहस और कठिन परिस्थतियों में भी अपने कर्तव्य पथ पर चलने की प्रेरणा और शिक्षा देता है। जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, जिसकी आपको और आपके परिवार को बहुत आवश्यकता है, इसलिए भावनाओं पर काबू रखें। आपको न्याय अवश्य मिलेगा। जहाँ तक मुझे लगता है कि इस समस्या का कोई न कोई वाजिब हल निकालने का प्रयास सरकार द्वारा शीघ्र ही किया जायेगा। सुनीता दोहरे प्रबंध सम्पादक
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