ये सात्विक सत्य है कि वायुमण्डल पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है l वायु का होना मानव जीवन के लिए अति आवश्यक है। क्योंकि मानव वायु के बिना “पॉंच से छह” मिनट से अधिक जिन्दा नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिन भर में औसतन “बीस हजार” बार श्वास लेता है लेकिन मनुष्य को जीवन देने वाली वायु शुद्ध नहीं होगी तो यह जीवित रखने के बजाय म्रत्यु ही देगी l यह भारत की ऐसी बड़ी समस्या है, जिसका समय रहते निराकरण नही किया गया तो, हर तरह से हमें हानि ही उठानी पड़ेगी l ”पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति तब पैदा होती है जब मानव द्वारा पर्यावरण में अवांछित तत्वों एवं ऊर्जा का उस सीमा तक संग्रहण हो जो कि पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा आत्मसात न किये जा सकें।” वायुमंडल में विभिन्न घटकों में मौलिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन, जो जैवमंडल को किसी-न-किसी रूप में दुष्प्रभावित करते हैं, संयुक्त रूप से वायु प्रदूषक कहलाते हैं l प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। वायु में हानिकारक पदार्थों को छोड़ने से वायु प्रदूषित हो जाती है। यह स्वास्थ्य समस्या पैदा करती है तथा पर्यावरण एवं सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाती है। इससे ओजोन पर्त में बदलाव आया है जिससे मौसम में परिवर्तन हो गया है l देखा जाए तो आधुनिकता तथा विकास ने, बीते वर्षों में वायु को प्रदूषित कर दिया है। उद्योग, वाहन, प्रदूषण में वृद्धि, शहरीकरण कुछ प्रमुख घटक हैं। जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है। ताप विद्युत गृह, सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान, पैट्रोरासायनिक उद्योग, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। अब आते हैं ताज़ा खबरों पर आज की ताज़ा रिपोर्ट के तहत सौ सालों में पहली बार भारत में वायु प्रदूषण का स्तर चीन से अधिक रहा। यह जानकारी नासा उपग्रह से मिले आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर सामने आई है। ग्रीनपीस ने एक बयान में कहा कि चीन द्वारा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए साल-दर-साल अपनाए गए उपायों की वजह से वहां की आवोहवा में सुधार हुआ है जबकि भारत का प्रदूषण स्तर पिछले दशक में धीरे-धीरे बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में है। ग्रीनपीस की राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक रैंकिंग रिपोर्ट में भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक वाले 17 शहरों में 15 शहरों का प्रदूषण स्तर भारतीय मानकों से कहीं ज्यादा है। भारत का राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक नेटवर्क के पास 39 चालू निगरानी स्टेशन हैं जो चीन के 1500 स्टेशन की तुलना में लगभग नगण्य सा है। हम विश्व के किसी भी हिस्से में ‘शुद्ध वायु’ नहीं प्राप्त कर सकते। जब हम सांस लेते हैं तो आक्सीजन के साथ-साथ कुछ अन्य गैसें और पदार्थ हमारे श्वशन तंत्र में प्रवेश करते हैं वायु प्रदूषण को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता। वायु कुछ गैसों का और नमी का मिश्रण है। इसमें कुछ अक्रिय (inert) पदार्थ भी हैं। वायु हमारी जिन्दगी का अत्यन्त आवश्यक तत्व है। सल्फर डाई आक्साइड (SO2) यह कोयले के जलने से बनती है। विशेष रूप से तापीय विद्युत उत्पादन तथा अन्य उद्योगों के कारण पैदा होती रहती है। यह धुंध, कोहरे,अम्लीय वर्षा को जन्म देती है और तरह-तरह की फेफड़ों की बीमारी पैदा करती है लैड यह पेट्रोल, डीजल, लैड बैटरियां, बाल रंगने के उत्पादों आदि में पाया जाता है और प्रमुख रूप से बच्चों को प्रभावित करता है। यह रासायनिक तंत्र को प्रभावित करता है। कैंसर को जन्म दे सकता है तथा अन्य पाचन सम्बन्धित बीमारियाँ पैदा करता है। कार्बन मोनो आक्साइड (CO) यह गंधहीन, रंगहीन गैस है। जो कि पेट्रोल, डीजल तथा कार्बन युक्त ईंधन के पूरी तरह न जलने से उत्पन्न होती है। यह हमारे प्रतिक्रिया तंत्र को प्रभावित करती है और हमें नींद में ले जाकर भ्रमित करती है। नाइट्रोजन आक्साइड (Nox) यह धुऑं पैदा करती है। अम्लीय वर्षा को जन्म देती है। यह पेट्रोल, डीजल, कोयले को जलाने से उत्पन्न होती है। यह गैस बच्चों को, सर्दियों में साँस की बीमारियों के प्रति, संवेदनशील बनाती है। कार्बन डाई आक्साइड (CO2) यह प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जो मानव द्वारा कोयला, तेल तथा अन्य प्राकृतिक गैसों के जलाने से उत्पन्न होती है। सस्पेन्ड पर्टीकुलेट मैटर (SPM) कभी कभी हवा में धुऑं-धूल वाष्प के कण लटके रहते हैं। यही धुँध पैदा करते हैं तथा दूर तक देखने की सीमा को कम कर देते हैं। इन्हीं के महीन कण, साँस लेने से अपने फेंफड़ों में चले जाते हैं, जिससे श्वसन क्रिया तंत्र प्रभावित हो जाता है। क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) यह वे गैसें हैं जो कि प्रमुखत: फ्रिज तथा एयरकंडीशनिंग यंत्रों से निकलती हैं। यह ऊपर वातावरण में पहुँचकर अन्य गैसों के साथ मिल कर’ओजोन पर्त’ को प्रभावित करती है जो कि सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकने का कार्य करती हैं। ओजोन यह वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पायी जाती है। यह महत्वपूर्ण गैस, हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती हैं। लेकिन पृथ्वी पर यह एक अत्यन्त हानिकारक प्रदूषक है। वाहन तथा उद्योग, इसके सतह पर उत्पन्न होने के प्रमुख कारण है। उससे ऑंखों में खुजली जलन पैदा होती है, पानी आता है। यह हमारी सर्दी और न्यूमोनिया के प्रति प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं। भारत-चीन प्रदूषण पर बात करते हुए ग्रीनपीस पूर्व एशिया के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ लॉरी मिलिविरटा ने कहा कि चीन एक उदाहरण है जहां सरकार द्वारा मजबूत नियम लागू करके लोगों के हित में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सका है। भारत सरकार को वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचने के लिए आवश्यक योजना बनाने की जरूरत है। भारत में वायु प्रदूषण के संकट को कम करने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जैसे कि ऑड-इवन नीति, कार फ्री डे और थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन पर कठोर मानक शामिल हैं। वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय (Controlling Measures of Air Pollution)- वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं- 1. मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिए। 2. नागरिकों या आम जनता को वायु प्रदूषण के कुप्रभावों का ज्ञान कराना चाहिए। 3. धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए। 4. कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए। 5. कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए। 6. मोटरकारों और स्वचालित वाहनों को ट्यूनिंग करवाना चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर नहीं निकल सकें। 7. अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। 8. उद्योगों की स्थापना शहरों एवं गांवों से दूर करनी चाहिए। 9. अधिक धुआं देने वाले स्वचालितों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। 10. सरकार द्वारा प्रतिबंधात्मक कानून बनाकर उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। यह अतिआवश्यक है कि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए समय-सीमा तय की जाए और लंबी अवधि के साथ-साथ तत्काल अंतरिम उपाय लागू किए जाएं। निर्धूम चूल्हे व सौर ऊर्जा की तकनीकि को प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे ईंधन के उपयोग की सलाह दी जाए जिसके उपयोग करने से उसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाय व धुआँ कम से कम निकले l वायु प्रदुषण से होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने हेतु प्रचार माध्यम जैसे दूरदर्शन, रेडियो पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से प्रचार करना चाहिए। अगर बढ़ते प्रदुषण को नही रोका गया तो हम अपने वर्तमान के साथ भविष्य को भी अंधकार में डूबो लेंगे l सुनीता दोहरे
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