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सुनी के दोहे :–
sach ka aaina
221 Posts
935 Comments
दो्स्तों मैंने कुछ दोहे लिखने की कोशिश की है जिन्हें में आपके साथ बांटना चाहती हूँ आशा है आप लोगों को पसन्द आयेंगे !!
सुनी के दोहे :-
–
देखे इस संसार में भरे पड़े हैवान !
पलक पुतलियाँ थम गयी ढूँढ-ढूँढ इंसान !!
मोह माया के लोभ में भ्रष्ट किया ईमान !
रक्त ही रक्त को बेच रहा बिक गया ईमान !!
वक्त ऐसा आ गया लूट मची चहुँ ओर !
कैसे होगा अंत यहाँ दिखे ना ओर छोर !!
क्यों आये अधरों पर अब कोई मुस्कान !
मात-पिता की उपेक्षा जब करे संतान !!
बना भिखारी राजा कभी रंक बना धनवान !
पलक झपकते तय करे समय बड़ा बलवान !!
इस संसार का मालिक एक है हम उसकी संतान !
जात-पात और धर्म के भ्रम में बने हुये अनजान !!
माटी को रौंद-रौंद कर गढता रूप कुम्हार !
ज्ञानी गुरुजन हल करें उसमें छिपे विकार !!
मुख से बोलो तौलकर बात करो गंभीर !
बुरा किसी को ना लगे ना ह्रदय को पहुंचे
पीर !!
आँखें तेरी प्रीत की जैसे श्याम हो राधा बीच !
नयना पुलकित हों सदा रखते इनको भींच !!.
जल में अग्नि सी जले जल गयी सारी पीर !
सोच सखी के दर्द को नैनन बह रहा नीर !!
पलक पुतलियाँ थम गई अश्क हुये गंभीर !
शून्य हो गया धरातल मन हो गया प्राण विहीन !!
असमय मन की वेदना घाव करे गम्भीर !
ह्रदय बीच कुंठा भरी दया हो गई विलीन !!
जीवन की सच्चाई को सिखा रही है पीर !
सिक्कों के दो पहलू को दिखा रही तस्वीर !!
सिसक-सिसक कर जख्मों से टूट गई जंजीर !
गुम् हो गई जब चांदनी तो कैसी हार और जीत !!
मेरा मन महुआ करे
,
उठते रोज सवाल !
मन वेदना प्रकट हुई
,
दी दोहों की सौगात !!
कठिन है इस संसार में
,
पावन मन का प्यार !
है कौन दूसरा दे सका
,
माँ जैसा निश्चल प्यार !!
नारी मन करुणा भरा
,
बनी कभी अंगार !
कभी दया कभी वेदना
,
और करे श्रंगार !!
संवेदना दया
,
छमाँ
,
पावन प्यार दुलार !
ये जननी के हर्दय में
,
होते हैं साकार !!
अनबूझ पहेली जिंदगी
,
जैसे गणित किताब !
हल न हो मौत का
,
गहरा एक हिसाब !!
मानव मन के रिश्ते
,
हैं कितने मजबूर !
प्राणों से प्रिय लग रहे
,
अब कितने मगरूर !!
बिक गए बाजार में
,
भूतकाल सम्बन्ध !
मनुज ठगा सा रह गया
,
देख नए अनुबंध !!
दलदल में है डूब गए
,
सब के सब इस वक्त !
अपनों से ही जूझ रहा
,
अपना-अपना रक्त !!
जर
,
धरनी की चाह में
,
लघु किया जमीर !
हैवानों से लग रहे
,
मुझको कई अमीर !!
इस कलयुग में ऐसा कभी
,
करना मत आराध्य !
डोर किसी के हाथ मे
,
फिरक किसी के हाथ !!
मनुज मन की चाह के
,
होते कितने रूप !
हुआ न संभव आज तक
,
गिनना रूप प्ररूप !!
आसक्ति हो सकती सुखद
,
अद्भभुत पुष्प समान !
हो यदि उसमें स्नेह
,
अनुरक्ति
,
करूणा
,
प्रेम
प्रधान !!.
लालच की पेशानी पे
,
ईमान गया है डूब !
जब मुखिया ही बेईमान हो
,
तो इसे कौन करेगा दूर !!
कांटो से चुभने लगे राजनीति के दावं !
लालच की संवेदना
,
सूखी गाँव-गाँव !!
भ्रष्टाचार की चौकड़ी
,
कब होगी बर्बाद !
दरकेगी किस दौर में
,
भ्रष्टों की सरकार !!
इतने बड़े घोटालों को
,
जग देख हुआ हैरान !
ये नेता इतने धूर्त है
,
कर दिया काम तमाम !!
…..
सुनीता दोहरे …..
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