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सुनी के दोहे :–

sach ka aaina
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दो्स्तों मैंने कुछ दोहे लिखने की कोशिश की है जिन्हें में आपके साथ बांटना चाहती हूँ आशा है आप लोगों को पसन्द आयेंगे !!

सुनी के दोहे :-

देखे इस संसार में भरे पड़े हैवान !
पलक पुतलियाँ थम गयी ढूँढ-ढूँढ इंसान !!

मोह माया के लोभ में भ्रष्ट किया ईमान !
रक्त ही रक्त को बेच रहा बिक गया ईमान !!

वक्त ऐसा आ गया लूट मची चहुँ ओर !
कैसे होगा अंत यहाँ दिखे ना ओर छोर !!

क्यों आये अधरों पर अब कोई मुस्कान !
मात-पिता की उपेक्षा जब करे संतान !!

बना भिखारी राजा कभी रंक बना धनवान !
पलक झपकते तय करे समय बड़ा बलवान !!

इस संसार का मालिक एक है हम उसकी संतान !
जात-पात और धर्म के भ्रम में बने हुये अनजान !!

माटी को रौंद-रौंद कर गढता रूप कुम्हार !
ज्ञानी गुरुजन हल करें उसमें छिपे विकार !!

मुख से बोलो तौलकर बात करो गंभीर !
बुरा किसी को ना लगे ना ह्रदय को पहुंचे
पीर !!

आँखें तेरी प्रीत की जैसे श्याम हो राधा बीच !
नयना पुलकित हों सदा रखते इनको भींच !!.

जल में अग्नि सी जले जल गयी सारी पीर !
सोच सखी के दर्द को नैनन बह रहा नीर !!

पलक पुतलियाँ थम गई अश्क हुये गंभीर !
शून्य हो गया धरातल मन हो गया प्राण विहीन !!

असमय मन की वेदना घाव करे गम्भीर !
ह्रदय बीच कुंठा भरी दया हो गई विलीन !!

जीवन की सच्चाई को सिखा रही है पीर !
सिक्कों के दो पहलू को दिखा रही तस्वीर !!

सिसक-सिसक कर जख्मों से टूट गई जंजीर !
गुम् हो गई जब चांदनी तो कैसी हार और जीत !!

मेरा मन महुआ करे, उठते रोज सवाल !
मन वेदना प्रकट हुई, दी दोहों की सौगात !!

कठिन है इस संसार में,पावन मन का प्यार !
है कौन दूसरा दे सका, माँ जैसा निश्चल प्यार !!

नारी मन करुणा भरा, बनी कभी अंगार !
कभी दया कभी वेदना, और करे श्रंगार !!

संवेदना दया, छमाँ, पावन प्यार दुलार !
ये जननी के हर्दय में , होते हैं साकार !!

अनबूझ पहेली जिंदगी, जैसे गणित किताब !
हल न हो मौत का, गहरा एक हिसाब !!

मानव मन के रिश्ते, हैं कितने मजबूर !
प्राणों से प्रिय लग रहे, अब कितने मगरूर !!

बिक गए बाजार में, भूतकाल सम्बन्ध !
मनुज ठगा सा रह गया, देख नए अनुबंध !!

दलदल में है डूब गए, सब के सब इस वक्त !
अपनों से ही जूझ रहा, अपना-अपना रक्त !!

जर, धरनी की चाह में, लघु किया जमीर !
हैवानों से लग रहे ,मुझको कई अमीर !!

इस कलयुग में ऐसा कभी, करना मत आराध्य !
डोर किसी के हाथ मे, फिरक किसी के हाथ !!

मनुज मन की चाह के, होते कितने रूप !
हुआ न संभव आज तक, गिनना रूप प्ररूप !!

आसक्ति हो सकती सुखद, अद्भभुत पुष्प समान !
हो यदि उसमें स्नेह, अनुरक्ति,करूणा,प्रेमप्रधान !!.

लालच की पेशानी पे, ईमान गया है डूब !
जब मुखिया ही बेईमान हो,तो इसे कौन करेगा दूर !!

कांटो से चुभने लगे राजनीति के दावं !
लालच की संवेदना, सूखी गाँव-गाँव !!

भ्रष्टाचार की चौकड़ी, कब होगी बर्बाद !
दरकेगी किस दौर में, भ्रष्टों की सरकार !!

इतने बड़े घोटालों को, जग देख हुआ हैरान !
ये नेता इतने धूर्त है,
कर दिया काम तमाम !!

…..सुनीता दोहरे …..

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