बॉक्स……..शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा…….
देश को आजाद करवाने के लिए अपनी जान की आहूति देने वाले शहीदों की शहादत को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. इस आजाद भारत देश में सांस ले रहा प्रत्येक भारतीय हमेशा शहीदों के त्याग का कर्जदार रहेंगा. आइये दोस्तों आज आपको कुछ भूली बिसरी यादों की ओर लेकर चलते हैं. वतन पर मिटने वाले उन नौजवानों की कहानी से रु-ब-रु कराते हैं जिन्होंने अपनी जवानी वतन के नाम लिख दी थी. वो सच्चे हिन्दुस्तानी जिनकी वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं अपनी जमीं और अपने आसमां का सुख भोग रहे हैं और जिन्होंने ये सपना देखा था हम आज उन्हें भूले बैठे हैं. सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना के मौहल्ला नौघरा में रामलाल थापर के घर हुआ था. जिस उम्र में बच्चे खेल की तरफ आकृषित होते हैं. मौज मस्ती करते हैं. उस उम्र में सुखदेव वीरता की कहानियां पढा करते थे. उनके कमरे में महारानी लक्ष्मी बाई की तस्वीरें लगी थी और वे लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियां पढा करते थे. सुखदेव थापर ने 1922 में लायलपुर नेशनल कालेज लाहौर में एडमिशन ले लिया था लायलपूर नेशनल कालेज की स्थापना लाला लाजपत राय ने की थी. वहां का माहौल ही देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ था. यही भगत सिंह की दोस्ती सुखदेव से हुई थी. यह याराना दोस्त, भाई, हमदर्द तक का सफर तय करते हुए फांसी के फंदे पर भी जाकर कायम रहा. देश की खातिर कुर्बानी का वचन दोनों ने निभाया. लायलपुर नैशनल कालेज में रूस, फ्रांस और इटली की क्रान्ति को सुखदेव ने खूब पढ़ा और उससे प्रभावित भी हुए. बंगाल के प्रोफेसर जयचन्द ने ही सुखदेव की मुलाकात क्रान्तिकारियों से करवाई थी. 1926 में भगत सिंह, सुखदेव और भगवती चन्द बोहरा ने मिलकर नौजवान भारत सभा की शुरूआत की थी. नौजवान भारत सभा की मीटिंगों में सुखदेव थापर कहा करते थे- मुझे ऐसे साथियों की जरूरत है, जो मौत से ना डरे ना पीठ दिखाएं….. ऐसी थी हमारे क्रान्तिकारी नौजवानों की सोच. 8-9 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारियों की एक गुप्त मीटिंग में बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, संयुक्त पंजाब, उत्तर प्रदेश के अलावा देश भर से आए हुए क्रान्तिकारियों को गुप्त नाम दिए गए. क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत की नजरें इनकी गतिविधियों पर लगी रहती थी. जब 20 अक्टूबर 1928 को पूरा लाहौर शहर सड़कों पर आकर साइमन कमीशन वापिस जाओ, वापिस जाओ के नारे लगा रहा था. सारा शहर सड़क पर था. देशभक्ति और निष्ठा, कुर्बानी और देश की खातिर जान देने को तैयार लाहौर के पंजाबी अपनी मशाल जलाए रहते थे. ब्रिटिश हकूमत ने लाठीचार्ज का हुकुम दिया जिससे लालालाजपत राय इस लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हुए थे और 27 नवम्बर 1928 को लाला जी का देहान्त हो गया. तब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर ने लाला जी के हत्यारे को मारने की कसम खाई थी. फिर क्या था देखते-देखते 1929 में असेम्बली में बम धमाका किया गया. जहां तीनों ने अपनी गिरफ्तारी दे दी थी. सुखदेव ने जेल से गांधी जी को एक खत लिखा था. जिसमें उन्होंने गांधी जी के प्रति रोष प्रकट किया था. कारण था गांधी जी द्वारा क्रान्तिकारियों के रास्ते का विरोध और आलोचना करना. उन्होंने गांधी जी को लिखा- हम सजा से बचना नहीं चाहते हैं. हमें मौत का कोई डर नहीं है. हमारी फांसी से देश के नौजवानों के दिलों में एक नया जज्बा भरेगा और आजादी की इस जंग को नई ताकत मिलेगी. हमारे फांसी पर चढऩे से आंदोलन और तेज होगा और हुआ भी वही. वतन पर मिटने वाले मतवाले सुखदेव थापर ऐसे थे हमारे क्रान्तिकारी नौजवान. जब इन तीनों को फांसी के तख्त पर ले जाया जा रहा था तो पुलिस के एक अधिकारी से रहा नहीं गया, बोला इन खूबसूरत चेहरों में बिगड़े हुए दिमाग वाले मासूम नौजवानों ये क्या किया तुम लोगों ने. इन तीनों क्रांतकारियों के सामने मौत का फंदा था. फिर भी जैसे ही सुखदेव थापर ने उस अधिकारी की बात सुनी इस हाजिर जवाब शेर ने एक शेर कह दिया. क्योंकि सुखदेव थापर जब मूड होता था तो शेरो शायरी भी कर लिया करते थे और जवाब भी बहुत खूब दिया करते थे. इन बिगड़े हुए दिमागों में धनी खुशबू के लच्छे हैं। हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं। इन तीनों क्रान्तिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया. ब्रिटिश हकूमत इस कदर डर गई थी कि इन क्रान्तिकारियों की देह भी उनके घरवालों को सौंपने से डर रही थी. पूरा महापंजाब गुस्से से भरा हुआ था. नौजवानों का खून खौल रहा था. 25 वर्ष से भी कम उम्र के तीनों क्रान्तिकारी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव देश के युवाओं में एक नई ऊर्जा भरने के साथ-साथ नौजवानों को क्रान्ति का नया रास्ता दिखा गए थे. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष और इतिहासकार चमन लाल का कहना है कि सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव शामिल नहीं थे, लेकिन फिर भी ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें फांसी पर लटका दिया. उनका कहना है कि राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की लोकप्रियता तथा क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजी शासन इस कदर हिला हुआ था कि वह उन्हें हर कीमत पर फांसी पर लटकाना चाहता था. इन शहीदों ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला दी थी. अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वे हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे. लाहौर षड्यंत्र [सांडर्स हत्याकांड] में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया, वहीं अंग्रेजों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया. सांडर्स हत्याकांड में पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया और सुखदेव को इस मामले में बिना जुर्म के ही सजा दे दी गई. अब देखिए ब्रिटिश हकूमत की क्रूरता की कहानी- ट्रक से तीनों क्रान्तिकारियों के शवों को फिरोजपुर से हुसैनीवाला के नजदीक लाया गया. इनके शवों के टुकड़े करकर चिता जलाई गई और अधजले टुकड़ों को सतलुज में बहा दिया गया चिता वाले स्थान से मिट्टी के तेल की बदबू आ रही थी. शहीद कभी मरा नहीं करते हमारे दिलो-दिमाग में बसते हैं. वतन पर मिटने वालों को मरने भी नहीं देना चाहिए. चाहे बुर्जुग हो चाहे नौजवान सभी को यह याद रखना चाहिए कि 25 वर्ष से भी कम उम्र में देश की आजादी, हमारी आजादी, हमारे अधिकारों की खातीर फांसी के फंदे को खुशी से चूमने वाले, ब्रिटिश हकूमत की चूले हिलाने वाले, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु कोई आम युवा नहीं थे. देश के युवाओं को भी विचार करना होगा. क्या उन्होंने हमें इसी दिन के लिए अपनी जान की कुर्बानी देकर आजादी दिलवाई थी. देश में फैले भ्रष्टाचार और अवस्था के दोषी क्या आज के नौजवान नहीं हैं. सियासी दलों के हाथ का खिलौना बन बैठा आज का युवा क्या शर्मिन्दा नहीं है. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत की खबर को मीडिया ने काफी प्रमुखता से छापा। ये खबर पूरे देश में जंगल की आग तरह फैल गई। हजारों युवाओं ने महात्मा गांधी को काले झंडे दिखाए। सच पूछें तो देश की आजादी के लिए आंदोलन को यहीं से नई दिशा मिली, क्योंकि इससे पहले तक आजादी के कोई आंदोलन चल ही नहीं रहा था। उस वक्त तो महात्मा गांधी समेत अन्य नेता अधिकारों के लिए लड़ रहे थे, लेकिन भगत सिंह पूर्ण स्वराज की बात करते थे, जिसे बाद में गांधी जी ने भी अपनाया और हमें आजादी मिल सकी. भगत राजगुरु सुखदेव ये वे नाम है जिनका नाम लेते ही हमारी आखो में पानी आ जाना चाहिए . सूर्य मोमबती का मोहताज नही होता. उन्ही रत्नो के प्रकाश से आज पूरा देश जगमगा रहा हे. भारतमाँकेइससच्चेसपूतसुखदेवकोउनकेजन्मदिनकेअवसरपरहमसबकीओरसेशतशतनमन!! वन्देमातरम!! सुनीता दोहरे…...
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