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अखिलेश सरकार को मदिरा बेचकर विकास चाहिए….

sach ka aaina
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अखिलेश सरकार को मदिरा बेचकर विकास चाहिए..

मादक द्रव्यों का इस्तेमाल करना और करने देना दोनों ही गुनाह के दायरे में आते हैं l बड़ों से देखा और सुना यही है कि सभी धर्मो में शराब पीना गुनाह है, क्यूंकि शराबखोरी से शराबी का सैंकड़ो प्रकार से पतन होता हैं इस गंदे पेय की बजह से चारों तरफ तबाही फैली हुई है l आज का युवा, जीवन की वास्तविकताओं से बेखबर हो, अनजान रास्तों की भुलभूलेयों में भटक कर रह गया है | मात्र क्षणिक आनन्द के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को विनाश की ओर धकेल रहा है | लेकिन फिर भी सरकारे शराब की बिक्री को बढ़ावा दे रहीं हैं l ये अपने अपने प्रदेश में शराब पर क्यूँ प्रतिबन्ध नहीं लगाती हैं कारण आपके सामने है l कभी कभी मुझे बड़ी ही कोफ़्त होती है कि सरकार कहती है कि शराब से राजस्व प्राप्त होता है और उत्तर प्रदेश की विडम्बना ये है कि अखिलेश सरकार को शराब बेचकर विकास चाहिए। ये कैसा विकास कर रहे हैं l जहाँ परिवार के परिवार और पूरे कुनबे उजड़े जा रहे हैं l मासूम बच्चों की किलकारी गायब हो रही है उनका बचपन सिसक सिसक कर घुट रहा है महिलाओं की सिसकियाँ रात के अँधेरे को चीरती हुई ना जाने कहाँ गुम हो जाती हैं और अखिलेश सरकार अंधी गूंगी बहरी होकर रह गई है l
मुझे ये कहने में कतई संकोच नहीं कि, अखिलेश सरकार राजस्व की भूख के चलते उत्तर प्रदेश वासियों को शराबी बना रही हैं। अखिलेश सरकार आवाम की संवेदनाओं के प्रति संवेदनहीन हैं l यहाँ दूध को तरसते,  रोते बिलखते, कुपोषित बच्चे कहीं भी नजर आ जायेंगे l क्यूंकि, शराब सस्ती और आसानी से मिल जाने के कारण रोज़ की दिहाड़ी पर दिन काटने वाले अपनी कमाई को शराब पर उड़ा देते हैं । आज की युवा पीढ़ी जिसके कंधों पर देश का भार  है, आज वही इन दुर्व्यसनों की शिकार होती जा रही है |  देखने से साफ़ झलकता है कि देश की व राज्य की व्यवस्था मदिरा मस्त हो गई है शराबखोरी ने समूचे भारत में अपने पैर फैला लिए है l भारत में बढ़ता हुआ शराब का प्रचलन बहुत चिन्ताजनक है.
दूर क्यूँ जाते हैं उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिये l यहाँ के सत्ताधारी अपने को समाजवादी, प्रगतिशील और सुधारवादी कहते हैं l लेकिन यहाँ गैरकानूनी शराब बनाने और बेचने का धन्धा जिस जोर शोर से चल रहा है वो इन सत्ताधारियों से छुपकर नहीं चलता l वो इन सबकी देख रेख में फलता फूलता है l उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना गलत नहीं है कि जितनी शराब कानूनी बिकती है उससे कम गैर कानूनी की भी खपत नहीं है। नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति के लिए हमारी केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य राज्य सरकारें मुख्य रूप से दोषी हैं । अगर गौर करें तो नैतिक शिक्षा का पाठ तो देश की आवाम कब का भूल चुके हैं क्योंकि उन्हें सरकार से विरासत में अश्लील टी.वी. सीरियल, लपलपाती महत्वाकांक्षाएं व पश्चिम की भोंड़ी नकल में सने हुए शराब के विज्ञापन आये दिन देखने को मिलते है। इसके लिए सरकार द्वारा सरकारी राजस्व अर्जित करने की आड़ में चलायी जा रही शराब की फैक्ट्रियां और नशीली वस्तुएं बनाने वाली कंपनियां भी जिम्मेवार हैं जिनसे सरकार को करोड़ों रूपये की आय होती है लेकिन बदले में समाज को मिलता है विनाश । इसे एक विडम्बना ही तो कहेंगे कि शराब, सिगरेट, अफीम आदि के सेवन का प्रचलन इतनी हद तक हो गया है कि इसका उपयोग न करने वालों को दकियानूसी समझा जाता है |  नशा करने वाला ये जानता है कि ये द्रव्य न तो टोनिक है और  ना ही किन्ही अर्थों में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी लेकिन, फिर भी इसका उपयोग करता हैं | ये सत्य है कि जो राष्ट्र समाज शराब और अन्य  नशाखोरी का शिकार है उसके सामने विनाश मुह बाए खड़ा है l इतिहास गवाह है कि शराब से विनाश के अनेक परिणाम मिलते है l देखा जाए तो छोटे शहरों में जब कोई कंपनी प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करती है तो खान पान में आवश्यक रूप से शराब परोसी जाती है l और उन्ही कंपनियों ने फिल्मी सितारों को अपना ब्रांड एंबेस्डर या प्रचारक अनुबंधित किया हुआ है अक्सर सरकारी बैठकों में भी शराब देखी जा सकती है। शराब कारोबार में आजकल जबरदस्त आपसी प्रतिस्पर्धा है और शराब कंपनियां अपने व्यापार के फलने फूलने के प्रति उम्मीदों से लबरेज है l क्या यही हमारी संस्कृति है l हमारी सरकारे प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस चंद मुटठी़ भर लोगों के हवाले कर देती है। जबकि सरकारों को चाहिए कि लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार दें ताकि, देश का मानव संसाधन स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित हो l सरकार को समझना चाहिए कि युवा आबादी भारत की अमूल्य धरोहर है। जिसकी रचनात्मकता हर असंभव चीज को संभव बना सकती है। इनका भटकाव केवल विषमताओं को जन्म देता है। नशे की बढ़ती लत से समाज में अपराध, हत्या और यौन शोषण जैसी गंभीर अपराधों का बढ़ावा मिल रहा है। फिर भी सरकार को जूं  तक नहीं रेंगती.
शराबी ये खूब जानता है कि शराब मनुष्य के शरीर को तो गलाती और कमजोर करती ही है साथ ही इसका प्रभाव बुद्धि की तीक्ष्णता और मस्तिष्क की सम्वेदना शक्ति पर भी पड़ता है । शराबी को खूब पता होता है कि शरीर और मस्तिष्क की बर्बादी धन की अन्धाधुन्ध तबाही और उसके दूरगामी सामाजिक परिणाम ऐसे हैं जिससे सब प्रकार विनाश ही विनाश प्रस्तुत होता है l लेकिन आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण वो इसे त्याग नहीं पाता l आज सबसे अहम् सवाल ये है कि युवाओं में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश कैसे लगाया जाए? तो इसके लिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को अच्छे संस्कार दें। नशे के दुष्परिणामों से अपने बच्चों को अवगत कराएं l जब तक अभिभावक पहल नही करेंगे तो बच्चे की नीव मजबूत नही होगी और साथ ही सरकार को चाहिए कि वह नशीले पदार्थों का कारोबार करने वालों पर शिकन्जा कसे और समूचे देश में शराबबंदी लागू करे l क्यूंकि सिर्फ एक दो राज्यों में शराबबंदी लागू करने से शराबखोरी नही रुकेगी उल्टा और बढ़ेगी l

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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