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रुक्मणी का अस्तित्व..

sach ka aaina
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sunita dohare

रुक्मणी का अस्तित्व..

मैं जब सुबह अपनी आँखे खोलती हूँ तो तुम्हारा मासूम सा चेहरा मेरी आँखों के सामने तैरने लगता है l क्या यही प्यार की पराकाष्ठा है । तुझे तो ये भी  खबर नहीं  कि मेरा इकतरफा प्रेम समूची कायनात को अपने आपमें समेटे हुए दिन व दिन परवान चढ़ रहा है । क्या ये राधा की इबादत है या फिर मीरा जैसा पवित्र प्रेम । या फिर ये उन गोपियों जैसा है जो सिर्फ मुरली की दीवानी थी ।

अरे हाँ मैं भी तो तेरी आवाज़ की दीवानी हूँ क्योंकि तू मुरली तो बजा नही सकता । राधा जैसी मैं किस्मत लेकर आई नही, जो तेरे नाम के साथ जुड़ सकूँ । हाँ मैं मीरा सा प्रेम करती हूँ एकदम निश्छल प्रेम । नही यकीन तो इक विष का प्याला मुझे भेज दे, जिसे मैं तेरे नाम से पी लूँ और अमर हो जाऊं। हाँ ऐसा अनोखा प्रेम है मेरा।

ये बैचैन दिन, बैचेन राते और बैचेन पल छिन अपने आपमें  कितनी जद्दोजहद करते हैं सिर्फ तुझसे ये कहने के लिए क़ि मुझे तुझसे प्यार है । हाँ ये अलग बात है कि तुझसे कभी ये नही कहूंगी कि, मुझे तुझसे प्रेम है अगर पढ़ सकते हो तो मेरी बैचेनियों में पढ़ लो, मेरी आँखों के सूनेपन में पढ़ लो, मेरी वीरानियों में पढ़ लो । क्योंकि, मैं अहिल्या की तरह शिला नही बनना चाहती , सीता की तरह अग्नि परीक्षा नही दे सकती, अनारकली की तरह दीवार में नही चुनना चाहती।

हाँ मैं इक नारी हूँ और इन सबसे मेरी उत्पत्ति हुई है। अब चाहे तुम मुझे गलत समझो लेकिन, मैं सच कहूँगी कि मेरा प्रेम मीरा की तरह है जिसे स्वयं मोहन भी नही समझ सके।  और मैं रुक्मणी की तरह तुम्हारी अर्धांगिनी नही बनना चाहती क्योंकि, इक वरमाला पहनने से मेरा अस्तित्व जो कि प्रेम से बना है समय की गर्त में देखते देखते समा जायेगा । और मैं फिर रह जाउंगी नितांत अकेली । नितांत अकेली ।……

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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