Menu
blogid : 12009 postid : 864444

जब रसूख और पैसा चढ़ेगा इनकी भेंट, तो कैसे होगी पुलिसिया कार्यवाही ?

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

सुनीता दोहरे

जब रसूख और पैसा चढ़ेगा इनकी भेंट

तो कैसे होगी पुलिसिया कार्यवाही ?

मुझे ये कहने में कोई डर नहीं कि पुलिस के हर थाने में एक शख्स ऐसा तैनात किया जाता है जिसे थानेदार का संरक्षण मिला होता है जिसका काम सिर्फ टैक्सी स्टैंड, माफियाओं, चोरों, लूटेरों, गांजा, शराब की महीने की वसूली हुई धनराशि जिले के पुलिस अधिकारियों के पास तय समय पर पहुंचाना होता है। इस वसूली हुई धनराशी के पीछे फलता-फूलता है अपराध, जिसे हादसे का नाम दिया जाता है। और बेमौत मरती है गरीबी,  अनाथ होते हैं मासूम बच्चे,  सूनी होती है सुहागिनों की मांग। अब ऐसे में आवाम जाये तो जाए कहाँ,  आखिर शिकायत करे भी तो किससे करे? वो कहते हैं कि जब रक्षक ही भक्षक हो तो फिर कौन करेगा रखवाली।….
ये बात गुजरी जनवरी २०१५ की है जब लखनऊ और उन्नाव में कच्ची शराब के सेवन से 27 लोगों की मौत होने के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। लेकिन फिर भी प्रदेश में कच्ची शराब का धंधा बड़े पैमाने पर हो रहा है। हालत यह है कि कई जगह कारखानों के अंदाज में अवैध शराब के अड्डे संचालित होते हैं। सब कुछ जानते हुए भी पुलिस और प्रशासन अनजान बना रहता है। कई लोग कच्ची शराब के सेवन की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं, प्रदेश में अवैध शराब के धंधे से जुड़े लोगों का नेटवर्क तोड़ने के लिए कभी ठोस प्रयास किए नहीं गए। शायद प्रशासन की आंखें लखनऊ और उन्नाव जैसी घटना होने के बाद ही खुलेंगी। प्रदेश में कच्ची शराब का धंधा कुटीर उद्योग के रूप में फलफूल रहा है। दर्जनों गांवों में धड़ल्ले से संचालित हो रहे इस धंधे में सैंकड़ों परिवार काम कर रहे है। तैयार माल की सप्लाई गांव से लेकर शहर तक में होती है। चूंकि कच्ची शराब के ग्राहकों में रिक्शेवालों से लेकर तमाम बड़े लोग भी शामिल हैं, ऐसे में यहां लखनऊ के मलिहाबाद जैसी घटना कभी भी दोहराई जा सकती है। आश्चर्य की बात है कि यह पूरा गोरखधंधा पुलिस की जानकारी में है। बावजूद इसके प्रदेश में अभी तक एक बार भी सुनियोजित कार्रवाई नहीं हो सकी है।
गौरतलब हो कि लखनऊ के मलिहाबाद दतली गांव में हर घर में शराब बनती है। यह सब पुलिस व आबकारी की मिलीभगत से होता है इसकी पुष्टि खुद गांव की महिलाओं व युवकों ने प्रशासनिक अफसरों के सामने की। कुछ दिन पहले जगनू और उसके तीन साथियों को पुलिस ने पकड़ा था लेकिन बाद में सभी को कोतवाली से छोड़ दिया गया था। पुलिस को यहां की हर अवैध भट्ठी के बारे में अच्छी तरह जानकारी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जाता है कि जहरीली शराब से जब शुरुवाती दौर में तीन लोगों की मौत हुई और शिकयत लेकर ग्रामीण जब पुलिस के पास पहुंचे तो उन्हें डपट कर भगा दिया गया। पुलिस ने इस बारे में बड़े अफसरों को भी बताना उचित नहीं समझा। जब मौतों का आंकड़ा 10 से ऊपर पहुंचा और इलेक्टानिक चैनलों से लेकर सोशल मीडिया में ख्बर वाइरल हो गयी तब जानकारी अफसरों तक पहुंची। और जब तक पुलिस व प्रशासनिक अमला कुछ कर पाता देखते ही देखते मरने वालों की संख्या अब 43 हो गयी । इसमें 30 लखनउ व 13 उन्नाव के लोग थे । जबकि 150 से अधिक लोग अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। जहरीली शराब पीने के बाद इलाज से जिनकी जान बच गई अब उनके सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई l  भर्ती कई मरीजों ने आंखों के आगे अंधेरा छाने की शिकायत की थी। कई मरीजों को कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था । दर्जनों मरीजों के गुर्दे खराब हो गए थे । जो डायलिसिस पर चल रहे है।
यूपी शासन ने इस मामले में तात्कालिक प्रभाव से कई अधिकारीयों को निलंबित कर दिया था । मतलब इनसे संबंधितों को इधर-उधर या सस्पेंड कर अपनी कुर्सी तो बचा ली, लेकिन सवाल यही है कि क्या इतने मौतों के बाद भी जहरीली शराब से होने वाली मौतों का अंतःहीन सिलसिला थम जायेगा? फिलहाल ग्रामीण तो यही कह रहे थे कि पुलिस पहले चेतती तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। आज भी रोजाना शाम पांच बजते ही वहां आसपास के गांव वालों का जमावड़ा लग जाता है। लोग कभी-कभी वहां से पीकर आते हैं तो कभी-कभी घर पर ले जाते हैं। ग्रामीणों की मानें तो इस जहर का धंधा करने वाले लोग दतली से बड़े-बड़े ड्रमों में शराब लाकर अपने गांव में बेचते हैं। इसे दो से लेकर पांच रुपए महंगा करके बेचने से उनको घर बैठे फायदा मिलता है। पीडि़त परिवारों का कहना था कि अवैध धंधे को लेकर कई बार पुलिस और आबकारी विभाग में शिकायत की गई, लेकिन अवैध कमाई के चक्कर में कभी ध्यान नहीं दिया गया। गांव वालों का कहना था कि दोनों ही जगह यह शराब माफिया बड़ा पैसा पहुंचाते थे। इसी वजह से यह जहरीली शराब आसपास के गांव में भी सप्लाई करते थे और पुलिस कुछ नहीं करती थी। वजह भी साफ है, जब पुलिस की कमाई का यह बड़ा जरिया है तो कैसे इस पर लगाम लग पायेगा यह आप खुद समझ सकते है। इस जहरीली शराब से किसी के भाई की तो किसी के बाप-भतीजें की मौत हुई है तो कोई मौत व जिंदगी से जूझ रहा है। हैरत की बात तो ये है कि मौत का सामान बनाती कच्ची शराब की इन भट्टियों की ओर प्रशासन का ध्यान तभी जाता है, जब मलीहाबाद जैसा कोई हादसा होता है। ऐसे हर हादसे का शिकार गरीब और श्रमिक तबका होता है। इसी हादसे ने न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया है।
विगत दिनों आजमगढ़ में हुई इस तरह की घटना में छोटे-मोटे अफसरों को तो निलंबित करके इतिश्री कर ली, मगर जैसा हमेशा होता आया है वैसा ही हुआ, बड़े अफसरों को छोड़ दिया गया। इस तरह का दिल दहलाने वाला हादसा क्या प्रदेश सरकार की नजरों में मामूली सा था जो इन अफसरों को बख्श दिया गया। इन शराब माफियाओं से माहवारी वसूलने वाली पुलिस पर सरकार का क्या कोई नियंत्रण नहीं रहा या फिर इसे सरकार की लापरवाही समझी जाए। इतना सब होने के बाद भी अब तक बड़े पैमाने पर शराब माफियाओं व ठेकेदारों से पुलिस का हफता वसूली जारी है।…..
मुझे ये कहने में कोई डर नहीं कि पुलिस के हर थाने में एक शख्स ऐसा तैनात किया जाता है जिसे थानेदार का संरक्षण मिला होता है जिसका काम सिर्फ टैक्सी स्टैंड, माफियाओं, चोरों, लूटेरों, गांजा, शराब की महीने की वसूली हुई धनराशि जिले के पुलिस अधिकारियों के पास तय समय पर पहुंचाता है। इस वसूली हुई धनराशी के पीछे फलता-फूलता है अपराध, जिसे हादसे का नाम दिया जाता है। और बेमौत मरती है गरीबी, अनाथ होते हैं मासूम बच्चे, सूनी होती है सुहागिनों की मांग। अब ऐसे में शिकायत अगर की जाये तो फिर किससे की जाये वो कहते हैं कि जब रक्षक ही भक्षक हो तो फिर कौन करेगा रखवाली। सरकार में शामिल लाल फीताशाही व माफियाओं के शह पर होने वालीं ये घटनाएं जिनमें एक साथ कई मौतें हो जातीं हैं। शराब माफिया कच्ची शराब को ज्यादा नशीला बनाने के लिए यूरिया और बेसरम के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं। इससे कच्ची शराब काफी जहरीली बन जाती है और लोगों को जान गंवानी पड़ती है। प्रदेश के कई जिले इसकी चपेट में हैं देखा जाए तो केवल अखिलेश राज में जहरीली शराब से 554 से अधिक लोग मौत के गाल में समा चुके है। सरकारी दामों से काफी सस्ती और आसानी से उपलब्धता के कारण गरीब तबका इस जहर की जकड़ में है। यही वजह है मौत का यह घिनौना खेल सालों-साल से चल रहा है। विशेष सूत्रों के अनुसार शराब माफियों का साफ कहना है कि कच्ची शराब के इस धंधे में उन्हें पुलिस और आबकारी विभाग का भरपूर सहयोग मिलता है। पूरे प्रदेश में यह धंधा पुलिस के संरक्षण के बतौर ही फल-फूल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों की बात क्या करें शहरी क्षेत्र में ही तमाम अड्डों पर खुलेआम अवैध शराब की भट्टियाँ संचालित होती हैं। उरई में मुहल्ला उमरारखेड़ा के बाहरी हिस्से में कबूतरा समुदाय द्वारा अवैध कच्ची शराब बनाने का काम किया जा रहा है। महुआ, सड़े हुए गुड़ के मिश्रण से तैयार लहन से कच्ची शराब उतारी जाती है। गंदगी के बीच तैयार होने वाली यह शराब न सिर्फ यहां बल्कि आसपास के कई जनपदों में सप्लाई की जाती है। पंद्रह से बीस रुपये प्रति पाउच के कीमत से फुटकर में भी इसी अड्डे शराब सप्लाई होती है। इस तरह कालपी में मोतीपुर के पास कच्ची शराब का कारोबार होता है। दबाव पड़ने के बाद पुलिस कई बार छापा मार चुकी है, लेकिन धंधा खत्म नहीं हुआ। एटा थाना क्षेत्र में विरासनी के पास अवैध शराब की भट्टियाँ कई बार पकड़ी गईं, लेकिन अड्डा फिर भी खत्म नहीं हुआ। सिरसा कलार थाना क्षेत्र में न्यामतपुर के पास कोंच कोतवाली क्षेत्र में गिरवर डेरा समेत तमाम जगह ऐसी हैं जहां रोज बड़े पैमाने पर कच्ची शराब उतारकर एजेंटों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई की जाती है। मजदूर और गरीब वर्ग के लोग इस शराब की लत में पड़कर बुरी तरह से बर्बाद हो रहे हैं।  वहीं प्रदेश के मूसाझाग के गांव बरसुनिया, मररई, मुडि़या खेड़ा, भगवतीपुर, घिलौर, कादराबाद, बबयाने, जगुआसेई, फरीदापुर, कण्डेला, ललभुजिया, मालीनगला, सैंजनी, किशनी महेरा, चंगासी, चपरा, बकतपुर, मौसमपुर, गौंटिया, हजरतपुर थाना क्षेत्र के बक्सेना, जिंदी, पिपला, नगरिया, कलक्टर नगला, कैमी धरेली, कनकपुर, दातागंज पापड़, गढ़ा, कौली, सुखौरा, नूरपुर, कलौरा आदि गांवों में कच्ची शराब धड़ल्ले से बन रही है। इन गावों में कच्ची शराब का कारोबार करने वालों को पुलिस ने पकड़ा भी लेकिन किसी पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई। उत्तर-प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के गांजरी इलाके में शारदा व घाघरा नदियों के साथ-साथ कच्ची शराब का झरना बहता है कच्ची शराब के उत्पादन और बिक्री में तहसील धौरहरा अव्वल है। इसके तीनों ब्लाक ईसानगर, धौरहरा व रमियाबेहड़ की एक भी ग्राम पंचायत ऐसी नहीं है जहां ये शराब बनती और बिकती न हो। धौरहरा और ईसानगर कस्बे को थाने के पास ही शराब के अड्डे खुलेआम चल रहे हैं। जिन पर प्रतिदिन हजारों रुपयों का कारोबार होता है। थाना कोतवाली धौरहरा क्षेत्र के ग्राम जुगनूपुर, बबुरी, अमेठी, बसंतापुर, नरैनाबाबा, सुजानपुर, कफारा जैसे गांवों में शराब का निर्माण व बिक्री धड़ल्ले से होती है। कुटीर उद्योग के रूप में पांव पसार चुके इस कारोबार में स्थानीय पुलिस की हिस्सेदारी रहती है। यही वजह है कि शासन-प्रशासन के निर्देशों का कोई असर नहीं होता। इस धंधे का संचालन पहले पुरुष ही करते थे, लेकिन अब इसमें महिलाएं भी उतर आई हैं और वे पुरुषों को पछाड़ रही हैं। ईसानगर, चिंतापुरवा, लोधपुरवा, वीरसिंहपुर, रामलोठ, ठकुरनपुरवा, रायपुर, डेबर, दुगार्पुर, पड़री, हसनपुर कटौली, अदलीसपुर, मूसेपुर, वेलागढ़ी, कैरातीपुरवा, मिजार्पुर, जगदीशपुर जैसे सौ से ज्यादा गांवों में कच्ची शराब का कारोबार चल रहा है। इस अवैध उद्योग के उद्यमियों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मलिहाबाद व उन्नाव में जहरीली शराब से हुई मौतों को देखते हुए कड़ा रुख अख्तियार किया था जिसके चलते प्रदेश के डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह ने सभी जिलों में अवैध शराब के कारोबारियों के खिलाफ चेकिंग अभियान चलाने का फैसला किया गया था। जिसके एवज में प्रदेश के कई जिलों में छापेमारी की गयी। लेकिन वही ढाक के तीन पात।…
अगर पुलिस इनकी संरक्षक नहीं है तो ये क्या है कि उन दिनों पुलिस ने बदायूं में धरेली गांव के दो लोगों को भट्ठी समेत शराब तोड़ते हुए पकड़ा। पुलिस ने इन पर भट्ठी की जगह धारा 60 में मुकदमा दर्ज किया और थाने से ही जमानत दे दी। यहाँ पर एक बात और बताना चाहूंगी कि इस तरह के मामले में कच्ची शराब का काम करने वालों को पुलिस पकड़ तो लेती है लेकिन उनके उपकरण पीपा, ड्रम, बाल्टी आदि सामान को मौके पर तोड़ देती हैं। फिर आरोपियों के खिलाफ कच्ची शराब बनाने की धारा 60/62 के बजाय कच्ची शराब बेचने की धारा 60 में मुकदमा दर्ज किया जाता है। यह सब आबकारी अधिकारी कच्ची कारोबारियों की मिलीभगत से होता है। धारा 60 में थाने से ही जमानत हो जाती है। इसलिए छूटते ही आरोपी फिर से कच्ची का धंधा शुरू कर देते हैं। वहीं धारा 60/62 गैर जमानती मुकदमा है। इसमें जमानत जल्दी नहीं होती है और 10 साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान है।…..
सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि कच्ची बनाने के आरोप में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। आबकारी विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन महीने में कच्ची शराब बेचने के मामले में 450 मुकदमें दर्ज हुए। इन सभी की थाने से ही जमानत मिल गई। इस दौरान कई गांवों में शराब भट्ठी पकड़ी गई। लेकिन आबकारी विभाग ने एक भी आरोपी पर धारा 60/62 में कार्रवाई नहीं की। वहीं दूसरे प्रांतों से शराब की तस्करी करने पर धारा 272, 273, 420, 468 के तहत मुकदमा दर्ज होता है। इस मामले में पिछले तीन महीने 12 मुकदमे दर्ज हुए हैं। विगत दिनों आजमगढ़ में हुई इस तरह की घटना में छोटे-मोटे अफसरों को तो निलंबित करके इतिश्री कर ली, मगर जैसा हमेशा होता आया है वैसा ही हुआ बड़े अफसरों को छोड़ दिया गया। इस तरह का दिल दहलाने वाला हादसा क्या प्रदेश सरकार की नजरों में मामूली सा था जो इन अफसरों को बख्श दिया गया। इन शराब माफियाओं से माहवारी वसूलने वाली पुलिस पर सरकार का क्या कोई नियंत्रण नहीं रहा या फिर इसे सरकार की लापरवाही समझी जाए। इतना सब होने के बाद भी अब तक बड़े पैमाने पर शराब माफियाओं व ठेकेदारों से पुलिस का हफता वसूली जारी है। विशेष सूत्रों के मुताबिक कच्ची शराब बनाने के लिए बड़े-बड़े कड़ाहे व भगोने आदि भठ्ठी पर चढ़ाकर उसमें खौलता पानी के साथ केमिकल मिलाते है। महुआ और गुड़ दोनों की शराब बनाई जाती है। महुए की लहन को सड़ाने के लिए आॅक्सीटोसिन का इस्तेमाल होता है। इसके लिए महुआ या चावल की माड़ को हफ्ते 10 दिन तक सड़ाया जाता है। इसके बाद उसे भट्ठी पर रख उसका डिस्टिलेशन किया जाता है। शराब बनाने का रौमेटिरियल जितना ज्यादा सड़ा होता है शराब उतनी ही नशीली बनती है। इसी के चलते शराब कभी-कभी जहरीली बन जाती है। डिस्टिलेशन के दौरान नौसादर और यूरिया भी मिलाया जाता है। डिस्टिलेशन के बाद मिले कंसट्रेटेड लिक्विड में पांच गुना पानी और ऑक्सीटोसिन मिलाते हैं और हो गयी कच्ची शराब तैयार फिर इस अवैध कच्ची शराब को शराब की दुकानों पर सप्लाई कर दिया जाता है, जहां इसके व्यापारी इसमें और पानी मिलाकर 1 लीटर का 5 लीटर बनाते हैं। ऐसे में कभी नशा कम हो जाए तो इसमें नशा बढ़ाने के मिथाइल एल्कोहल को मिला दिया जाता है। यह मिथाइल एल्कोहल शरीर में जाकर दुष्प्रभाव डालता है, खासतौर से आंखों पर। इससे आंखों की रौशनी जाने का सौ फीसदी खतरा होता है। सूत्रों के अनुसार हरियाणा से बड़े पैमाने पर डुप्लीकेट सस्ती शराब यूपी में तस्करी करके लायी जा रही है। आबकारी महकमे की प्रवर्तन मशीनरी की उदासीनता कहें या फिर मिलीभगत, हरियाणा की इस अवैध शराब पर रोक न लग पाने की वजह से उ.प्र. के सरकारी राजस्व को भी भारी नुकसान हो रहा है। हरियाणा से लाई जाती है यह डुप्लीकेट अंग्रेजी शराब यूपी की लाइसेंसी दुकानों से बिकने वाली शराब की तुलना में करीब दो सौ रुपए प्रति बोतल सस्ती पड़ती है। बड़ी पार्टियों, क्लबों और बार में ओनली फार सेल इन चण्डीगढ़ का लेबल लगी ऐसी अंग्रेजी शराब की खाली बोतलें आसानी से देखी जा सकती हैं। हरियाणा की इस अवैध अंग्रेजी शराब के गोरखधंधे में भदोही, वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, हरदोई आदि का एक ग्रुप आबकारी अफसरों व पुलिस के बीच काफी चर्चा में रहता है। सूत्र बताते हैं कि इन ग्रुपों द्वारा वाराणसी, भदोही, आजमगढ़, गोरखपुर, हरदोई, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, बाराबंकी के पूरे इलाके में हरियाणा की अवैध अंग्रेजी शराब खपायी जा रही है। निश्चिय ही नशा एक सामाजिक बुराई है, लेकिन सिर्फ सामाजिक जागरूकता के जरिये इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए कानूनी कड़ाई भी जरूरी है, साथ ही आबकारी नीति में भी व्यापक बदलाव किए जाने की जरूरत है। जब तक अवैध शराब के कारोबार को जड़ से खत्म नहीं किया जाता, तब तक सारी कार्रवाइयां बेमानी ही साबित होंगी।

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

Facebook  ….. sunitadohare1969@gmail.com
Twitter……… https://twitter.com/sunitadohare19
Email………… sunitadohare1969@gmail.com
ihlmonthly@gmail.com
ihlnews@gmail.com
sunitadohare19@gmail.com

Website….. ihlnews.in

https://plus.google.com/u/0/116913366070555565841/posts
https://www.jagran.com/blogs/sunitadohare/
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/such-ka-aaina/
http://openbooksonline.com/profile/sunitadohare

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply