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इतनी बेरहम दुनियां में कैसे बनूँ सहारा…..

sach ka aaina
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इतनी बेरहम दुनियां में कैसे बनूँ सहारा….

सुना था कि सच्चाई से जियो तो जिन्दगी को आराम से जिया जा सकता है पर ये गलत है सच्चाई के रास्ते चलकर जिन्दगी जीना इतना आसान नहीं. बहुत परेशानियां आती हैं पल-पल जलना पड़ता है. कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है ये रंग सुख-दुःख की चमक में खिलते और मायूस होते हैं. संसार में सभी व्यक्तियों की कामना होती है कि इन सुरमई रंगों को अपने अन्दर समेट लें इसलिए मेरी भी यही कामना रही कि मैं भी इन सतरंगी दुनियां में झूलती उतराती रहूँ. और क्या गलत सोचा ? हर व्यक्ति अपने अन्दर एक भूचाल समेटे होता है. मैंने भी अपने बचपन की  सतरंगी दुनिया को खूब जिया. मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों के कौतुहल का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया. मेरी जिन्दगी में सुख-दुःख से भरे ये रंग कभी मुझे झकझोरते रहे कभी मेरे जीवन का हौसला बने लेकिन मेरे जीवन में इन रंगों का चलायमान व्यक्तित्व बहुत महत्वपूर्ण रहा. मेरे वजूद को इन रंगों ने संवारा लेकिन पल दो पल असहनीय पीड़ा भी दी. सतरंगी सपनों के शब्द भीतर रहे कभी सालते रहे कभी मुक्त होकर साहित्य की साधना बने वैसे मन की बाते लिखना पुराने स्वेटर को उधेड़ने जैसा ही मंजर बन जाता है. क्योंकि उधेड़ना अच्छा तो लगता है और आसान भी होता है पर उधेड़े हुए मन की गति को बांधना बहुत मुश्किल.
मैं एक राजनैतिक पत्रकार बनी और केवल इसलिए बनी कि नेताओं की काली करतूतों का भंडाफोड़ करके इस देश से कुछ भ्रष्टाचार कम कर सकूँ. जनता की मुश्किलों को दूर कर सकूँ, गरीबों को उनका हक़ दिला सकूँ,कमजोरों की लाठी बनूँ अपराधियों को उनकी कर्मों का हिसाब दे सकूँ मैं अपनी कलम की ताकत के बलबूते मीडिया जगत में एक मिसाल बन सकूँ. हाँ मैं अपने वजूद को यूँ ही शिखर पर रखूंगी अपनी इमानदारी की कलम से अपना भविष्य सुरक्षित रखूंगी. कुछ देश के भ्रष्टाचारी मेरी कलम को बाँधना चाहते हैं मेरा सपना है मेरा देश सही मायने में स्वतंत्र हो लेकिन मेरे इस सपने को चंद भ्रष्टाचारी अपनी ताकत से दबाना चाहते हैं. मन दुखी है व्यथित है लेकिन मैंने भी कसम खाई है कि अपने कर्तव्य से कभी विमुख नहीं होउंगी चाहें मेरा हश्र कुछ भी हो मैं ये भी जानती हूँ कभी भी कुछ भी हो सकता है मेरे खिलाफ. खैर वक्त सब ठीक कर देगा. मेरापृथक बुंदेलखण्ड राज्यकी मांग करना ही बुंदेलखण्ड सम्पति को चूसने वाले उन भ्रष्टाचारियों को रास नहीं आ रहा जिनकी मैं गले की हड्डी बन गई हूँ.क्योंकि मैंपृथक बुंदेलखण्ड राज्यकी माँग के जरिए क्षेत्र में वन और खनिज माफिया को समाप्त करना चाहती हूँ. चारों ओर भ्रष्टाचार और घोटाले हो रहे हैं. जो धन जनता की भलाई में खर्च होना चाहिए वह भ्रष्ट राजनीतिबाजों की तिजोरियों में कैद है.बुंदेलखण्ड प्राकृतिक संपदा से भरा पड़ा है जिसे सत्ताधीश लूट कर अपने घर भरने में लगे हैं. अबपृथक बुंदेलखंड राज्यही यहां के लोगों की किस्मत बदल सकता है.
{सच यही है कि यदि पृथक बुंदेलखंड राज्य बनता है तो वह भविष्य में बहुत समृद्ध होगा इसमें कोई संशय नहीं है. वर्तमान हालातों बुंदेलखंड मप्र और उप्र के राज्यों का हिस्सा है. पृथक बुंदेलखंड के हिस्से में उप्र के झांसी,महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा, जालौन और ललितपुर जिले शामिल होंगे, जो बिजली उत्पादन और फसल उत्पादन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं. इसी तरह मप्र के ग्वालियर, भिंड, मुरैना, श्योपुर, शिवपुरी,अशोकनगर, गुना, दतिया, बिदिशा, रायसेन, सतना, कटनी, जबलपुर,नरसिंहपुरछतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर जिले शामिल हैं जो खनिज संपदा से भरे हैं.
प्रस्तावित बुंदेलखंड की बात करें तो यहां बिजली उत्पादन खपत से ज्यादा है. उत्पादन 115 प्रतिशत है. गेंहू उत्पादन में भी बुंदेलखंड धनी है. दस नदियां यहां का हिस्सा हैं. पानी, उर्वरक खनिज और अन्य फसल उत्पादन यहां बेहतर है. इतना सब कुछ होने के बाद भी बुंदेलखंड गरीब,पिछड़ी श्रेणी में आता है। इसका महत्वपूर्ण कारण यही है कि हमेशा से ही यहां का जमकर दोहन हुआ है और लाभ बाहरी लेते रहे हैं. मैं ये जानती हूँ कि केंद्र सरकार राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कर यदि बुंदेलखंड पृथक करने की दिशा में सकारात्मक पहल करती है तो निश्चित तौर पर बुंदेलखंड को आत्म निर्भर होने में मात्र पांच साल का वक्त लगेगा और बुंदेलखंड को दोहन से मुक्ति मिलेगी. यहां की जनता का जीवन स्तर भी सुधरेगा और बेरोजगारी दूर होगी. हालांकि किसी भी राज्य के पुनर्गठन के बाद केंद्र सरकार दस साल तक उस राज्य को वित्त पोषित करती है. 5साल तक सौ फीसदी, अगले ढाई साल 25 और फिर 25 फीसदी वित्त पोषण देती है.
बुंदेलखंड वासी.बुंदेलखंड में रोज़ी-रोटी और पानी की विकट समस्या से व्यथित और त्रस्तहैं. बेसिक एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या नगण्य है और जो हैं.उनकी हालत बदतर है विकास के तमाम कार्यों के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत है चित्रकूट मंडल में गरीबों और महिलाओं की हालत गुलामों जैसी है यहाँ लोग चार दशकों से पट्टे की जमीन पर कब्जे के लिए भटकते नजर आते हैं एक ही जमीन को वन और खनिज संपदाओं पर दबंगों का अवैध कब्ज़ा है राजस्व विभाग अपनी जमीन बताते हुए आदिवासियों को खदेड़ देते हैं.}
ये सब देखकर मन व्यथित हो जाता है. और इसीलिए मैंनेपृथक बुंदेलखंड राज्यकी मांग को लेकर अपनी संस्था के पदाधिकारियों के साथ जंग छेड़ दी जिसका नतीजा ये कि मुझे चन्द सत्ताधारी धमकियाँ देने लगे जिसकी बजह से में थोड़ी परेशान हूँ लेकिन वो ये न समझे कि मैं एक महिला हूँ और मैं महिला होने के नाते डर जाउंगी मैं डरी नहीं हैरान हूँ कि इस देश में ऐसे लोग भी हैं जो चंद रुपयों की बजह से किसी को धमकी भी दे सकते हैं. खैर देखते हैं बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी एक दिन तो इन भ्रष्टाचारियों का अन्त होगा ही . मैं इनके डर की बजह से अपने कार्य को करना नहीं छोडूंगी . लेकिन इतना जरुर कहूँगी कि अगर हिम्मत है तो अपनी असली आई डी बनाकर मेरे टाइम लाइन पर आकर मुझे धमकी दें मेरे इन बॉक्स में नहीं. या फिर मुझे एक फोन करने की गलती करें. अगर थोड़ी भी हिम्मत है तो मेरे सामने आकर बात करो. मैं वो नहीं कि तुम्हारी गोली से मारने की धमकी से डर जाउंगी……..
इस बात को लिखने का मेरा सिर्फ एक मकसद है कि अगर मेरे साथ कोई हादसा होता है तो इसके जिम्मेदार वो लोग होंगे जिनको मेरे बुंदेलखंड की लड़ाई लड़ने में नुक्सान होगा और जिनके खिलाफ लिखकर मैं उनके काले कारनामों कोअपनी सच्ची कलम से लपेट रही हूँ …….
सुनीता दोहरे ….


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